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दर्द छोटा होता है, दुख चुभने लगता है -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर


आलेख

दर्द छोटा होता है, दुख चुभने लगता है

सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

जिंदगी में उतार चढ़ाव आते ही रहते हैं।एक समान, समय का रहना भी कोई जिंदगी है। जिंदगी में परीक्षाएं देते रहना चाहिए। कठिन समय ही यह साबित करता है कि हम चुनौतियों का मुकाबला कैसे करते हैं।

इसीलिए समस्या, परेशानी, दिक्कत, दर्द, सब हमेशा एक से नहीं होते हैं।ये कभी विकट होते हैं। कभी खुद के ही कारण होता है जो हमें साफ-साफ दिखते हैं ।

अपने ही जाल में घेरकर अपने ही दर्द देते हैं, और सुकून छीन लेते हैं। धैर्य  से सहते रहो तो समय आने पर एक न एक दिन ये दर्द भी सुलझ भी जाते हैं।  

ऐसा  दौर भी आता है,  या ये कहूं, समय अच्छा बुरा होता है, कभी खुशियां बड़ी होती हैं। यह भी होता है कि उल्लास मनाने वाले कम होते हैं।

कभी दर्द छोटा होता है।दुःख चुभने लगता है। मन भारी हो जाता है। यही है जिन्दगी। ऐसे समय में भी मानवीय मूल्यों, व्यवहारों में निरंतरता बनी रहना चाहिए।

सच तो यह है कि ऐसा भी संभव नहीं, बस उतार चढ़ाव आते हैं। कभी-कभी पल ठहर सा जाता है।तब दुःख तकलीफें, ज्यादा दिखने लगती है।

पर यह दौर बदलता भी है। जो शून्यता दिखाई पड़ती है,उसमें भाव भी भरने लगते हैं।समस्याएं कम जान पड़ती है। तब बेशक नए लोग, सामने मुंह भिंचे खड़े हो जाते हैं।

जब कभी मन, मन ही तो है, पुरानी यादों के भंवर में फँसने लगता है।स्मृतियां रह-रह कर, पुनः लौटने लगती है।मन अटक सा जाता है। उसे पुनः स्थापित करने में  समय लगने लगता है, पर वह ठीक भी हो जाता हैं।

किसी का होना और फिर परिदृश्य से ओझल होना। दोनों में फर्क है। यह आत्मिक संबंधों से संबंधित है। एक तरफ, किसी अपने के होने पर,सब चीजें सामान्य सी दिखती हैं।

पर जब दृश्य बदल जाता है,तो उनसे लगाव,ना होने का गम, हृदय पर लगातार 
आघात भी करने लगता है। किसी के ना होने से जो मन में रिक्तता आई है, वह अखरने लगती है, स्थितियां भी बदल जाती हैं।

चाहे संबंधों की बानगी हो। व्यक्तियों का मौजूदा स्वरूप हो, व्यवहारों का चिंतनशील होना हो। या बस लंबी खामोशी हो..... यही तो है जिन्दगी के उतार-चढ़ाव!

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