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सरोकार - - 28 नवम्बर : पुण्य तिथि पर विशेष - ज्योतिराव फुले : सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत


 डॉ. चन्दर सोनाने
                    भारत में सामाजिक का्रन्ति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिराव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को हुआ था। मात्र 63 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास 28 नवम्बर 1890 में हो गया था। अपनी इस अल्प आयु में ही उन्होंने देश में सामाजिक क्रान्ति की ज्योति जलाई और अपने कार्यों से महात्मा की उपाधि पाई। 
                    महामानव ज्योतिराव फुले आधुनिक भारत की सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत थे। वे पुरानी रूढ़ीगत समाज व्यवस्था के विरूद्ध बगावत करने वाले देश के पहले महापुरूष थे। वे सैकड़ों सालों से चली आ रही धार्मिक तानाशाही और अंधविश्वास को चुनौती देने वाले देश के पहले कर्मठ समाज सुधारक थे। वे सच्चे अर्थों में मानवतावादी महात्मा थे। महात्मा या महापुरूष वही होता है, जो समग्र समाज को समानता, स्वतंत्रता तथा बंधुता का लाभ दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष करता है, जो किसी से घृणा नहीं करता है और जो मानव के प्रति प्रेम और करूणा से भरकर सभी के समान अधिकारों के लिए जीवनभर लड़ता है। 
                 महात्मा ज्योतिराव फुले ने समाज की प्रगति में बाधक कुरूतियों और रूढ़ियों को तोड़कर हिन्दू समाज को खुशहाली का मार्ग बताया। महात्मा ज्योतिराव ने विशेषकर महाराष्ट्र को धार्मिक गुलामियों से मुक्त कर दिया। वे धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक आदि किसी भी क्षेत्र में गुलामी को रहने नहीं देना चाहते थे। वे जनता को रूढ़ीगत धर्मों, पंथों और सम्प्रदायों के संकीर्ण दायरे से निकालकर मानव धर्म के महासागर में ले जाना चाहते थे। उनका व्यतित्व बहुआयामी था। 
                 महात्मा ज्योतिराव फुले ने अपने जीवन में असंख्य ऐसे कार्य किए जो अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, किन्तु सबसे महत्वपूर्ण है बालिका और नारी शिक्षा। उन्होंने ही देश में सबसे पहले उन्होंने अछूतों के बच्चों के लिए भी शिक्षा का द्वार खोलने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। उनके द्वारा किए गए कार्यों की लंबी सूची हैं। उनके द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं - 
 महामानव ज्योतिराव फुले ने देश में सबसे पहले सन् 1848 में पहली कन्याशाला खोली। कन्याशाला खोलने पर समाज के लोगों ने उनका घोर विरोध किया और उन्हें कई तरह से परेशान किया। किन्तु वे अपने निर्णय से डीगे नहीं और कन्याशाला में कन्याओं को लाकर पढ़ाते रहे।
 उन्होंने सन् 1851 में अछूतों के लिए देश की पहली पाठशाला खोली। उस वक्त उनका उच्च वर्गों द्वारा घोर विरोध किया गया। इस कारण से उनका सामाजिक बहिष्कार करने की भी धोंस दी गई। किन्तु वे अढ़िग रहे और उन्होंने अछूतों को शिक्षित बनाने का कार्य जारी रखा। 
 महामानव ने हिन्दू धर्म के शूद्रों और अतिशूद्रों के कष्टों, दुखों एवं यातनाओं को समाज के सामने उजागर किया। यही नहीं उन्होंने शूद्रों और अतिशूद्रों को अपने कष्टों से मुक्ति का मार्ग भी बताया। वे आजीवन इसके लिए संघर्षरत रहे।
 उन्होंने अपने घर का कुँआ अछूतों के लिए खोल दिया। उस समय अछूतों और उच्च वर्ग के लोगों के कुँए अलग-अलग होते थे।
 उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन कर सन् 1864 में विधवा विवाह सम्पन्न कराया। यही नहीं उन्होंने विधवाओं के अवैध बच्चों के पालन पोषण के लिए 1863 में बाल हत्या प्रतिबंधन गृह भी खोला। इसे उन्होंने संचालित भी किया। 
 विधवाओं की गुप्त और सुरक्षित प्रसूति के लिए उन्होंने प्रसूति गृह खोला। इसके अतिरिक्त उन्होंने उस प्रसूति गृह में काशी बाई नामक विधवा के बच्चे को गोद भी लिया और उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया। 
 बा्रहमण विधवाओं के मुंडन को रोकने के लिए नाईयों को संगठित किया। उन्हें उन्होंने प्रेरित भी किया कि वे विधवाओं के मुंडन नहीं करें।
 महात्मा ज्योतिराव फुले ने बाल विवाह का घोर विरोध किया।
 धर्म के नाम पर जात-पात, ऊँच नीच, अन्याय, शोषण और विषमता को खत्म करने के उद्देश्य से सन 1873 में सत्यशोधक समाज संस्था की स्थापना भी की। 
 शादी-ब्याह में समझ में नहीं आने वाले संस्कृत के जटिल मंत्रों के बदले मराठी में सहज, सरल और सार्थक मंगल मंत्र बनाएँ और उनका प्रचार भी किया।
 रायगढ़ स्थित शिवाजी महाराज की समाधि को खोजकर उसकी मरम्मत कर उसे दर्शनीय स्थल बनाया। 
 सन 1879 में बम्बई में मिल मजदूरों का पहला संगठन बनाया और उसका मार्गदर्शन किया।
 जमींदारों के जुल्मों से पीड़ित किसानों की मदद की। उन्हीं से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ किसान का कोड़ा की भी रचना की। 
 किसानों की दुर्दशा की ओर ड्यूक ऑफ कनाट तथा इंडियन नेशनल कांग्रेस का ध्यान दिलाया।
 महात्मा ज्योतिराव फुले ने अपने जीवन में अनेक साहित्य की रचना कर शूद्रों और अतिशूद्रों में जागृति पैदा की। उन्हें कथित उच्च वर्गों की मानसिक दासता से मुक्ति का आजीवन प्रयास भी किया। 
 अपनी निरक्षर पत्नी सावित्री बाई को पढ़ा लिखाकर उसे अध्यापक बनाया। वह भारत के इतिहास में पहली भारतीय अध्यापिका बनी। देवी सावित्री बाई ने महात्मा फुले द्वारा संचालित कन्याशाला में बालिकाओं को पढ़ाया। इसके अलावा उन्होंने अछूतों की पाठशाला में उनके बच्चों को भी पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया। 
                      महात्मा ज्योतिराव फुले ने समाजसेवा के सभी कार्य उस समय किए, जब इनको करने की बात तो दूर, उनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। उनकी महानता इसी बात से सिद्ध हो जाती है कि वे तत्कालीन समाज को धर्मयुग से निकालकर तर्कयुग में ले आए। वे समाज को धार्मिक पाखंड, कर्मकांड और अंधविश्वास के पारंपरिक मध्य युग से तर्क, विज्ञान और बुद्धिवाद के आधुनिक युग में ले आए। वे सही मायने में महात्मा और महामानव थे। महात्मा फुले की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन।
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