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किसी के भी पत्थर मारने से टूट जाएगा.. सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर


आलेख

किसी के भी पत्थर मारने से टूट जाएगा..

सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

दुनिया में ऐसा कोई नहीं, जो सम्मान की इच्छा या आशा न रखता हो। हम सभी चाहते हैं कि हमें हमेशा सभी के द्वारा सम्मान प्राप्त हो। परंतु हम सम्मान देना नहीं चाहते, सिर्फ लेना चाहते हैं। 

जब दूसरे हमारी आलोचना करते हैं या हमारी पीठ के पीछे हमारी निंदा करते हैं, तब हम नाराज होकर या क्रोधित होकर उन्हें प्रतिक्रिया देते हैं। उस समय हम स्वयं ऐसा साबित करते हैं कि हमारा आत्मसम्मान इतना कमजोर है, जो किसी के भी पत्थर मारने से टूट जाएगा। 

इस दुर्बलता का मुख्य कारण है हमारे आत्मसम्मान की कमजोर बुनियाद, जो किसी के भी मन, वचन, कर्म के व्यवहार से हिल जाती है।हम बड़ी आसानी से यह भूल जाते हैं कि हमारे इर्द-गिर्द जो भी लोग हैं, उन सभी की हमारे प्रति अलग-अलग राय होती है। 

इसलिए समझदार व्यक्ति वह है, जो दूसरों की राय की फिक्र करने की बजाय अपने आत्मसम्मान की ऊंचाई पर स्थिर रह कर ग्लानि को गायन, निंदा को महिमा और अपमान को स्व-अभिमान में परिवर्तित करे। जब हमें खुद की पहचान हो जाती है, तब हमें दूसरों की राय पर निर्भर होने की कोई आवश्यकता नहीं रहती।

हम सभी को बचपन से ही दूसरों को सम्मान देने का पाठ पढ़ाया गया है। परन्तु क्या आज तक किसी ने हमें यह सिखाया कि हम अपने आपको कैसे सम्मान दें? शायद नहीं! इस वजह से आज हमारे संबंधों में सामंजस्य नहीं रहा और हम आंतरिक एवं बाह्य संघर्षों से सदा जूझते रहते हैं। 

स्व-मान की कमी के कारण हमारे जीवन में नकारात्मकता आ गई है, इसलिए हम सकारात्मक जीवन जीना चाहते हैं तो हमारे लिए स्व-मान में रहना अनिवार्य है। फिर हमारे भीतर से जैसे को तैसा, दूसरों के प्रति गलतफहमियां और अस्थिरता जैसी खामियां निकल जाएंगी। अपने स्व-मान को सशक्त करने का एकमात्र सरल उपाय है दूसरों को मान देना। 

चाहे सामने वाला कैसा भी हो, परंतु आप सभी को मान देते चलो तो आपके स्व-मान में खुद ही इजाफा होता रहेगा। कहावत है कि यदि आप सम्मान चाहते हो तो सम्मान दो, इसलिए सम्मान देने से हम स्वाभाविक रूप से ही उसे प्राप्त करने के हकदार बन जाते हैं।

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