उसका उत्सव मनाऊँ या रोऊँ -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर
आलेख
उसका उत्सव मनाऊँ या रोऊँ
-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर
इस दुनिया में, हम कई तरह की परेशानियों का सामना करते हैं। चीजें हमेशा हमारे हिसाब से नहीं होतीं। कुछ लोग उस दुख में डूबे रहते हैं, लेकिन दूसरों के पास सकारात्मक दृष्टिकोण होता है और वे उन परेशानियों से उबर सकते हैं जिनका वे सामना करते हैं। क्या फर्क पड़ता है?
जब हम अपनी समस्याओं पर ध्यान नहीं देते, तो वे छोटी और छोटी होती जाती हैं। हम इस बारे में चिंता नहीं कर सकते कि अतीत में क्या हुआ था या भविष्य में क्या हो सकता है। इसके बजाय, हमें यह देखने की जरूरत है कि आज हमारे लिए क्या सकारात्मक है।
यकीनन, यह दुनिया परेशानियों से भरी है। पर यह भी सच नहीं है। अच्छा भी है,.और भी अच्छा हो सकता है। परेशानी से मुक्ति के रास्ते भी हैं। ऐसा बिलकुल नहीं है कि अब कोई रास्ता भी नहीं बचा है। ऐसा तो मैंने न कभी कहा, न ऐसा मैं सोचता हूँ।
भगवान, हैं और वे ही सही रास्ता दिखाएंगे। पर क्या भगवान ही अपने आप परेशानी समाप्त कर देंगे। मेरे पास एक मार्ग है। अपने पुरुषार्थ का मार्ग। अपनी समस्याओं से निजात पाने का कर्मयोग, सबसे बढ़िया मार्ग है।
मेरे लिए यही बहुत हो गया।... जमाने में और शिकायतें हैं, उनके एक या दोहरे कारण भी हो सकते हैं। जैसे हर मौसम के बदलते ही समस्याएं घेर लेती हैं। बारिश और तूफान भी परेशान करने लगते हैं। ऐसे ही समस्याओं की हल्की, तेज बारिश और तूफान आते ही हैं। यही जिन्दगी है।
जिन्दगी जो है धूलभरे आकाश की तरह है, कभी-कभी ही आकाश साफ-सुथरा नीला दिखाई देता है। ऐसे ही धूसर आकाश की तरह संघर्ष ज्यादा है, नीले आकाश की तरह सुख कम। जब हम व्याकुल होते हैं तो जंगल में फैली कांटे और चुभन भरी कैक्टस की झाड़ी की तरह जिन्दगी घिरी दिखती है। तब लगता है कांटे और झड़बेरी ने मुझे घेर लिया है।
इसलिए हमेशा रोने से क्या फायदा है।परेशानी को लंबे समय तक बनाए रखने से क्या फायदा है? हमेशा अतीत के बारे में सोचते रहने से क्या फायदा है ? प्रत्येक को अपना क्लेश गंभीर लगता है। सबके जीवन में यह होता ही है।
इसलिए होना यह चाहिए कि जैसे कोई शराबी शराब के साथ पानी मिलाकर कड़वाहट कम कर लेता है। जिन्दगी ऐसी ही है। कड़वाहट कम करते रहो। जिन्दगी को नशा बना लो। नशा कड़वाहट है तो संतोष, धैर्य, सहनशीलता का पानी मिलाकर कड़वाहट कम कर लो, यही कला है, जीवन जीने की।
जीवन, परेशानी का कोई उत्सव नहीं है। परेशानी मेरी है तो मेरी ही है। उसका उत्सव मनाऊं या रोऊं, वह मेरा ही हिस्सा है। लेकिन सुख सबका है,कल भी यही नियम था,आज भी यही नियम है।इसलिए आज, आज है और उसी में मैं जी रहा हूं।
जिन्दगी में जो भी ले रहा हूँ, खो भी रहा हूँ। फिर ले रहा हूँ, फिर दे रहा हूँ।जैसा समय चाहेगा, कल फिर दुख का एक बादल मेरे रास्ते पर गिरेगा, कल फिर वह बारिश होकर बरसेगा। ऐसी बारिश एक बार नहीं कई बार हो सकती है।लेकिन आज नहीं हो रही है, सुख ही सुख है तो, क्या आज ठीक नहीं है? यह भी ठीक है और कल यदि यह नहीं हो तब भी ठीक है। सुख-दुख है आते-जाते रहते हैं।