महाभारत युद्ध में कैसी थी कौरव-पांडवों की ‘अक्षौहिणी सेना’, धार्मिक ग्रंथों में ऐसा है उल्लेख
इंदौर। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में महाभारत युद्ध के बारे में विस्तार से जिक्र मिलता है। ऐसा माना जाता है इस युद्ध में देशभर के राजाओं की सेनाओं ने हिस्सा लिया था और कुरुक्षेत्र में भयावह युद्ध हुआ था। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में महाभारत और भगवत गीता में कौरवों और पांडवों के युद्ध के बारे में विस्तार से जिक्र मिलता है और सेना की क्षमता को लेकर एक शब्द का जिक्र बार-बार जिक्र मिलता है और ये शब्द है ‘अक्षौहिणी सेना’। यहां जानें कैसी थी कौरव व पांडवों की ‘अक्षौहिणी सेना’ की ताकत कितनी थी और दोनों पक्षों के पास कितनी ‘अक्षौहिणी सेना’ सेना थी?
ऐसी थी ‘अक्षौहिणी सेना’ की ताकत
‘अक्षौहिणी सेना’ के बारे में महाभारत के आदिपर्व में विस्तार से उल्लेख मिलता है। इसमें बताया गया है कि कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी, जबकि पांडवों के पास सिर्फ 7 अक्षौहिणी सेना थी। आदिपर्व के मुताबिक एक अक्षौहिनी सेना में इतने रथ, हाथी, घोड़े और पैदल सैनिक शामिल होते थे।
कौरवों के पास थी 11 अक्षौहिणी सेना पांडवों ने वनवास से पहले इंद्रप्रस्थ में धर्म के आधार पर शासन किया था, वहीं कौरव का पक्ष अधर्म की ओर था। इसके बावजूद कौरवों के पक्ष में 11 अक्षौहिणी सेना और पांडवों के पक्ष में अक्षौहिणी सेना होने को लेकर भी श्रीमद भगवत गीता में उल्लेख मिलता है। इसमें बताया है कि दुर्योधन के पक्ष में 11 अक्षौहिणी सेना का होना संभव नहीं था, लेकिन पांडवों के वनवास के दौरान उसने कई राजाओं से संधि कर अपनी ओर कर लिया था और प्रजा को सुखी रखने के लिए युधिष्ठिर की नीतियों को ही अपनाया था। 12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास के दौरान अधिकांश सेना कौरवों के पक्ष में 9 अक्षौहिणी सेना एकजुट हो गई।
कौरवों की ओर से लड़ी भी भगवान कृष्ण की सेना
इसके अलावा 1 अक्षौहिणी सेना भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों को दे दी थी, क्योंकि अर्जुन ने अक्षौहिणी सेना के बदले अपनी ओर सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण को ही मांगा था। इसके अलावा दुर्योधन ने चालाकी की पांडवों के मामा मद्रराज शल्य की एक अक्षौहिणी सेना को भी अपने पक्ष में कर लिया था। इस प्रकार महाभारत युद्ध में पांडवों के सिर्फ 7 अक्षौहिणी सेना थी, जबकि कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थे। इसके बावजूद वे महाभारत युद्ध में हार गए थे।
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