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लोकसभा चुनाव 2024: तीस लाख जाॅब देने व 2 करोड़ रोजगार न दे पाने के चुनावी शोशे का फैक्ट चैक


अजय बोकिल,वरिष्ठ पत्रकार

सार
पीएम मोदी द्वारा देश में 2 करोड़ रोजगार न दे पाने के वादे और उसे पूरा न कर पाने का है। क्या बीते दस सालो में मोदी ने कभी अपने भाषणों में ऐसा कोई वादा किया था? किया था तो कब और कहां किया था? मजेदार बात यह है कि यह आरोप भाजपा के ही पूर्व सांसद और मोदी विरोधी समझे जाने सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी दोहराया था। 

विस्तार
आसन्न लोकसभा चुनाव की अधिकृत घोषणा के पहले ही बेरोजगारी को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश शुरू हो चुकी है। ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी की रणनीति यह है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा को रोजगार के पिच पर खिलाया जाए।

दूसरी तरफ भाजपा इस पिच पर आने से बच रही है। उसे रोजगार से ज्यादा पीए मोदी की लोकप्रियता, रामलला मंदिर और अपने राजनीतिक जोड़-तोड़ पर ज्यादा भरोसा है। सवाल यह है कि अमूमन हर चुनाव में अहम मुद्दे की तरह परोसा जाने वाला रोजगार का मुद्दा क्या इस चुनाव में गेम चेंजर साबित हो सकेगा? या हमेशा की तरह यह अनुषांगिक मुद्दा ही रहेगा?

राहुल अपनी सभाओं में यह गारंटी दे रहे हैं कि यदि इंडिया गठबंधन सत्ता में आया तो वो 30 लाख युवाओं को रोजगार देंगे (उनका आशय मुख्य रूप से सरकारी नौकरी से है)।

दूसरी तरफ वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने देशवासियों के समक्ष किए 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने के अपने वादे को पूरा नहीं किया। बेशक, भारत जैसे देश में जहां 18 से 35 वर्ष के दर्मियान काम करने योग्य आबादी करीब 60 करोड़ है और जहां 10 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हों, वहां रोजगार का वादा एक गंभीर और आकर्षक चुनावी मुद्दा हो सकता है और होना भी चाहिए। लेकिन रोजगार को लेकर इस चुनावी वादे की व्यावहारिकता और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की वादाखिलाफी के आरोपों की सच्चाई जानने के लिए तह तक जाना जरूरी है।


रोजगार और भाजपा के वादे 

पहला सवाल पीएम मोदी द्वारा देश में 2 करोड़ रोजगार न दे पाने के वादे और उसे पूरा न कर पाने का है। क्या बीते दस सालो में मोदी ने कभी अपने भाषणों में ऐसा कोई वादा किया था? किया था तो कब और कहां किया था? मजेदार बात यह है कि यह आरोप भाजपा के ही पूर्व सांसद और मोदी विरोधी समझे जाने सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी दोहराया था। उन्होंने कहा था- पीएम ने 15 अगस्त 2017 को लाल किले से दिए अपने भाषण में कहा था कि वो देश में 2 लोगों को रोजगार देंगे और हर परिवार को घर मुहैया कराएंगे। लेकिन हकीकत में पीएम मोदी के उस पूरे भाषण में ऐसा कोई जिक्र नहीं था।

एक बड़े टीवी न्यूज चैनल ने अपने सोशल मीडिया फैक्ट चैक में पकड़ा कि पीएम द्वारा जिस 2 करोड़ रोजगार देने की बात चलाई जा रही है वह आंकड़ा दरसअल 1 करोड़ का है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आगरा में 23 नवंबर 2013 को हुई एक आम सभा के भाषण के दौरान का है। इसमें चालाकी यह है कि इसे संपादित करके चलाया गया।

पूरे भाषण में मोदी (तब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे) कहते हैं कि (तत्कालीन) यूपीए 2 सरकार ने आप से ( जनता से) 1 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था।  क्या आप में से किसी को भी रोजगार मिला? जनता से जवाब आता है- नहीं। जो वीडियो चलाया गया, उसमें ‘यूपीए सरकार ने’ वाला हिस्सा काट दिया गया और इसे मोदी के चुनावी वादे के रूप में प्रचारित किया गया।
 
दरअसल, संपादन की यह बदमाशी कुछ उसी तरह की है, जिसमें एक वीडियो में राहुल गांधी को आलू से सोना बनाने की बात कहते हुए दिखाया जाता है। जबकि इस भाषण में राहुल यह वाक्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हवाले से कहते हैं। उनके भाषण से ‘मोदी ने कहा था’ वाक्य गायब कर दिया जाता है और बाकी का हिस्सा भाजपा चलवा देती है।

यह सवाल फिर भी बाकी है कि 2 करोड़ का आंकड़ा आया कहां से? क्या कोई सरकार सचमुच सीधे तौर इतने लोगों को सरकारी या अर्द्ध सरकारी नौकरी दे सकती है? खासकर तब कि जब पूरे देश में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों में भी कुल नौकरियां ही डेढ़ करोड़ के आसपास हों और सरकारें लगातार कर्ज लेकर अपना खर्चा पानी चला रही हों।

ऐसा लगता है कि पीएम मोदी ने जो आरोप तत्कालीन यूपीए 2 सरकार पर लगाया था, उसे ही दो गुना करके अब नरेन्द्र मोदी सरकार पर मढ़ा जा रहा है। वैसे भी भारत में अमूमन जो पार्टियां या गठबंधन सत्ता में आने के प्रति आश्वस्त रहती हैं, वो अपने घोषणा-पत्रों में रोजगार के मामले में निश्चित आंकड़े देने से बचती हैं। उनका घोषणा पत्र ज्यादातर लफ्फाजी भरा ही रहता है। लेकिन जिस पार्टी को खुद पर भरोसा कम रहता है, वो अपने चुनावी वादों में भारी भरकम आंकड़े देने या तस्वीर का भयावह स्वरूप पेश करने में कोताही नहीं करतीं। यहां हम भाजपा और कांग्रेस के पिछले तीन आम चुनावों के घोषणा-पत्रों की तुलना करें तो तस्वीर साफ हो जाती है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्रों में यह वादा तो किया है कि सत्ता में आने पर ज्यादा रोजगार निर्माण की परिस्थितियां पैदा करेगी, लेकिन कितने लोगों को, किस समयावधि में रोजगार मिलेगा, इसका कोई स्पष्ट जिक्र या गारंटी नहीं है।

यह स्थिति 2014 और 2019 के भाजपा के लोस चुनाव के घोषणा-पत्रों की है। लेकिन 2009 के लोस चुनाव में जब भाजपा को महज 116 सीटों पर जीत मिली थी और इसके साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के पीएम बनने की आकांक्षा पर समाप्ति की मुहर लग गई थी, उस घोषणा-पत्र में जरूर भाजपा ने आईटी सेक्टर में 1.2 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराने का वादा किया था। जबकि भाजपा के 2014 के घोषणा-पत्र में रोजगारपरक प्रशिक्षण और 2019 के लोस चुनाव घोषणा-पत्र में भाजपा का जोर कौशल विकास पर था। कितनों को रोजगार दिया जाएगा, इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं था।

कांग्रेस के वादे और बेरोगारी का समीकरण 
अब कांग्रेस की बात। कांग्रेस ने 2014 के लोस चुनाव में अपने घोषणा-पत्र में 2020 तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में 60 लाख रोजगार देने का वादा किया था। इनमें भी 33 फीसदी पद महिलाओं से भरे जाने थे। लेकिन इसके पूर्व 2009 के लोस चुनाव (जिसमें उसने सत्ता में दोबारा वापसी की थी) के घोषणा-पत्र में 53 हजार खाली सरकारी पदों को भरने का वादा था (पार्टी ने यह भी नहीं बताया कि पांच साल सत्ता में ( 2004 से 2009 तक) रहने के दौरान उसने कितनों को रोजगार दिया) लेकिन यह वादा भी शायद अधूरा ही रहा, क्योंकि अगले चुनाव में कांग्रेस और यूपीए सत्ता से बाहर हो गए।

अलबत्ता कांग्रेस ने 2019 के लोस चुनाव घोषणा-पत्र में देश में ‘रोजगार क्रांति का वादा करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र में 34 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया था। इस चुनाव में उसे 52 सीटें मिली थीं। यही आंकड़ा अब राहुल गांधी ने चार लाख कम कर दिया लगता है।
 
जाहिर है कि रोजगार के मामले में भाजपा बहुत सेफ पिच पर खेल रही है। वह रोजगार बढ़ाने के लिए जरूरी प्रयत्नों की बात तो कर रही है, लेकिन यह नहीं बता रही कि कितना रोजगार कहां से मिलेगा? क्योंकि यह जोखिम भरा है। हालांकि इस दिशा में उसका नवीनतम प्रयास धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के रूप में है, जहा असंगठित क्षेत्र में रोजगार की असीम संभावनाएं बताई जा रही हैं।

इसकी सच्चाई आने वाले समय में पता लगेगी। लेकिन राहुल गांधी अभी से कांग्रेस और प्रकारांतर से इंडिया गठबंधन के सत्ता में आने पर 30 लाख नौकरियां देने का वादा कर रहे हैं। इस वादे पर कांग्रेस के एक प्रवक्ता का स्पष्टीकरण था कि ये नौकरियां खाली पड़े पदों पर भर्ती के रूप में होंगी और इसमें कोई दिक्कत नहीं है।

अब चूंकि यह चुनाव केन्द्र सरकार के लिए हो रहे हैं, इसलिए माना जा सकता है कि ये 30 लाख खाली पद केन्द्र सरकार के विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों के होंगे। इस बारे में सच्चाई यह है कि केन्द्र सरकार के कुल कर्मचारियों की संख्या ही 40 लाख के आसपास है।

इधर, अगर 30 लाख पद खाली पड़े हैं तो सरकार काम कैसे कर रही है? सीमाओं पर तैनात हमारे जवान कहां हैं? जबकि खुद सरकार ने संसद में दिए जवाब में माना था कि (अगस्त 2022 को दिया जवाब) देश में केन्द्र सरकार के 9 लाख 79 हजार 327 पद खाली हैं, जो कुल पदों का लगभग 30 फीसदी हैं।

अगर ये सभी भर दिए जाएं तो भी बाकी 20 लाख पद कहां से भरे जाएंगे? क्या केन्द्र सरकार राज्य सरकार के कर्मचारियों के खाली पद भी भरेगी? क्या उसे ऐसा करने का अधिकार है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि विभिन्न राज्य सरकारों में खाली पड़े पदों की कुल संख्या भी 20 लाख शायद ही हो। राज्यों में सबसे ज्यादा खाली पद महाराष्ट्र और यूपी में हैं, जिनकी संख्या 4 लाख से अधिक होती है। इन स्वीकृत खाली पदों को भरने के लिए पैसा कहां से आएगा, यह अलग ही बहस का विषय है।

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