साहिर लुधियानवी:एक कालजयी शायर
नितिन पोल
साहिर लुधियानवी ! 8 मार्च 1921 को जन्मे साहिर लुधियानवी की आज 103 वी जयंती हैं। उनका मूल नाम अब्दुल हयी था और तख्खल्लुस साहिर। साहिर अपने पिता की 11 वी पत्नी की संतान थे। उनके पिता ने साहिर की मां को तलाक दिया था। इस वजह से उनका बचपन गरीबी में बीता। उनके मित्र अहमद रही ने कहा था कि साहिर ने ताउम्र एक प्यार और एक नफरत पाली। बेइंतहा प्यार अपनी मां के लिए और नफ़रत बाप के लिए।
साहिर कॉलेज के जमाने से ही शायरी करते थे। 1943 में सिर्फ 22 साल की उम्र मेंउनका पहला संग्रह 'तल्खियां' प्रकाशित हुआ। पहले संग्रह ने उन्हें स्थापित किया। शायरी की दुनिया में उनका नाम बेहद अदब से लिया जाता हैं। उनका शुमार आला दर्जे के शायरों में होता हैं। इसीलिए मजरूह सुल्तानपुरी , जांनिसार अख्तर,एस एच बिहारी,राजा मेहंदी अली खान,कैफी आजमी जैसे रचनाकार होते हुए,फिल्म उद्योग में अपना एक रूतबा बनाया।
1948 की फिल्म 'आजादी की राह पर' उनकी पहली फिल्म थी।लेकिन 1951 फिल्म नौजवान के गीत ठंडी हवाएं लहराके गाये से उन्हें पहचान मिली।साहिर ने रवि , रोशन , खय्याम और दत्ता नाइक सहित अन्य संगीतकारों के साथ काम किया । गोवा के रहने वाले एन.दत्ता नाईक साहिर की शायरी के प्रशंसक थे और उनके सहयोग से मिलाप (1955), चंद्रकांता (1956) , साधना ( 1958), धूल का फूल (1959), धरमपुत्र (1961) , नया के लिए स्कोर तैयार किया गया। रास्ता (1970) । साहिर ने संगीत निर्देशक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ "मन की आंखे", "इज्जत", दास्तान और यश चोपड़ा की "दाग" जैसी फिल्मों में भी काम किया , सभी में शानदार गाने हैं। लगभग 1950 से अपनी मृत्यु तक, साहिर ने फिल्म निर्माता और निर्देशक बलदेव राज चोपड़ा (1914 - 2008) के साथ काम किया। चोपड़ा के लिए साहिर का आखिरी काम ' इंसाफ का तराजू' के लिए था । यश चोपड़ा ने , बीआरफिल्म्स के लिए निर्देशन करते हुए और बाद में एक स्वतंत्र निर्देशक और निर्माता के रूप में, साहिर की मृत्यु तक, साहिर को अपनी फिल्मों के लिए गीतकार के रूप में भी नियुक्त किया।
साहिर की शायरी में बहुत गहराई और दर्शन होता था। इसीलिए उन्होंने कहा था कि, संसार की हर शय का बस इतना फ़साना हैं इक धुंद से आना हैं इक धुंद में जाना हैं। साहिर की विचारधारा मार्क्सवादी थी। कई गीतों में यह झलकता हैं। फिल्म उद्योग में साहिर ऐसे गीतकार थे,जो तैयार धुन पर गीत नहीं लिखते थे। बल्कि उनके गीतों पर संगीतकार धुन बनाते थे।
साहिर को अपनी कलम पर इतना ऐतबार था कि संगीतकार और गायक से एक रूपया ज्यादा लेते थे।उनका कहना था कि यदि गीत ही नहीं होगा तो संगीतकार और गायक क्या करेंगे। इस बात पर एस डी बर्मन और साहिर में विवाद हुआ।और फिर उसके बाद उन्होंने एक साथ काम नहीं किया। आकाशवाणी पर गीतकारों का नाम बतायें जाने में साहिर का ही योगदान हैं।
साहिर के पिता ने कई महिलाओं से प्रेम के कारण साहिर की मां को तलाक दे दिया था। साहिर की मां ने सिंगल पैरेंट के तौर पर उनकी परवरिश की। इस वजह से साहिर अपनी मां से बेइंतहा मुहब्बत करते थे। उन्हें डर था कि मेरे निकाह के बाद बीवी के कारण मां से दूर न हो जाऊं।। इसीलिए उन्होंने निकाह नहीं किया। अमृता प्रीतम से प्यार का अफसाना सभी जानते हैं।अमृता के बाद और भी महिलाएं उनके जीवन में आयी। पर उनका प्यार अंजाम पर न पहुंचा।
साहिर अपने समकालीन गीतकारों का सम्मान करते थे। 1964 में जब उन्हे फिल्म ताजमहल के लिये फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला,तब उन्होंने कहा कि शैलेंद्र को बंदिनी के लिये मिलना चाहिये। फिल्म ताजमहल के जो वादा किया और 1977 में मैं पल दो पल का शायर हूं के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिला।वे 7 बार फिल्मफेयर के लिए नामांकित हुए थे। 1971 में भारत सरकारने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा था।
शायर जांनिसार अख्तर ने उनकी बहुत मदद की। इस बात का एहसास उन्हें था।स्वयं के स्थापित होने के बाद, उन्होंने जावेद अख्तर को अपने घर ही रखा। जावेद अख्तर को पैसों से मदद करते थे। साहिर कभी जावेद के हाथ में पैसे नहीं देते थे। टेबल पर पैसे रख देते थे।ताकि जावेद के स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे। ऐसे जज्बाती, प्यार पर एक से बढ़कर एक गीत लिखने वाले साहिर ताउम्र प्यार के लिए तरसते रहे। जुहू कब्रस्तान में दफनाये गये साहिर की कब्र 2011जगह की कमी की वजह से नई अंत्येष्टि के लिए ध्वस्त कर दी गई।
मैं पल दो पल का शायर हूं कहने वाले साहिर,अपनी शायरी से सदियों तक जिंदा रहेंगे।