शिवराज जैसे नेता को घर कैसे बैठा सकता था नेतृत्व....?
राज- काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’ ,वरिष्ठ पत्रकार
विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर कयासों का दौर जारी था। डॉ मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद कई विश्लेषक उनके राजनीतिक जीवन के अंत की भविष्यवाणी तक करने लगे थे। ऐसी अटकलों को तब ज्यादा बल मिला जब शिवराज मुख्यमंत्री न बन पाने के कारण विचलित नजर आए। कुछ ऐसे बयान दे दिए जिन्हें भाजपा नेतृत्व के लिए चुनौती माना गया। महिलाओं के गले लगते, रोते दिखाई पड़े तो इसे दबाव की राजनीति कहा गया। केंद्रीय मंत्री रामदास आटवले ने जब कहा कि शिवराज सिंह लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और सांसद बनेंगे, तो उनके लोकसभा क्षेत्र को लेकर कयास लगने लगे। भाजपा की एक बैठक में प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने शिवराज को छिंदवाड़ा से लड़ाने का सुझाव दे दिया। फिर कहा जाने लगा कि शिवराज भेापाल अथवा विदिशा में से किसी सीट से लड़ना पसंद करेंगे लेकिन छिंदवाड़ा से उनका नाम आगे कर बलि का बकरा बनाया जा रहा है। बहरहाल, भाजपा ने जब शिवराज का नाम उनकी पसंद की सीट विदिशा से घोषित किया तो तय हो गया कि पार्टी अपने इतने लोकप्रिय नेता को घर नहीं बैठा सकती थी। इतना ही नहीं टिकट वितरण में उनकी पंसद का ख्याल रखा गया। भोपाल में आलोक शर्मा के साथ उनके कई अन्य समर्थक प्रत्याशी बना दिए गए।
यदुवंशियों के बीच इस तरह हो रही ‘मोहन’ की ब्रांडिंग....
भाजपा नेतृत्व ने डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर जो लक्ष्य साधे थे, वे निशाने पर लगने लगे हैं। सबसे महत्वपूर्ण था बिहार और उप्र के यदुवंशियाें को अपने ढंग से संदेश देना। डॉ यादव ने रविवार को उप्र में आयोजित यादव महाकुंभ में हिस्सा लिया। वे कार्यक्रम में पहुंच रहे हैं, इसका प्रचार-प्रसार पहले से प्रारंभ हो गया था। उनके फोटो के साथ जो बैनर लगाए गए थे, उनमें लिखा गया था कि ‘राम-कृष्ण विरोधियों का छोड़ हाथ, यादव अब मोहन के साथ’। उन्होंने खुद ‘जय माधव, जय यादव’ का नारा दिया। यादव समाज को बताने की कोशिश की गई कि उप्र में अखिलेश यादव और उनसे जुड़े समाज के लोग राम और कृष्ण के विरोधी हैं जबकि डॉ मोहन यादव इनके भक्त। संदेश देने की कोशिश की गई कि ‘यदुवंशियों के असली नेता मुख्यमंत्री डॉ यादव हैं, अखिलेश और तेजस्वी नहीं।’ भाजपा का यह तीर निशाने पर कितना बैठा, आने वाले नतीजों से पता चलेगा। फिलहाल डॉ यादव की ऐसी ब्रांडिंग दोनों राज्यों उप्र और बिहार में जारी है। मोहन यादव ने बिहार और उप्र में पहले से ही समाज को अपनी ओर आकर्षित करने का अभियान चला रखा है। बिहार, उप्र में उन्होंने समाज के लोगों को मप्र घूमने और राेजगार करने का ऑफर दिया है। उप्र में चुनाव की दृष्टि से वे कई बैठकें ले चुके हैं। लोकसभा चुनाव में में भी उनका उपयोग करने की तैयारी है।
लीजिए, राजनीति में कहीं की नहीं रहीं साध्वी उमा....
भाजपा द्वारा जारी लोकसभा प्रत्याशियों की पहली सूची देखकर साफ हो गया कि पार्टी की फायरब्रांड नेत्री साध्वी उमा भारती राजनीति में कहीं की नहीं रहीं। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही वह कह रही थीं कि 2024 का चुनाव जरूर लड़ेंगी। दो माह पहले तक वे अपनी यह घोषणा दोहराती रहीं। उनके खजुराहो, भोपाल और झांसी से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे। हाल ही में वे उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ स्थित उनके आवास में जाकर मिली थीं, लेकिन भाजपा ने प्रत्याशियों की सूची जारी हुई तो उमा का नाम नदारद था। खजुराहो से वीडी शर्मा, भोपाल से आलोक शर्मा और झांसी से अनुराग शर्मा के नाम की घोषणा हो चुकी थी। साफ है कि उनकी मंशा को पलीता लग चुका था। भाजपा नेतृत्व ने अपनी इस फायर ब्रांड नेत्री की घोषणा का सम्मान नहीं रखा, जबकि एक समय भाजपा में उमा की तूती बोलती थी। वे जो चाहतीं, होता था। जहां से टिकट चाहतीं, मिलता था। हालांकि अपनी इस हालत की सबसे ज्यादा दोषी वे खुद हैं। बयानों, घोषणाओं और कदमों के कारण उन्होंने अपनी साख धूल-धूसरित की है। कुछ समय से वे कुछ भी कह कर पलटने वाली नेता के रूप में चर्चित हुई हैं। यह भी संकेत गया है कि उनके साथ अब लोग नहीं। संभवत: इसीलिए भाजपा ने उनकी परवाह नहीं की, और घर बैठा दिया।
नरोत्तम के काम नहीं आई अमित शाह से निकटता....
भाजपा के दूसरे बड़े ताकतवर नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा की निकटता किसी से छिपी नहीं है। उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव हारने वाले किसी एक नेता को भी लोकसभा का टिकट मिला तो नरोत्तम को भी मिलेगा। पर ऐसा नहीं हो सका। शाह से उनकी निकटता काम नहीं आई। भाजपा द्वारा जारी प्रदेश के 24 लोकसभा प्रत्याशियों की सूची में चुनाव हारे 5 नेताओं के नाम हैं, लेकिन नरोत्तम का नहीं। खास यह है कि केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंंह कुलस्ते और सांसद गणेश सिंह को भी क्रमश: मंडला और सतना से टिकट मिल गए। ये दोनों विधानसभा का चुनाव लड़े और हार गए थे। संभावना थी कि चूंकि केंद्रीय मंत्री और सांसद अपने लोकसभा क्षेत्र की ही विधानसभा सीट से चुनाव हारे हैं, तो उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं मिलेगा। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उन्हें टिकट देकर चौंका दिया। विधानसभा का चुनाव हारे भारत सिंह कुशवाह, राहुल लोधी और आलोक शर्मा को भी मौका दे दिया गया लेकिन नरोत्तम रह गए। नरोत्तम की गिनती प्रदेश के कद्दावर नेताओं में होती है। उनका नाम मुख्यमंत्री के दावेदारों में शुमार रहता है। अमित शाह ही नहीं, भाजपा के अधिकांश केंद्रीय नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं। फिर भी उन्हें टिकट नहीं मिला। इसके कारण तलाशे जा रहे हैं।
नकुलनाथ जी, कॉश आपका यह बयान पहले आ जाता...
कहते हैं, ‘सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या आए’। कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुलनाथ के ताजा बयानों के बाद कई लोग इस कहावत का उल्लेख करने लगे हैं। मामला उनके भाजपा में जाने को लेकर चली खबरों से जुड़ा है। कमलनाथ और नकुलनाथ ने यदि प्रारंभ में ही ऐसे बयान दे दिए होते, जो अब दिए जा रहे हैं तो न कांग्रेस की छीछालेदर होती, न उनकी खुद की फजीहत। पहले भाजपा में जाने को लेकर सवाल पूछा जाता तो कहते ‘जो भी निर्णय लेंगे छिंदवाड़ा के विकास और यहां के लोगों के हित में लेंगे।’ यह भी कि ‘जब जाऊंगा तो मीडिया को बता कर जाऊंगा।’ ‘अभी तो एक तेरहवीं में जा रहा हूं, आपको भी चलना है तो चलिए।’ कभी नहीं बोले मेरे भाजपा में जाने को लेकर चल रहीं खबरें निराधार हैं। सांसद बेटे नकुल तो चार कदम आगे थे। उन्होंने अपने एक्स हैंडल से कांग्रेस का नाम और चिन्ह ही हटा दिया था। उनके साथ सज्जन सिंह वर्मा जैसे कमलनाथ के कट्टर समर्थक भी सोशल मीडिया हैंडल से कांग्रेस हटा चुके थे। वे कह रहे थे कि कमलनाथ जहां जाएंगे, वहां हम भी जाएंगे। अब कमलनाथ कह रहे हैं कि यह मीडिया का फैलाया था, वह ही खंडन करे। नकुलनाथ ने अब कहा कि ‘न वे भाजपा में जा रहे हैं और न ही कमलनाथ।’ लेकिन अब इतना रायता फैल चुका है कि उसे समेटना बेहद मुश्किल। कॉश, उनका यह बयान पहले ही आ जाता।
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