चित्रकूट में वाल्मीकि समारोह सम्पन्न
उज्जैन। व्यक्तित्व को गढ़ने में संवाद का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संवाद से व्यक्ति का विकास होता है समाज का कल्याण होता है। इसलिये सभी को परस्पर संवाद में रत रहना चाहिये उक्त विचार दीनदयाल शोध संस्थान, चित्रकूट के संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन एवं मं.गां. ग्रामोदय चित्रकूट वि.वि. द्वारा आयोजित वाल्मीकि समारोह में व्यक्त किये।
उक्त जानकारी देते हुये कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन के निदेशक डॉ.गोविन्द गन्धे ने बताया कि अकादमी के द्वारा प्रतिवर्ष चित्रकूट में वाल्मीकि समारोह का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष के आयोजन की अध्यक्षता ग्रामोदय वि.वि के कुलपति प्रो. भरत मिश्र ने की। आपने कहा कि रामायण के श्लोक, रामचरित मानस की चौपाई का कण्ठस्थ होना ही पहले पढ़े-लिखे होने का प्रमाण माना जाता था। आपने इस अवसर पर वि.वि. के सभागार का नाम ‘महर्षि वाल्मीकि सभागार’ करने की घोषणा की साथ ही अकादमी द्वारा निर्मित कराई गयी महर्षि वाल्मीकि की प्रमिता भी वि.वि. में स्थापित करने की घोषणा की।
द्वि-दिवसीय कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुति एवं शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सांस्कृतिक प्रस्तुति श्री रंग कला संस्थान, ग्वालियर के री अशोक आनन्द एवं साथियों द्वारा ‘आराधना प्रभु राम की’ शीर्षक से सांगीतिक प्रस्तुति दी गई। शोध संगोष्टी का विषय ‘वाल्मीकि रामायण में संवाद’ था। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि डॉ.तुलसीदास परौहा थे। आपने कहा कि संवाद से सार्थकता आती है। दुष्ट प्रवृत्ति के दो व्यक्ति भी यदि संवाद करते है तो नीति, परोपकार प्रकट हो सकते है। रामायण इसका उदाहरण है। कार्यक्रम का संचालन डॉ.श्री काशीप्रदास त्रिवेदी ने तथा आभार डॉ.सन्दिप नागर ने व्यक्त किया।