उज्जैन में 7, 8, 9 मार्च को देशभर के 70-80 इतिहासकार जुटेंगे
उज्जैन में 7, 8, 9 मार्च को देशभर के 70-80 इतिहासकार जुटेंगे। भारत के इतिहास पर मंथन होगा। अंग्रेजों ने इतिहास में कई चीजें अपने अनुसार लिखी हैं। विमर्श के बाद इतिहास फिर से लिखने की तैयारी है। इसमें वास्तविक घटनाएं, विषय, महापुरुषों के नाम उनका योगदान, उपलब्धियां जैसी चीजें जोड़ी जाएंगी। नई-नई खोज होती जा रही है। नया इतिहास सामने आ रहा है।
पुरातात्विक दृष्टि से, साहित्य की दृष्टि से, आख्यानों के माध्यम से, शिलालेखों के जरिए, प्राचीन काल गणना और विभिन्न माध्यमों से देश का इतिहास लिखा जा रहा है। प्राचीन भारत के इतिहास को पाश्चात्य इतिहासकारों और अंग्रेजों ने विकृत कर रखा है। पुरातत्वविद रमन सोलंकी ने बताया कि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली, विक्रम विवि और विक्रमादित्य शोधपीठ के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम मेंं देश के विभिन्न क्षेत्रों से इतिहासकार शामिल होंगे।
देश के इतिहास का पुनर्लेखन किया जा रहा है। ये इतिहासकार अपने-अपने शोध पत्र लेकर आएंगे। इससे वास्तविक इतिहास हमारे सामने होगा। आजादी के बाद इस पर विराम लग गया था लेकिन इस दिशा में फिर से काम शुरू हुआ है। विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीरामतिवारी ने बताया कि मध्ययुग के पहले का भारत। 800 साल पहले के भारत का इतिहास।
वैदिक काल, रामायण, महाभारत, चंद्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, विक्रमादित्य और राजा भोजका काल और इनके इतिहास के बारे में विमर्श करने के लिए इतिहासकार एकजुट हो रहे हैं। इतिहास के विलुप्तपन्ने उजागर कर समाज के सामने लाने की कोशिश की जा रही है। जैसे राजा विक्रमादित्य का योगदान उनकी उपलब्धियों को उस तरह से नहीं बताया गया, जितना देश में समाज में उनका योगदान रहा है।
अश्विनी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. आरसी ठाकुर ने राज मुद्रिकाएं, रजत मुद्राएं, शीलें, आभूषण, अस्त्र-शस्त्र और अन्य सामग्री का संकलन कर शोध किया। इस पर 16-17 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इससे विक्रमादित्य का गौरवशाली इतिहास सामने आया है।