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मुश्किल है नाथ का हाथ छोड़ कमल का होना...


ना काहू से बैर

राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल- देशभर में चर्चा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हाथ का साथ छोड़ कमल का दामन थामने वाले हैं। यद्द्पि यह सब इतना आसान नहीं है जितना सुनने- देखने में लगता है। मगर पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इंडी गठबंधन में टूट के साथ ही कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ना चाहते हैं।  इसका परिणाम हो सकता है संसद में एनडीए की 400 सीटें। एक बार यह धारणा बनी उसे पाना आसान होगा। 
                 राजनीतिक रूप से भाजपा के भीतर भी इसे लेकर बहुत सकारात्मक चर्चाएं नहीं है। क्योंकि इससे आशंका है कि पार्टी कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस करेगा साथ ही विचार धारा के प्रति पार्टी व सरकार के समर्पण भाव में कमी आएगी। वरिष्ठता के मान से देश की राजनीति में कमलनाथ एक बड़ा नाम है। नाथ व उनके समर्थकों को भाजपा की रीतिनीति में एडजस्ट करना भी आसान नही होगा। मप्र में कांग्रेस छोड़ कर आए ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके समर्थकों को भाजपा में एकरस होने में और भाजपा को उन्हें अपने में समरस करने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। अभी भी गाहे बगाहे गंगा जमुना के जल हरे और नीले रंग की भांति पार्टी संगम में अलग अलग अंतर दिख ही जाता है। अभी सिंधिया और उनके समर्थक विधायक- मंत्री भाजपा में ठीक से मर्ज भी नही हो पाए थे कि नाथ के नए रंग के भाजपा में मिलने की लहर सी उठती दिखाई दे रही है। इससे भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं से लेकर  सबसे ज्यादा चिंतित सिंधिया केम्प की सेना हो रही होगी। दरअसल कांग्रेस से सिंधिया की विदाई की बड़ी वजह मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ ही बने थे।  कहने को उसके बड़े कारणों में नाथ का यह कहना कि उनकी सरकार के खिलाफ 'सिंधिया को सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं'।  इसी तरह अब कांग्रेस से नाथ का मन खट्टा होने का बड़ा कारण उस गांधी परिवार की उपेक्षा और अपमान है जिसमे वे प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी तीसरे बेटे कहे जाते थे और विधानसभा चुनाव हारने पर उन्हें दूध से मख्खी के मानिंद बाहर कर दिया गया। संजय गांधी के साथी रहे जिस नाथ का कांग्रेस में ऐसा सिक्का चलता था वे राज्यों के सीएम तय किया करते थे। उन्हें एक झटके में एमपी पीसीसी चीफ के पद हटा दिया। 
                       इसके अलावा नाथ के कांग्रेस छोड़ने की अटकलें के पीछे सिख दंगों में 23 अप्रैल को कोर्ट में सुनवाई के चलते एसटीएफ की रिपोर्ट भी अहम समझी जा रही है। साथी बैंक लोन फ्रॉड में उनके भांजे रतुलपुरी पर एड का शिकंजा।  अगस्ता वेटलैंड गड़बड़ी से जुड़ी फाइल और उनके पुत्र नकुलनाथ के राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंता भी खास वजह मानी जा रही है। साथ ही उनके जीजा और बहन पर भी आर्थिक गड़बड़ी के प्रकरण दर्ज होना भी भाजपा में जाने की संभावना को बल दे रहे हैं। यह भी समझा जाता है कि एक मुलाकात में यह सब बातें कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी तक भी पहुंचाई जा चुकी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी नाथ के कांग्रेस छोड़ने की अफवाहों व  अटकलें के बीच ईडी -सीबीआई की संभावित कार्रवाई से उपजे दबाव का संकेत भी दिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी नाथ के भाजपा में जाने की संभावनाओं के बीच पार्टी विधायकों और पदाधिकारी से संपर्क कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश से तेज कर दी है। पूरे मामले में कांग्रेस में कमलनाथ समर्थक सज्जन सिंह वर्मा दिल्ली पहुंचकर यह कहते हैं कि कमलनाथ के साथ उनके सहित का समर्थन कांग्रेस छोड़ सकते हैं। फिर  कभी इस बात को खारिज करते हैं और गोलमोल बयान देते हुए कहते हैं अभी नाथ कहीं नहीं जा रहे हैं उनके जाने के अटकलें सिर्फ मीडिया की उपज है। खैर इस सबसे अलग कमलनाथ के कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में जाने की अटकलें अफवाहों के बीच देश और मध्य प्रदेश के राजनीति में हलचल मची हुई है।
असल में लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा देश भर में एक ऐसा वातावरण निर्मित करना चाहती है जिससे उसे संसद में इतना भारी बहुमत मिल जाए जिससे वह अपने हिसाब से नागरिकता व जनसंख्या जुड़े कानून में बदलाव कर सके।  हालांकि नाथ ऐसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री भी नहीं है जिनको लेकर भाजपा में शामिल होने की बात चल रही है। महाराष्ट्र,यूपी-पंजाब से लेकर कर्नाटक,गोवा,उड़ीसा, पूर्वोत्तर के अरुणाचल जैसे राज्यों से नाथ के पहले भी देश भर के 11 पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
                         देखिए आने वाले दिनों में क्या होता है क्योंकि ताकतवरों को तोड़ने में भाजपा भी माहिर है और राजनीति का गणित समझने में कमलनाथ भी काम नहीं है इसलिए कमलनाथ के भाजपा में जाने का है। ऊंट किस करवट बैठेगा यह एक हफ्ते में हो जाएगा। लेकिन इतना तो निश्चित मानिए इस तरह के घटनाक्रम में मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पहले से भी ज्यादा ताकतवर होकर सामने आएंगे। जमीनी कार्यकर्ताओं में पकड़ होने से कांग्रेस में उनकी प्रासंगिकता पहले से ज्यादा महसूस की जाएगी।

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