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हरदा हादसा ... हे राम..!


ये तो वेतन पाने वाले अपराधी हैं...
ना काहू से बैर

राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
                      भोपाल- वैसे तो पूरे देश में ही लेकिन मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि -वेतन पाने वाले अपराधियों से कैसे निपटें। हाल ही में छह फरवरी को हरदा में बम बनाने वाली अवैध फैक्टरी में हुआ विस्फोट और गुना इलाके में हुई बस दुर्घटना के बाद यह कहना और भी आसान हुआ है कि ऑफिस में बैठे अधिकांश अधिकारी कर्मचारी काम नहीं करने का वेतन लेते हैं काम करने की रिश्वत। क्योंकि फैक्टरी में मात्र पन्द्रह किलो विस्फोटक रखने का लाइसेंस था मगर वहां चौदह लाख बम रोज बम बन रहे थे। इस सबके लिए विस्फोटक कहां से सप्लाई हो रहा था और इसे रोकने वाले अफसर क्या कर रहे थे ? 
                       हरदा में बम बनाने की फैक्टरी में विस्फोट हुए और सरकारी आंकड़ों में 12 मजदूरों की मौत के साथ दो सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए। ऐसे में राम राज लाने का दावा करने वाले दल उनके नेतागण और उनकी सरकारें कसौटी पर हैं। मुख्यंमत्री डॉ मोहन यादव का यह ऐलान पर कि ऐसी कार्रवाई की जाएगी लोग याद करेंगे, सब दम साधे इंतजार कर रहें कुछ कठोर निर्णय होने का। राज्य विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है और सत्ता व विपक्ष की तरफ से कुछ ऐसे निर्णय की उम्मीद है कि दोबारा हरदा जैसा हादसा न हो। इसके पहले भी प्रदेश के पेटलावद बस स्टैंड (झाबुआ) पर भयंकर विस्फोट हुआ था और निरीह निर्दोषों की लाशें व उनके अवशेष दीवारों पर चिपके थे, तारों पर लटके थे और सड़क पर बिखरे पड़े थे। सरकारी दावे तब भी बहुत हुए थे।मृतकों के परिजनों को सरकारी सेवा में रखने वादें हुए थे। हरदा हादसे को हुए एक हफ्ता बीत गया है। धमाके के साथ चिता की आग भी ठंडी पड़ रही है और सत्ता व प्रतिपक्ष की संवेदना भी सर्द होती दिख रही है। अखबार और टीवी न्यूज भी विषय बदलते दिख रहे हैं फिर अगली किसी घटना के इंतजार में। लेकिन इस पूरे मामले में सीएम यादव की साख दांव पर लग रही है। सरकारी तंत्र कुछ दिनों में सीएम को यह समझाने में सफल हो जाएगा कि हादसों पर किसी का नियंत्रण नही है और इन्हें काबू में करने का एक सेट पैटर्न है। उस हिसाब से सब काम करते हैं। जनता के बीच से आए नए नए नेतागण जोश और भावुकता में दोषियों को छोड़ेंगे नही , फांसी पर लटका देंगे, जमीन में गाड़ देंगे आदि आदि डायलॉग बोल जरूर देते हैं। फिर जैसे जैसे उन्हें समझ में आता है कि ये सब फिल्मी संवाद बोलने के है बस। इन डायलॉग के हिसाब से एक्शन लेने वाले लीडर अभी बहुत कम बने हैं। सो कुछ दिन बाद नए नवेले नेता जी भी सब समझ जाएंगे और फिर गाड़ी वही पुराने ढर्रे पर चल पड़ेगी। मसलन बड़े गुनहगार अफ़सरों का तबादला और छोटे कर्मचारियों का निलंबन। कुछ दिन बाद फिर सबको मलाईदार पोस्टिंग। अभी तक तो आमतौर से ऐसा ही होता आया है। इसलिए सच मे कुछ कठोर होगा इसकी उम्मीद कम ही लगती है। 

बेहतर तो यह हो कि...
                     सरकार में बैठे छोटे- बड़े अफसरों की जिम्मेदारी तय कर दी जाए। क्योंकि लापरवाही के मामले में तबादला और निलंबन कोई सजा नही है। जिन अफसरों के रहते हादसे हों उन फौजदारी मुकदमे दर्ज किए जाने का  विधानसभा में कानून बने और सजा भी तय हो जाए। जैसे बलात्कारियों को फांसी की सजा तय है। वैसे ही कानून व्यवस्था से लेकर मिलावट, नकली दवा, परिवहन, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज और राजस्व विभाग की लापरवाही से होने वाले घटनाओं पर विभागीय अफसरों पर मुक़दमे दर्ज करने का कानून बने और कठोरता से अमल भी हो। वरना काम नही करने की सैलरी लेने और काम करने की रिश्वत लेने वाले तंत्र का कोई मइया का लाल कुछ बिगाड़ नही पाएगा। मरेगी तो केवल जनता ही। 

बड़े कांग्रेस नेताओं के बारे में...
                     मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के बारे में कुछ बड़ी अटकलें और अफवाहें चल रही है।इस पर जोर देकर खंडन मंडन किसी भी तरफ से नही आ रहा है।भाजपा की वरिष्ठ नेता सुमित्रा महाजन ने जरूर संकेत दिया है कि जो कांग्रेस  नेता भाजपा में आना चाहते हैं वह भगवान राम से माफी मांग कर आ जाएं। दूसरी तरफ प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पूर्व सीएम कमलनाथ को लेकर साफ कर दिया है कि उनके लिए भाजपा के दरवाजे बंद हैं। लेकिन सबको पता है कि बड़े नेताओं के लिए कब दरवाजे खोले जाएंगे इस सबका फैसला दिल्ली दरबार से होगा। लेकिन इतना तय है कि लोकसभा चुनाव के पहले विपक्ष के बड़े नेता भाजपा में शामिल होंगे। विपक्षी दलों की कमर तोड़ने का पूरा रोडमेप बन कर तैयार होगा और उस पर समय समय पर एक्शन होता दिखेगा भी।

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