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हुक्म हुआ कि साँप ही काटेगा कहानी यम नियम पलटने की


कथा 1994 की है । छिन्दवाड़ा ज़िले के अमरवाड़ा हर्रई बटकाखापा इलाक़े में एक शाम जंगलों घाटों में हिचकोले खाते हुए एक सुदूर गाँव में गाड़ी से उतरा। ग्रामीणों से सुख दुःख पूछा तो पाया स्कूल ,आंगनबाड़ी ,पंचायत ,हैण्डपम्प सब ठीक से काम कर रहे हैं । एक सड़क और पुलिया की ज़रूरत है .सब भला चंगा जानकर मैं उस बैलगाड़ी से उठ खड़ा होने को था जहाँ गाँव वाले मुझे घेर कर खड़े थे । तभी मेरी दृष्टि उस ग्राम्य महिला पर गई जो पीछे संकोच और दुःख में डूबी दिखी । मैंने पूछा क्या तकलीफ़ है ।उन्होंने बताया कि कुछ माह पहले पति की मृत्यु हुई है किंतु कोई सहायता नहीं मिली है । मैंने तहसीलदार साब की ओर देखा उन्होंने पटवारी जी की ओर ,पटवारी जी ने विनम्रता से बताया -सर हमारे सहायता नियम में इन्हें पात्रता नहीं है । इनके पति को गुहेरे ने काटा है हमारे नियम में साँप के काटने पर ही पात्रता है । हाँ सर नियम तो यही है -तहसीलदार ने समर्थन किया । मैंने उन विधवा बहन को साँत्वना दी कि जल्दी ही कुछ करूँगा । लौटकर राजस्व के नियम फिर टटोले पर वहाँ तो केवल नागदेवता ही विराजमान थे । पूरे अनुविभाग में दो दर्जन प्रकरण इसी आधार पर निरस्त हुए थे कि मृत्यु गुहेरा के काटने से हुई है .मैंने ऊपर लिखा पढ़ी की पर संशोधन में समय लगना था । नियम प्रजा की भलाई के लिये बनते हैं पर कई बार वे स्वयं समस्या बन जाते हैं । खूब सोच विचारकर मैंने एक फ़ैसला लिया । अपने तीनों तहसीलदारों ,सभी नायब तहसीलदारों ,पटवारियों और कोटवारों की संयुक्त बैठक बुलाई । उन्हें सरल शब्दों में बताया कि अब इस अनुविभाग में गुहेरा किसी को नहीं काटेगा जब भी काटेगा साँप ही काटेगा । सहायता प्रकरण और पंचनामा ठीक से बने यह पीड़ित परिवार की नहीं हमारी आपकी ज़िम्मेवारी है । इसके बाद मैं जहाँ जहाँ एसडीएम रहा  वहाँ कहीं भी गुहेरे ने किसी को नहीं काटा .लिखा पढ़ी भी बेकार नहीं गई । मप्र शासन ने राजस्व के सहायता नियमों में संशोधन कर गुहेरा के अस्तित्व को मान्यता दे दी थी । मैं तब तक पदोन्नत होकर अपर कलेक्टर हो गया था । 

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