बारूद में भुने लोग.. परंपरायें और नियम....
अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
तारीख सात फरबरी,सन 2024!दिन बुधवार!स्थान मध्यप्रदेश की विधानसभा!बजट सत्र का पहला दिन!राज्यपाल का अभिभाषण!सरकार द्वारा छपवाया गया भाषण सदन में पढ़ने आए राज्यपाल महोदय ने अपने ढंग से उसे पढ़ा।विपक्ष ने भी विरोध की रस्म अदायगी की!बाद में विधानसभा अध्यक्ष ने यह व्यवस्था दी कि राज्यपाल महोदय ने भाषण के जो अंश नही पढ़े हैं,वे भी पढ़े हुए माने जायेंगे।लंबे समय बाद ऐसा हुआ है,यह भी बताया गया! इस मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष के अपने अपने तर्क हैं!लोकतंत्र है ! ऐसा होना भी चाहिए!
एक ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिस समय राज्यपाल महोदय ,विपक्ष की टोकाटाकी के बीच, भाषण पढ़ रहे थे ठीक उसी समय विधान भवन से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर हरदा शहर में सरकार के बचाव दल उस पटाखा फैक्ट्री पर बुलडोजर चला रहे थे,जो एक दिन पहले अनगिनत हंसते खेलते लोगों के लिए जिस्म पिघलाने वाली भट्टी में तब्दील हो गई थी! माथा देख कर तिलक करने वाला मीडिया पटाखा फैक्ट्री में जान गवाने वालों की खबर तो दिखा रहा था।लेकिन ऐसा लग रहा था कि जैसे वह गिनती भूल गया है।या फिर उसकी सुई एक दर्जन पर अटक गई है।ऐसा होना आजकल कोई बड़ी या नई बात नहीं है।रोज यही होता है!आगे भी शायद यही या फिर इससे भी ज्यादा कुछ हो? सबसे अहम बात यह है कि जिस घटना को लेकर पूरी सरकार हिली हुई सी दिख रही है उस पर आज विधानसभा के पहले दिन,सदन में, आधिकारिक रूप से कोई बात नही हुई।
न सरकार ने अपनी ओर से यह सोचा कि पटाखा फैक्ट्री में असमय भुन कर मरे लोगों का जिक्र सदन में होना चाहिए!न विपक्ष ने राज्यपाल के बोलने से पहले इस मुद्दे पर बोलने की जहमत उठाई! और राज्यपाल महोदय.. वे भला ऐसा क्यों करते?क्योंकि वे तो सरकार का लिखा भाषण पढ़ने आए थे।वे लीक कैसे तोड़ते?हालांकि महामहिम जमीन से जुड़े जन नेता रहे हैं।उन्हें हरदा की घटना की पूरी जानकारी थी।वे चाहते तो सरकार का "तारीफनामा" का वांचने से पहले हरदा के मृतकों के लिए दो शब्द कह सकते थे।लेकिन उन्होंने लीक नही तोड़ी।यह जरूर हुआ कि वे अपना भाषण अधूरा छोड़ कर ही चले गए। और विपक्ष ! राज्यपाल के भाषण के दौरान टोकाटाकी की।बीजेपी के संकल्प पत्र पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की रस्म अदायगी की।लेकिन नेता प्रतिपक्ष सहित एक भी कांग्रेस विधायक हरदा के मुद्दे पर नही बोला।
ऐसा नहीं है कि उन्हें हरदा याद नहीं था।था..इसीलिए सदन की कार्यवाही गुरुवार तक के लिए स्थगित होने के बाद सदन में कांग्रेस के उपनेता ने हरदा के मृतकों को श्रद्धांजलि देने की बात उठाई।
इस बारे में विधानसभा सचिवालय द्वारा बताया गया कि राज्यपाल के अभिभाषण वाले दिन कार्यसूची में कोई दूसरा मुद्दा नहीं होता है।ऐसी परंपरा है।गुरुवार को सदन में निधन उल्लेख की सूचना में हरदा के मृतकों का उल्लेख होगा।जब यह पूछा कि यदि राज्यपाल महोदय अपनी ओर से हरदा की घटना का जिक्र कर देते तो क्या संसदीय परंपरा का उल्लघंन हो जाता? इस पर उत्तर मिला - राज्यपाल महोदय पर कोई प्रतिबंध नही लग सकता।वे कुछ भी कह सकते थे!
इस संबंध में विधासभा अध्यक्ष का मत जानने की कोशिश की तो पता चला कि वे अतिआवश्यक बैठक में व्यस्त हैं। हां बाद में यह सूचना जरूर मिली कि विधानसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में हुई कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में हरदा में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई और दो मिनट का मौन भी रखा गया।
जहां तक सरकार का सवाल है,उसने साफ कर दिया है कि वह हरदा के लिए सब कुछ करेगी।अलग समितियां बन गई हैं।मुख्यमंत्री हरदा हो आए हैं।बचाव और राहत कार्य चल रहे हैं।दिसंबर 2023 में हुई गुना बस दुर्घटना की तरह इस मामले में भी सख्ती बरती जाएगी!
सब कुछ होगा..सब कुछ किया जाएगा...लेकिन विधान सभा के सदन में पहले दिन अधिकृत तौर पर हरदा का जिक्र नहीं हुआ !होता भी कैसे ? आखिर लाशें तो परम्पराओं पर सवाल नही उठा सकती!और जो "परंपरा" को कंधे पर ढो रहे हैं उनकी नजर लाशों पर कहां पड़ती है?
अगर उनकी नजर कुछ देख पाती होती तो शायद गुना और हरदा के हादसे नही होते?
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