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वरिष्ठों ने ही लगाया कांग्रेस नेतृत्व की मंशा पर पलीता....


राज- काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’, वरिष्ठ पत्रकार

                     विधानसभा चुनाव के बाद से ही यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि कांग्रेस इस बार पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को लोकसभा का चुनाव लड़ाएगी। पार्टी नेता राहुल गांधी की ओर से भी खबर चल रही थी कि कांग्रेस के अधिकांश वरिष्ठ नेता, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री पद के दावेदार, प्रदेश अध्यक्ष लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। मप्र में दो नेताओं का नाम खासतौर पर चला। इनमें एक हैं राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह और दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ। इन दाेनों वरिष्ठ नेताओं ने ही पार्टी नेतृत्व की मंशा पर पलीता लगा दिया। कमलनाथ पहले ही लोकसभा चुनाव न लड़ने का संकेत दे चुके थे, अब दिग्विजय सिंह ने भी कह दिया कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्हाेंने कहा कि वे राज्यसभा सदस्य हैं। उनका सवा दो साल का कार्यकाल बकाया है, इसलिए उनके चुनाव लड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ये दाेनों नेता विधानसभा चुनाव के अगुवा थे। कमलनाथ भावी मुख्यमंत्री के तौर पर प्रचारित किए जा रहे थे और शक्ति के दूसरे केंद्र थे दिग्विजय सिंह। दोनों को मालूम है कि  लोकसभा चुनाव में जीत आसान नहीं है। ऐसे हालात में ये चाहते तो हमेशा की तरह कह सकते थे कि पार्टी नेतृत्व हमारे बारे में जो निर्णय लेगी, हम उसका पालन करेंगे लेकिन ऐसा कहने की बजाय, चुनाव लड़ने से इंकार कर इन्होंने नेतृत्व को ही चुनौती दे डाली।
शिवराज सिंह मप्र में रहेंगे या करेंगे केंद्र की राजनीति....!
                  शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहते और मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद हमेशा कहते रहे हैं कि वे मप्र में रहकर ही लोगों की सेवा करेंगे, केंद्र की राजनीति में कभी नहीं जाएंगे। 2018 के विधानसभा चुनाव बाद जब कांग्रेस सत्ता में आ गई थी और गोपाल भार्गव नेता प्रतिपक्ष बना दिए गए थे, तब भी वे यह कहते थे और अभी 2023 के चुनाव बाद भी उनका यही कहना था। अचानक भाजपा ने शिवराज की जगह डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया, तब भी शिवराज ने मप्र में ही अपनी सक्रियता बनाए रखी। अचानक शिवराज को दक्षिण में काम सौंप दिया गया। राजनीतिक हल्कों में चर्चा चल पड़ी की शिवराज को मप्र से दूर कर दिया गया। यह भी कहा जाने लगा कि अब शिवराज का भाजपा की मुख्य धारा में आ पाना कठिन होगा, क्योंकि यहां मप्र में न तो उनके खास विधायक मंत्रिमंडल में शामिल किए गए थे, न उनके खास अफसरों को अच्छी पोस्टिंग मिल रही थी। इसकी बजाय शिवराज से  जुड़े अफसरों को लगातार लूप लाइन में भेजा गया। अब केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भोपाल में आकर कह दिया कि शिवराज सिंह लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और केंद्र में मंत्री भी बनेंगे। फिर सवाल यही कि क्या शिवराज मप्र की राजनीति छोड़कर केंद्र में जाएंगे? क्योंकि अब तक वे प्रदेश की राजनीति छोड़ने से इंकार करते रहे हैं।
‘मुग्ध’ करने लगी ‘मोहन’ की ‘बांसुरी’ की आवाज....
                  भाजपा नेतृत्व ने मप्र के साथ छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी नए चेहरों को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया था। इनमें मप्र के डॉ मोहन यादव ही ऐसे हैं, जिनकी बांसुरी से निकली आवाज ने हर वर्ग को मुग्ध करना शुरू कर दिया है। प्रदेश के विकास के मसलों के अलावा कोई घटनाक्रम सोशल मीडिया में भी सामने आए, बिना देर किए मोहन की बांसुरी बज उठती है। निर्णय ऐसा आता है कि सब देखते रह जाते हैं। प्रदेश के तीन एसडीएम इसलिए ‘नाप’ दिए गए  क्योंकि एक ने युवकों को सरेआम पिटवाया, दूसरे ने महिला से जूतों का फीता बंधवाया और तीसरी महिला अफसर ने लोगों को चिल्लाकर चूजा तक कह कर िटप्पणी कर डाली थी। इससे पहले एक कलेक्टर इस लिए ‘नप’ गए थे क्योंकि उन्होंने एक ड्राइवर से अपमानित करने वाली भाषा में बात की थी। खास यह है कि इन सभी मामलों के वीडियो सोशल मीिडया में वायरल हुए थे। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब किसी मुख्यमंत्री ने इस तरह वायरल वीडियों के कारण तत्काल कार्रवाई की हो। इसीलिए मोहन की मुरली से सब मुग्ध हैं। डॉ यादव चौतरफा काम करते नजर आ रहे हैं। जयपुर जाकर उन्होंने राजस्थान और मप्र के बीच जल  बंटवारे को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद चुटकियों में निबटा डाला। मोहन ने कहा कि मैने विवाद पर ध्यान ही नहीं दिया। ध्यान समाधान पर केंद्रित रखा और सफलता मिल गई।
‘मामा का घर’ मांग कर उमंग ने पैदा किया नया संकट....
                    कहते हैं राजनीति में सफलता के लिए जितनी मेहनत जरूरी है, उससे कहीं ज्यादा भाग्य का साथ देना। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही ले लीजिए, उनका भाग्य साथ  दे रहा था तो उनके नेतृत्व में चुनाव हारने के बावजूद वे 2020 में फिर मुख्यमंत्री बन गए थे। अब जब उनके मुख्यमंत्री रहते भाजपा को बंपर जीत मिली, तब वे मुख्यमंत्री नहीं बन सके। उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर करने की तैयारी तो हो ही गई है, भाग्य का खेल देखिए उनका सरकारी आवास ‘मामा का घर’ तक खतरे में है। शिवराज ने अपने नाम आवंटित 74 बंगले बी-10 के साथ बी-9  को भी अटैच कर लिया है। बताया गया है कि इसे उन्होंने पहले ही किरार समाज के नाम आवंटित करा लिया था। इस संगठन की प्रमुख उनकी पत्नी साधना सिंह हैं। इस दूसरे बंगले बी-9 को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने मांग लिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को लिखे पर में कहा है कि इस बंगले में उनकी बुआ स्वर्गीय जमुना देवी रहती थीं। वे नेता प्रतिपक्ष रहीं और उप मुख्यमंत्री भी। उनके साथ मैं भी यहां रहता था। इस कारण इस बंगले से मेरा आत्मीय लगाव है। इससे मेरी बुआ की यादें भी जुड़ी हैं। इसलिए यह बंगला मेरे नाम आवंटित कर दिया जाए। यह मांग शिवराज को हैरान करने वाली है। कहीं उमंग की यह मांग भी किसी योजना का  हिस्सा तो नहीं ?
हार के लिए दिग्विजय को तो जवाबदार नहीं मानते लक्ष्मण....!
                         कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पार्टी के अंदर के विवाद निबटाने में माहिर माने जाते हैं। कहीं कोई विवाद होता है तो उन्हें भेजा जाता है। लेकिन  जिस तरह उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह उन पर हमले कर रहे हैं, उसे देखकर सभी भौचक्के हैं। इस बार तो लक्ष्मण ने हद ही कर दी। उन्होंने दिग्विजय द्वारा ईवीएम मशीनों के डेमो दिखाने पर ऐतराज जताया। उन्होंने यह भी कह दिया कि क्यों उनका नाम बंटाढार पड़ा है। वे यहीं नहीं रुके, लक्ष्मण ने कहा कि राहुल गांधी दलालों को तवज्जो देते हैं, कार्यकर्ताओं को नहीं। इस तरह पार्टी नहीं चलती। लक्ष्मण के इन तेवरों के कारण तलाशे जा रहे हैं। उनके निकटवर्ती लोगों से बात करने पर पता चला कि वे चाचौड़ा में अपनी हार के लिए दिग्विजय सिंह को जवाबदार मानते हैं क्योंकि वे जहां भी गए लक्ष्मण की बुरी पराजय हुई। इससे पहले जब कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी, तब दिग्विजय ने अपने बेटे जयवर्धन को मंत्री बनवाया था, उन्हें नहीं। जबकि वे वरिष्ठ थे और चाचौड़ा से जीत कर विधायक बने थे। तब की उनकी नाराजगी अब निकल रही है। खास बात यह है कि  लक्ष्मण हमले पर हमले कर रहे हैं और दिग्विजय सिंह कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। अब लक्ष्मण के भाजपा में जाने के कयास लगाए जाने लगे हैं।

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