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एक कविता से इतिहास रचने वाले को कविता की अंजलि...


- डॉ देवेंद्र जोशी

अब कहां जाऊंगा अपनी उलझन की सुलझाहट के लिए ? तुम तो साथ छोड़ गये...रह - रह कर याद जो आ रही है... कंठ अवरूद्ध लेकिन आंखें रूला रही है... तुम से सीखा कलम पकड़ना वही ये कविता आज ये सुना रही है ...


'वर्धा आंसू से भीगा है खून से सनी है साबरमती
यही सच्ची श्रद्धांजलि है गांधी तुम्हारे प्रति'
इन पंक्तियों से इतिहास रचने वाले अशोक वक्त
अंदर से थे उतने ही नर्म दिखते थे जितने सख्त
सांस- सांस रही कला साधना को समर्पित
कतरा- कतरा किया साहित्य को अर्पित
हर शब्द हर श्रद्धांजलि है तुम्हारे समक्ष बौनी
क्योंकि तुम थे अपने आप में एक अनहोनी
इस फानी दुनिया में बनकर आए  तूफानी इंसान
अपने रंग में  रंगे आजीवन रहे एक जिंदा दिल इंसान
बनावटीपन और लोक दिखावे से रहे सदा दूर
दृष्टि  तुम्हारी पढ़ लेती थी क्या लिखा है सुदूर
वक्तृत्व की दुनिया में आए तो किया सभी को चमत्कृत
सधी हुई समीक्षा  कर देती थी दिल के तार झंकृत
कविता पाठ ऐसा कि हो जाते थे श्रोता घायल
संचालन इतना सटीक कि सब हो जाते कायल
अकादमिक बिरादरी के रहे तुम बेताज बादशाह
नौकरी करियर परिवार की कभी नहीं  की परवाह
अवढर दानी बन लुटाते रहे आजीवन परामर्श
जीवन भर करते रहे सार्थक सृजन और विमर्श
अपनी धुन के पक्के थे तुम  बिरले इंसान 
हर महफिल की बन जाते थे तुम जान
युवा उम्र में फकीराना वृद्धत्व को ओढ़ लिया
अपनी मेधा प्रतिभा को पूरी तरह निचोड़ लिया
फक्कड़पन और यायावरी जीवन स्वेच्छा से चुना
जितना अर्जित किया  तुमने लौटाया उससे दूना
फकीरी की ऐसी शानो शौकत देखी पहली बार 
वक्त की बादशाहत का भी सजता था एक दरबार
सफेद दाढ़ी झुकी कमर और रौबील आवाज
तुम्हारे बाबा होने का दूर से ही कर देती थी आगाज
2 नवंबर को जन्मे और 27 जनवरी को हुए अलविदा
इतनी स्मृतियां है कि लिखना मुश्किल है अब विदा

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