एक आहत सभ्यता की सजल आँखें !
‘सबके राम, सबमें राम’ की भावना को स्थापित करने से बनेगा ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’
- प्रो. संजय द्विवेदी
अयोध्या में 22 जनवरी,2024 को रामलला विराजे और तमाम आँखें सजल हो उठीं। ये आँसू यूं ही नहीं आए थे। ये भारत की लगातार आहत होती सभ्यता को एक सुनहरे पल में प्रवेश करते देखकर भर आई आँखें थीं। अयोध्या को इस तरह देखना विरल है। यह शहर सालों से सन्नाटे में था, गहरी उदासी और गहरे अवसाद में डूबा, शांत और उत्साहहीन। जैसे इतिहास और समय एक जगह ठहर गया हो और उसने आगे न बढ़ने की ठान रखी हो। दूरस्थ स्थानों से अयोध्या आते लोग भी हनुमान गढ़ी और कनक भवन जैसे स्थानों को देखकर लौट जाते। चौदहकोसी परिक्रमा करते और चले जाते। राम के लिए आए लाखों लोगों में बहुत कम लोग त्रिपाल या टाट में बैठे रामलला के दर्शन करते। लेकिन 22 जनवरी का नजारा अलग था। हर राह राममंदिर की ओर जा रही थी। आँखों में आँसू, चेहरे पर मुस्कान और पैरों में तूफान था। आखिर हमारे राम को उनके अपने घर और शहर में सम्मान मिलते देखना अद्भुत अनुभव था। सदियां गुजर गईं लेकिन सत्य स्थिर था। इसी सत्य को देखने सारी दुनिया टीवी, मोबाइल स्क्रीन पर आँखें गड़ाए बैठी थी। विवाद का अंत हुआ और सत्यमेव जयते का उद्धोष सार्थक हुआ। यह समाधान सर्वजनहिताय तो था ही।
अयोध्या के दर्द को समझिए
कभी त्रेता में वनवास गए राम कलयुग में भी एक दूसरी दुविधा के सामने थे। आजाद हिंदुस्तान में भी भारत के इस सबसे लायक बेटे के लिए मंदिर की प्रतीक्षा थी। बाबर के सेनापति द्वारा गिराए मंदिर के सामने पूजा-अर्चना करके आहत समाज यह सोचते हुए लौटता था कि कभी राम का भव्य मंदिर बनेगा। 2024 की यह 22 जनवरी करोड़ों आँखों के सपने सच करने के लिए आई थी। राम भारत के राष्ट्रनायक हैं, जिन्होंने अयोध्या से रामेश्वरम् को जोड़ा। वे दीन-दुखियों के, जीवन जीने के लिए संघर्ष करती आम जनता के पहले और अंतिम सहायक हैं। रामचरित मानस और हनुमान चालीसा की पंक्तियों को दोहराते हुए यह संघर्षरत समाज राम के सहारे ही अपनी जीवनयात्रा को सरल बनाता रहा है। बावजूद इसके आजादी के बाद भी सबको मुक्त करने वाले नायक को मुक्ति नहीं मिली। लंबे समय तक तो वो ताले में बंद रहे। अखंड कीर्तन चलता रहा। किंतु राहें आसान नहीं थीं। अयोध्या आंदोलन की यादें आपको सिहरा देंगीं। 1990 और 1992 की यादें एक गहरी कड़वाहट घोल जाती हैं। राजनीति किस तरह आसान मुद्दों को भी जटिल बनाती है। इसकी कहानी अयोध्या आज भी बताती है। अयोध्या अब अपने सदियों के दर्द से मुक्त मुस्करा रही है।
धैर्य, सहनशीलता और धर्म की जंग थी यह
दुनिया के किसी पंथ,संप्रदाय के महानायक के साथ यह होता तो क्या होता? सोचकर भी सिहरन होती है। किंतु भारत में यह हुआ और हिंदू समाज के अपार धैर्य, सहनशीलता की कथा फिर से दोहराई गयी। एक साधारण मंदिर नहीं अपने राष्ट्रपुरूष, राष्ट्रनायक की जन्मभूमि के लिए भी लंबा अहिंसक संघर्ष सड़क से लेकर अदालतों तक चलता रहा। सही मायने में 22 जनवरी का दिन हमारे राष्ट्रजीवन में 15 अगस्त,1947 से कम महत्त्पूर्ण नहीं है। क्योंकि 15 अगस्त के दिन हमें अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी तो 22 जनवरी को हम सांस्कृतिक, वैचारिक दासता और दीनता से मुक्त हो रहे हैं। यह भारत की चिति को प्रसन्न करने का क्षण है। यह आत्मदैन्य से मुक्ति का क्षण है। यह क्षण अप्रतिम है। वर्णनातीत है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर स्व. राजीव गांधी (अपनी अयोध्या यात्रा में) तक रामराज्य लाने की बात करते हैं। किंतु उस यात्रा की ओर पहला कदम आजादी के अमृतकाल में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बढ़ाया है। इसलिए सारा देश उनके साथ खड़ा है। कांग्रेस नेता श्री प्रमोद कृष्णन ने सत्य ही कहा है कि यदि श्री मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते तो मंदिर निर्माण संभव नहीं होता।
नए भारत के स्वप्नदृष्टा हैं मोदी
रामलला का 496 वर्षों बाद अपनी जन्मभूमि पर पुनःस्थापित होना सबको भावविह्वल कर गया। दुनिया भर में बसे 100 करोड़ से ज्यादा हिंदुओं और भारतवंशियों के लिए यह गौरव का क्षण था। इस मौके पर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख डा. मोहन भागवत जी ने किसी तरह का राजनीतिक संवाद न करते हुए जो बातें कहीं वो भविष्य के भारत की आधारशिला बनेंगीं। संघ प्रमुख ने रामराज्य की अवधारणा को व्याख्यायित करते हुए भविष्य के कर्तव्य पथ की चर्चा की। उनका कहना था-“आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का स्व लौट आया है। संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा। उसका प्रतीक यह कार्यक्रम बन गया है।” प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर साफ कहा कि- “राम आग नहीं ऊर्जा हैं।राम विवाद नहीं समाधान हैं। राम विजय नहीं विनय हैं। राम सिर्फ हमारे नहीं, सबके हैं।” यह बात बताती है कि माननीय प्रधानमंत्री एक नए भारत के स्वप्नदृष्टा हैं। नया भारत बनाने और उसमें एक जीवंत ऊर्जा का संचार करने के लिए प्रधानमंत्री ने न सिर्फ रामलला की मूर्ति स्थापना के लिए 11 दिनों का व्रत विधानपूर्वक बिना ठोस भोजन लिए पूर्ण किया, बल्कि उनकी विराट सोच ने इस आयोजन को और भी अधिक भव्य और सरोकारी बना दिया। देश के विविध क्षेत्रों की माननीय प्रतिभाओं को एक स्थान पर एकत्र कर राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट ने इस आयोजन को विशेष गरिमा प्रदान की। राजनीति से परे हटकर इस घटना का विश्लेषण करना ही इसे सही अर्थ में समझना होगा। तभी हम भारत और उसकी महान जनता के मन में रमे राम को समझ पाएंगें। ‘सबके राम-सबमें राम’की भावना स्थापित कर हम राममंदिर को राष्ट्रमंदिर में बदल सकते हैं। जिससे मिलने वाली ऊर्जा दिलों को जोड़ने, मनों को जोड़ने का काम करेगी। यह अवसर भारत का भारत से परिचय कराने का भी है। जनमानस में आई आध्यात्मिक और नैतिक चेतना को देखकर लगता है कि भारत की एक नई यात्रा प्रारंभ हुई है, जो चलती रहेगी बिना रूके, बिना थके।
डॉ. शिवओम अंबर ने लिखा है-
राम हमारा कर्म, हमारा धर्म, हमारी गति है।
राम हमारी शक्ति, हमारी भक्ति, हमारी मति है।
बिना राम के आदर्शों का चरमोत्कर्ष कहां है?
बिना राम के इस भारत में भारतवर्ष कहां है?
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC), नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं।)