'राज काज' 'राम काज' में समाहित हो 'राम राज्य' की ओर बढ़ा
सामयिक चिंतन
विनोद नागर (वरिष्ठ पत्रकार, समीक्षक व स्तंभकार)
सदियों की प्रतीक्षा के बाद आखिर 22 जनवरी को वह शुभ घड़ी आ ही गई, जिसका असंख्य राम भक्तों को बेसब्री से इंतजार था। वर्षों तक टेंट में रहे रामलला विधि विधान से हुई प्राण प्रतिष्ठा के साथ सोमवार को अपने नवनिर्मित भव्य मंदिर में विराजमान हो गये। टेलीविजन के माध्यम से इस युगांतरकारी धार्मिक पुनर्जागरण प्रसंग का साक्षी बनना दिग-दिगंत में फैले अनगिनत श्रद्धालुओं के मानस पटल पर जीवन के अलौकिक क्षण के रूप में दर्ज हो गया।इसे धार्मिक दृष्टिकोण से संकल्प और साधना की सिद्धि कहें या कठोर तपोसाधना का प्रतिसाद; पर राजनैतिक दृष्टि से प्रधानमन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का 'राज काज' अब 'राम काज' को समाहित कर 'राम राज्य' की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है। कई लोगों को यह विश्लेषण अतिरंजना से भरा लग सकता है।
बहरहाल, विश्व हिन्दू परिषद् के आह्वान पर लंबे समय तक चले श्री राम जन्म भूमि आंदोलन से जुड़े असंख्य राम भक्तों द्वारा ली गई शपथ तैंतीस साल बाद अब जाकर पूरी हुई है। 1991-92 में भीड़भरी सड़कों पर 'जय-जय श्री राम' के गगनभेदी उद्घोष के साथ एक नारा प्रायः सुनाई देता था- "सौगंध राम की खाते हैं, रामलला हम आएंगे..! मंदिर वहीं बनाएंगे..!!"। श्री राम जन्म भूमि, अयोध्या में श्री रामलला के भव्य राम मंदिर के निर्माण का वैश्विक सनातन संकल्प नई सदी के चौबीसवें साल की शुरआत में बाईसवें दिन प्राण प्रतिष्ठा के साथ पूर्ण हुआ। टीवी पर भाव विभोर कर देने वाली इस घड़ी को हमेशा के लिए अपने हृदय में बसा लेने की प्रबल उत्कंठा के बीच श्री राम जन्म भूमि आंदोलन के अंतर्गत कार सेवा के दौरान प्राणों की आहुति देने वाले कार सेवकों के बलिदान को याद करते ही आंखें नम हो जाती हैं और मन भर आता है। तभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संवेदना को झकझोरता यह वक्तव्य कानों में राहत देता है- "राम राज्य की स्थापना की उद्घोषणा के बाद अब अयोध्या की परिक्रमा में कोई बाधक न बन पाएगा.."।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने तो जैसे सबका दिल जीत लेने वाली बात ही कह दी- "अयोध्या में आज रामलला के साथ भारत का स्व अर्थात अभिमान लौट कर आया है.."। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के ग्यारह दिनों के कठोर तप का उल्लेख करते हुए उन्होंने आगे कहा- "उन्होंने (मोदीजी ने) तो अपनी तपस्या से संकल्प को सिद्धी में बदल दिया है। अब हमारी बारी है। कलह व मतभेद को दूरकर युगानुकूल आचरण करने की। सबके साथ मिलकर चलने की"। भगिनी निवेदिता को उद्धृत करते हुए उन्होंने स्वतंत्र देश में नागरिक अनुशासन की आवश्यकता को भी प्रतिपादित किया।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन का पहला वाक्य- "आज हमारे राम आ गये हैं.." सदियों की प्रतीक्षा की अधीरता को थामकर भाव विभोर करने वाला था। मोदीजी आपने भी बड़े पते की बात कही- "आज का ऐतिहासिक दिन केवल एक तारीख नहीं, यह नए कालचक्र का उद्गम है। अब कालचक्र शुभ दिशा में आगे बढ़ेगा। हर युग में लोगों ने राम को जीया है। मंदिर देश को समायोजित करने का प्रतीक है। ये पल हमारे लिए विजय का नहीं विनय का है। राम विवाद नहीं समाधान हैं। राम आग नहीं ऊर्जा है। ये 'वसुधैव कुटुंबकम्' जैसे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की भी प्राण प्रतिष्ठा है। अब आगे क्या..? देव से देश.. राम से राष्ट्र.. की चेतना का विस्तार हो। जय श्री राम! जय-जय श्री राम!!
-------0-------