लक्ष्मण सिंह की ग़ज़ब कहानी
श्री राजीव शर्मा,पूर्व वरिष्ठ आईएएस
१३ जून ८८ की उस गर्म दोपहरी में प्रशासन अकादमी में मप्र के पंद्रह युवा अपनी प्रशासनिक यात्रा प्रारंभ करने इकट्ठे हुए । शिष्ट सौम्य बेला सिंघार ,गंभीर रीता शांडिल्य ,सहज प्रसन्न अलका जायसवाल के अलावा सदा तत्पर विनोद शर्मा ,यूनानी देवताओं सी ज़ुल्फ़ों वाला जफीर,लंकेश जैसे डील डौल वाला भगत सिंह ,हॉकी प्रेमी टोप्पो ,महागुरु मुकेश एक से एक मज़ेदार लोग थे पर सबसे ग़ज़ब कहानी है लक्ष्मण सिंह रतौनिया की । रतौनिया जी ग्वालियर के महा लेखाकार कार्यालय में सेवारत थे । अपने परिश्रम और प्रतिभा से उन्होंने गृहस्थी की पूरी ज़िम्मेदारियाँ उठाते हुए मप्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उप पुलिस अधीक्षक बनने में सफलता पाई । पता नहीं क्या हुआ पुलिस की नौकरी शुरू करने के पहले ही रतौनिया जी का मन ऊब गया । जहाँ लोग सिपाही बनने के वर्षों तपस्या करते हैं वहाँ लक्ष्मण सिंह ने डीएसपी होने से मना कर दिया । लोग चकित और हतप्रभ थे पर लक्ष्मण तो लक्ष्मण से अडिग रहे ।
उन्होंने अगला कमाल जल्दी ही कर दिखाया जब अगले साल वे फिर पीएससी में बैठे और डिप्टी कलेक्टर चयनित हुए । एक बार फिर अख़बारों और पत्रिकाओं में उनकी तस्वीर छपी बधाइयों और शाबाशियों की बौछार होने लगी आख़िर वो छक्के पर छक्के ठोक रहे थे । लक्ष्मण सिंह रतौनिया ने अगला चमत्कार फिर किया .एक डेढ़ महीने की घनघोर ट्रेनिंग में वे इतना त्रस्त हो गए कि हम सबके समझाने बुझाने के बाबजूद उन्होंने डिप्टी कलेक्टरी से भी इस्तीफ़ा दे दिया और बेताल की तरह वापस एजी ऑफिस की दुनिया में लौट गए । कहानी का एंटी क्लाइमेक्स ये है कि जब हमारा बैच ग्वालियर में भू अभिलेख केप्रशिक्षण के लिये गया तो प्रेम वश रतौनिया जी मिलने आये .मैंने उनसे पूछा बंधु अब क्या प्लान है उन्होंने सहजता से बताया यार पीएससी की तैयारी कर रहा हूँ.मैंने पूछा अब क्या बनना है भाई उन्होंने शांति पूर्वक कहा -डिप्टी कलेक्टर