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रामनगरी अयोध्या व शिवनगरी अवंतिका के अन्तरंग सम्बन्ध


रमेश दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार

                  गरुड़पुराण के अनुसार भारत की सात मोक्षदायिनी पुरियों में दो हैं अयोध्या और अवंतिका । इतिहास की दृष्टि से भी रामनगरी अयोध्या और शिवनगर अवंतिका का परस्पर घनिष्ठ संबंध रहा है । राजा इक्ष्वाकु से लेकर रघुकुलतिलक भगवान् श्री रामचंद्र जी तक सभी चक्रवर्ती नरेशों ने अयोध्या के सिंहासन को विभूषित किया । भगवान् श्रीराम के राज्य काल में तो उनकी अवतार-भूमि अयोध्या साकेत हो गई थी तथा वहां के कीट-पतंग तक उनके दिव्य धाम चले गए थे । त्रेता युग में ही अयोध्या उजाड़ होकर अरण्य बन गई थी । कहते हैं श्री रामसुत कुश ने इसे पुनः बसाया था । कालांतर में भी यह नगरी मिटती-बसती रही। अवंतिका और अयोध्या का गहरा संबंध रहा है । जिस प्रकार सतयुग में अवंतिका के चक्रवर्ती राजा इन्द्रद्युम्न ने सुदूर पूर्व में जगन्नाथ पुरी जाकर भगवान् श्री कृष्ण, बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां बनवाकर प्रतिष्ठापित कराई , उसी प्रकार अवंतिका के राजा विक्रमादित्य ने उजाड़ अयोध्या को बसाया । इतिहास कहता है कि एक बार भारत भ्रमण करते हुए राजा विक्रमादित्य अयोध्या जा पहुंचे तथा उन्होंने सरयू नदी के तट पर ससैन्य शिविर डाल दिया ।उस वन में उन्हें यद्यपि कोई तीर्थ -चिन्ह को नहीं दिखे किंतु धर्मनिष्ठ विक्रमादित्य को वह भूमि चमत्कारिक लगी । दैवयोग से खोज करने पर वहां संतों और सिद्ध योगियों के कृपा -प्रसाद से उन्हें उस स्थान के पावन अवध भूमि होने की अनुभूति हुई । कहते हैं वहां स्वर्गद्वार घाट के पास श्री नागेश्वरनाथ महादेव मंदिर में कुश द्वारा स्थापित मूर्ति को पाकर प्रभु की प्रेरणा से राजा विक्रमादित्य ने सुंदर अयोध्या नगरी को बसाया । उन्होंने वहां अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया,  सरोवर व कुएं बनवाए तथा उजाड़ अयोध्या को 2000 वर्षों पूर्व एक नई नगरी बना दिया। 
                     भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार भगवान् शंकर की आज्ञा से रुद्रकिंकर वेताल ने विक्रमादित्य से कहा था कि दस्युओं द्वारा विनष्ट पुरियों और नगरों को शास्त्रोक्त विधि से पुनः बसाओ तथा पृथ्वी पर न्याय पूर्वक शासन करो । उज्जैनवासियों  के  लिए यह गर्व का विषय है कि आज करोड़ों राम भक्तों का सिर्फ चिर-प्रतीक्षित सपना पूरा हो रहा है तथा आक्रांता बाबर द्वारा सन 1528 ईस्वी में विनष्ट श्रीराम मंदिर के 496 वर्षों बाद भगवान् श्रीराम का चित्ताकर्षक एवं मनोमुग्धकारी श्रीविग्रह पुनः उसी स्थल पर प्राण प्रतिष्ठित हो रहा है । स्मरण रहे कि करुणामूर्ति भगवान् श्रीराम भी अवंतिका नगरी तथा अपने आराध्य भगवान् शिव को कभी भूले नहीं ।  उन्होंने वनवास काल में महामुनि परशुराम जी के परामर्श पर चित्रकूट से अवंतिका आकर शिप्रा नदी में स्नान किया,  राजा दशरथ का पिंडदान किया तथा भगवान् महाकाल के न केवल दर्शन किये अपितु रात  भर मंदिर में विश्राम भी किया।

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