खोदकर देखने का विवेक
ध्रुव शुक्ल,वरिष्ठ पत्रकार
अगर खोदकर कुछ पाना ही है तो महाकवि तुलसीदास ने राम भक्ति की स्वयं प्रकाशित मणि को अपने ही हृदय की खदान में खोजने का उपाय बताया है ---
पावन पर्बत बेद पुराना।
राम कथा रुचिराकर नाना।।
मर्मी सज्जन सुमति कुदारी।
ग्यान बिराग नयन उरगारी।।
अर्थात् वेद-पुराण ही पवित्र पर्वत हैं और कई प्रकार की राम कथाएं उन पर्वतों में छिपी सुंदर खदानें हैं। उन खदानों का रहस्य संत स्वभाव वाले लोग ही जानते हैं। कपटवेशधारी असंत नहीं। हमें उन खदानों का पता हमारे ही ज्ञान और वैराग्य रूपी नेत्र बता सकते हैं। हमारी स्थिर और शांत बुद्धि ही इन ज्ञान की खदानों को खोदने की कुदाल है ---
भाव सहित खोजई जो प्रानी।
पाव भगति मनि सब सुख खानी।।
परम प्रकाश रूप दिन राती।
नहिं कछु चहिअ दिया घृत बाती।।
मोह दरिद्र निकट नहिं आवा।
लोभ बात नहिं ताहि बुझावा।।
अर्थात् जो लोग उस भक्ति की मणि को अपने हृदय की गहराई में प्रेम से खोजते हैं, वह सबके सुख की खान उन्हें मिलती है। वह मणि ख़ुद से ही रौशन है। उसे किसी दिये, घी और बाती की ज़रूरत नहीं। उसके प्रकाश में मोहरूपी दरिद्रता किसी के पास नहीं फटकती और लोभरूपी हवा उसकी रौशनी को कभी बुझा नहीं सकती।
तुलसीदास जी कहते हैं कि अपने ही हृदय की खदान में छिपा हुआ यह मणिरूप प्रकाश जो खोज लेता है उससे अज्ञान का अंधेरा दूर छिटकने लगता है और फिर काम-क्रोध-लोभ जैसी दुष्ट प्रवृत्तियां उसके जीवन में अपना डेरा नहीं डाल पातीं और जिन्हें वह शत्रु मान बैठा है वे उसके मित्र हो जाते हैं।
रामचरित रचते हुए तुलसी बाबा याद दिलाते हैं कि जो लोग अपनी देह की देहरी पर ख़ुद से रौशन यह मणिरूपी दीप जलाये रखते हैं उनका जीवन प्रकाशित होकर बिना किसी भेदभाव के सबको अपने प्रकाश के घेरे में ले आता है। शिव रामचरित सुनाते हुए उमा से यही कह रहे हैं कि ---
उमा जे राम चरन रत।
बिगत काम मद क्रोध।।
निज प्रभुमय देखहिं जगत।
केहि सन करहिं बिरोध।।
अर्थात् हे उमा, जो राम के प्रति विनत हैं उनके काम-मद-क्रोध उनसे दूर चले जाते हैं और फिर उनका किसी से विरोध ही नहीं रहता। वे अपने उदार प्रभु की तरह सबको देखते हैं।
देश की राजनीतिक और मज़हबी दुर्दशा संवेदनशील मन को प्रतिदिन विचलित करती है और यह अहसास दिनोंदिन गहरा होता जा रहा है कि देश का जीवन किसी गहरी बेख़ुदी में डूबा चला जा रहा है और वफ़ा की उम्मीद उनसे की जा रही है -- 'जो नहीं जानते वफ़ा क्या है'।
कहां है वह संत और फ़कीरों का समाज जो सबको उनके हृदय की उस खदान का पता बता सके जिसमें परस्पर प्रकाशित करने वाली रौशनी छिपी हुई है। जहां पहुंचकर सब अपनी स्थिर और शांत बुद्धिरूपी कुदाल थामकर अपने ही दिल में बसी रौशनी को खोदकर देख सकें।