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बात यहां से शुरू करते हैं... बनने लगी है शिवराज बनाम सरकार जैसी स्थिति


राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी
 
अरविंद तिवारी
 
बड़ी जीत के बाद मध्यप्रदेश में कम्फर्ट जोन में चल रही भाजपा की परेशानी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही बढ़ा रहे हैं। यहां अभी हालत पुराने मुख्यमंत्री बनाम सरकार जैसी बन गई है। मुख्यमंत्री पद पाने से वंचित रहे शिवराज सिंह चौहान सरकार के कई फैसलों पर जिस अंदाज में उंगली उठा रहे हैं, उससे यह स्पष्ट है कि सबकुछ ठीकठाक नहीं है। दिल्ली के बुलावे के बाद भी शिवराज के तीखे तेवर बरकरार हैं और जिस अंदाज में वे अपनी बात कह रहे हैं, उससे नए सरकार की परेशानी बढऩा ही है। हालांकि तालमेल बैठाने में मुख्यमंत्री मोहन यादव अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं, लेकिन इसका असर दिख नहीं रहा। देखते हैं, आगे क्या होता है।
 
इनका जलवा तो बदले निजाम में भी बरकरार है
 
हालांकि सरकार भाजपा की ही बनी, लेकिन करीब 17 साल बाद मध्यप्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिला। वल्लभ भवन की पांचवीं मंजिल पर 'नए सरकार' के काबिज होने के बाद यह माना गया था कि सारे बदल दिए जाएंगे। इसकी शुरुआत भी हो गई और जब कुछ बड़े चेहरे 1, श्यामला हिल्स से बेदखल कर दिए गए तो लगा कि बाकी भी कुछ ही दिन के मेहमान हैं। इस सबके बीच पूर्व मुख्यमंत्री के बेहद नजदीकी माने जाने वाले संघ के दो प्रिय पात्र लोकेश शर्मा और मनीष पांडे के बेहद सक्रियता और आक्रमक अंदाज में नए मुख्यमंत्री के साथ कदमताल ने कइयों को चौंका दिया है। दोनों की भूमिका पुराने निजाम की तुलना में और अहम हो गई है। जरा इसका कारण तो पता कीजिए। 
 
दिग्गजों की इस लामबंदी पर भी है सबकी नजर
 
मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो पाए कई दिग्गज विधायक अब लामबंद होने लगे हैं। ये वे विधायक हैं, जिन्हें सत्ता और संगठन से कोई डर नहीं है। इस लामबंदी के पीछे बड़ा कारण यह है कि जैसे भी हो, दबदबा बना रहे और नौकरशाही इन्हें अनदेखा न कर सके। इन विधायकों ने संभागीय बैठकों में अपने आक्रमक तेवर दिखाना भी शुरू कर दिए हैं और कई जगह तो इन्होंने अपनी इच्छा के मुताबिक फैसले भी करवा लिए हैं। इन विधायकों की अगुवाई महाकौशल के एक विधायक कर रहे हैं और एक दर्जन से ज्यादा विधायक इनके साथ खड़े नजर आ रहे हैं। 
 
कमलनाथ के भोपाल पहुंचते ही सज गया दरबार
 
विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भले ही कमलनाथ की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से विदाई हो गई हो, लेकिन नेताओं और कार्यकर्ताओं में उनका जलवा अभी भी बरकरार है। चुनाव नतीजों के एक महीने बाद जब वे भोपाल लौटे तो उनसे मिलने वालों की लंबी कतार लगी। अनेक विधायक, हारे हुए उम्मीदवार, पूर्व विधायक और पार्टी के पदाधिकारी कमलनाथ की एक झलक पाने के लिए बेकरार दिखे। कमलनाथ भी बदले-बदले से थे और जो भी उनसे मिला उसे पूरी तवज्जो दी। हां, वे ये बोलना भी नहीं भूले कि मैं दिल्ली नहीं जा रहा हूं, आपके साथ मध्यप्रदेश में ही रहूंगा। बस, इतना ही इशारा तो काफी है।
 
जितनी तवज्जो पटवारी को, उतना ही महत्व उमंग को भी
 
कांग्रेस की दो बड़ी कमेटी, यानि स्टेट इलेक्शन कमेटी और पॉलिटिकल अफेयर कमेटी पर नजर डालें तो सीधे-सीधे तो यही लगता है कि सबको एडजस्ट कर लिया गया है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के समर्थक सब जगह दिख रहे हैं, लेकिन इससे हटकर भी बहुत कुछ है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को दिल्ली वालों ने पूरी तवज्जो दी है। जो नाम पटवारी ने आगे बढ़ाए थे, उन्हें तो सबसे ज्यादा प्राथमिकता मिली ही है, पर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने जो सूची आगे बढ़ाई थी, उसे भी बराबर का महत्व दिया गया है। अब यह कहा जा सकता है कि अगला दौर पटवारी-सिंघार की जुगल-जोड़ी का ही है। 
 
आशीष सिंह यानि पसंद मुख्यमंत्री की, सहमति कैलाश विजयवर्गीय की
 
मध्यप्रदेश में कैलाश विजयवर्गीय का रुतबा दिखने लगा है। सरकार से जुड़े अनेक फैसलों में तो विजयवर्गीय का दखल है ही, लेकिन इंदौर के मामलों में उनकी सहमति के बिना पत्ता भी नहीं खड़क रहा है। इंदौर कलेक्टर का ही मामला लें। टी. इलैया राजा के स्थान पर मुख्यमंत्री अपनी पसंद के किसी अफसर को इंदौर में पदस्थ करना चाहते थे। बरास्ता राघवेंद्र सिंह, आशीष सिंह का नाम तय हुआ। मामला इंदौर का था इसलिए मुख्यमंत्री ने विजयवर्गीय की रजामंदी ली और उनसे हरी झंडी मिलने के बाद ही आदेश जारी किए गए। अब नगर निगम कमिश्नर की बारी है और यहां भी जिस नाम पर विजयवर्गीय उंगली रख देंगे, उसी के आदेश जारी हो जाएंगे। 
 
चलते-चलते
 
मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनने के बाद प्रशासनिक फैसलों में राघवेंद्र सिंह का दखल बहुत बढ़ गया है। फर्क इतना है कि शिवराज सिंह के दौर में जहां इकबालसिंह बैंस और मनीष रस्तोगी कई फैसले मुख्यमंत्री की इच्छा के विपरीत करवा देते थे, वहीं बदले निजाम में जो मुख्यमंत्री चाहते हैं, उसी बात को राघवेंद्र सिंह आगे बढ़ाते हैं।
 
पुछल्ला
 
इंदौर नगर निगम का कमिश्नर कौन बनेगा, यह एक बड़ा सवाल है। तीन-चार नाम चर्चा में हैं, चंद्रमौली शुक्ला, विवेक श्रोत्रिय, आदित्य सिंह और सोमेश मिश्रा। अभी तक तो शुक्ला का पलड़ा भारी है, आगे देखें क्या होता है।
 
बात मीडिया की
 
दैनिक भास्कर के इंदौर यूनिट हेड नरेश प्रताप सिंह गुजरात भेजे गए हैं।‌ वे वहां बड़ी भूमिका में रहेंगे।
 
पीआर के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाले मुकेश श्रीवास्तव लोकसभा चुनाव के पहले अपने नए वेंचर के साथ मैदान में रहेंगे। वेंचर कि स्वरूप में होगा जानने के लिए थोड़ा इंतजार कीजिए।
 
राममंदिर प्राणप्रतिष्ठा पर प्लान हुआ कि एक बडा आयोजन होना चाहिए। फरमान दिया गया कि रिपोर्टर कुछ कलाकारों को आमंत्रित कर उनकी कला के प्रदर्शन के साथ ही पंडितों को बुलाकर स्वस्तिवाचन भी करवाए। इतना ही नहीं इस आयोजन के लिए रिपोर्टर को एक होटल का भी जुगाड़ करने के साथ ही वहीं हाई टी का प्रबंध भी फ्री में करवाना है। रिपोर्टर बेचारा परेशान है समझ नहीं पा रहा है कि थैंक यू सर्विस में इतना सब जुगाड़ कैसे करे।
 
भाजपा की एक पार्षद नई दुनिया के स्टेट एडिटर से मिलने पहुंची। आग्रह किया कि हत्या के एक मामले में आरोपी भतीजे के साथ उनके नाम का उल्लेख न हो। बाद तत्काल मान ली गई और कुछ ही मिनट में रिपोर्टिंग टीम को निर्देश मिल गए।
 
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