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9 दिनों में ही झलक दिखला दी, पांच सालों की !


निरुक्त भार्गव,वरिष्ठ पत्रकार

मोहन जी ने जिस तरह से मध्य प्रदेश के मुखिया का ताज पहनकर हरेक को चकित कर दिया था, वैसे ही अपने कार्यकाल के प्रारंभिक नौ दिनों के परफॉर्मेंस से भी उन्होंने सबको प्रभावित किया है। मामला चाहे वल्लभ भवन में बैठकर निर्णय लेने का हो, फील्ड में जाकर आम सरोकारों को निभाने का या फिर विधान सभा के भवन में आचरण का, उन्होंने एक बेहतरीन छाप छोड़ी है। कहा जा सकता है कि एक बड़ी यात्रा के लिए उन्होंने मजबूती से कदम बढ़ा दिए हैं।

 किसी भी सत्ता व्यवस्था का निज़ाम जब बदलता है, निर्धारित समय और निश्चित वैधानिक प्रक्रिया से तो आम लोगों में उसके कार्य-व्यवहार को लेकर कौतूहल रहता है। और यही सिलसिला इस बार भी स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है। ये बात जरूर है कि  डॉ मोहन यादव को जब इस सूबे की कमान सौंपी गई, तो कयासों की झड़ी-सी लग गई: क्या समीकरण थे? क्या जमावट रहीं? क्या खेले हुए?... बहरहाल उन्होंने उनके सर्वसम्मत चयन को सही साबित करके दिखा दिया है। उज्जैन की जनता ने लगातार सात किलोमीटर तक निकली उनकी अभिनंदन रैली में पलक-पांवड़े बिछाकर उनका जो अटूट स्वागत किया, उससे नागपुर से लेकर दिल्ली तक साफ संदेश गया कि एक सुयोग्य व्यक्ति को सत्ता सूत्र सौंपे गए हैं। 

 समाज जीवन में  उनके उस फैसले या योजना की अभी प्रतीक्षा है, जिससे खुद उनकी और सरकार की सुव्यवस्थित छबि उभरती हो। जो भी आदेश उन्होंने अब तक जारी किए हैं उसकी चर्चा हर कोने में जरूर हो रही है। अपने गृह नगर में सर्द जाड़े वाली उस थकाऊ रात जब उनका ऐतिहासिक स्वागत हुआ, वो डेढ़ बजे पैतृक निवास पहुंचे और अगले दिन प्रात: 5.30 बजे से फिर नियमित दिनचर्या में सक्रिय हो गए।

 भोपाल के सरकारी कॉलेज, अस्पताल और रोड़ों के किनारे बेनूरी रात बिताने को अभिशप्त लोगों को जिस तरह से उन्होंने व्यवहार दिया, वो उनकी संवेदनशीलता को ही प्रकट करता है। सुदूर पांढुर्ना पहुंचकर गरीबों और किसानों की समस्याओं का मौके पर निराकरण कर उन्होंने प्रशासनिक पकड़ की झलक भी दिखला दी। लंबे समय से इंदौर के हुकमचंद मिल के विस्थापित मजदूरों और अन्य देनदारों को दिए जाने वाले करोड़ों रुपए के भुगतान की फाइल को भी फटाफट निपटाकर उन्होंने अपनी कार्य संस्कृति का परिचय करवाया है।

 जब मोहन जी राज्यपाल के अभिभाषण पर सदन में हुई चर्चा का जवाब दे रहे थे, तो उनसे जुड़े 40 साल पुराने प्रसंगों की याद ताज़ा हो गई। उस जमाने में वो उज्जैन के साइंस कॉलेज में छात्र नेता हुआ करते थे। कार्यक्रमों का संचालन करते हुए और भाषण देते समय वो जहां खूब तंज कसा करते थे तो लतीफे सुनाकर वातावरण को स्निग्ध भी कर दिया करते थे। यही दृश्य विधानसभा के तीन दिन के सत्र में भी दिखाई दिए, जब उन्होंने अपनी सरकार का विज़न प्रकट किया और विपक्षियों को भी अपनी वाकपटुता से बांध दिया। 

 देश भर के पत्रकार और बुद्धिजीवी कुछ दिनों पहले मोहन जी के बारे में अटकलें लगाते दिख रहे थे, वो भी अब उनकी कार्य शैली को लेकर आकर्षित जान पड़ते हैं। एक मंजे हुए नेता की भांति वो प्रदेश को नेतृत्व प्रदान करेंगे, ऐसी अपेक्षा उनके हितचिंतक और शुभचिंतक सभी कर रहे हैं।

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