अपना एमपी गज्जब है.. इस जन्नत की हकीकत यही है लाडो...
अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
अखबार बने ही हैं खबर देने के लिए!अच्छी से अच्छी और बुरी से बुरी खबर वे निर्विकार भाव से अपने पाठक को परोस देते हैं।अखबारनबीस होने के नाते अखबार जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं।चाय से पहले अखबार पर नजर डालना स्थाई आदत बना हुआ है। आज भी सबसे पहले अखबार उठा कर उसे ही देखा।चूंकि अब अखबारों के पहले पन्ने खबरों के लिए नही होते हैं इसलिए पन्ना पलटना भी आदत में शामिल हो गया है।एक नया चलन यह भी है कि एक अखबार में अब कई फ्रंट पेज बना दिए गए हैं।यूं भी कह सकते हैं कि जिस पर चाहा फ्रंट पेज लिख दिया।
खैर पन्ना पलटते ही जो खबर सबसे पहले दिखी वह थी नए मुख्यमंत्री का उनके गृहनगर में भव्य स्वागत की।घंटो चले इस स्वागत समारोह में खुद हनुमान जी के पधारने और मुख्यमंत्री का स्वागत करने का जिक्र प्रमुखता से था।
अब यह कौन पूछे और किससे पूछे कि महाकाल की नगरी में क्रेन की रस्सी से हनुमान रूपी नर को लटका कर स्वागतकर्ता क्या संदेश देना चाहते थे।लेकिन तस्वीर यह बता रही थी कि इस स्वागत से नए नवेले मुख्यमंत्री गदगद थे।होना भी चाहिए था क्योंकि बिल्ली के भाग से छींका टूटने की कहावत इन पर चरितार्थ हो रही है। अगले पन्ने सबसे बड़ी खबर का डिस्प्ले उसकी ओर बरबस ही ध्यान खींच रहा था।वास्तव में खबर थी ही ऐसी।राजधानी के अखबार में उसे होना तो वहां चाहिए था जहां हनुमान जी हवा में लटके मुख्यमंत्री का स्वागत कर रहे थे।लेकिन कोई बात नही जहां जगह मिली,और जैसी मिली,वही बहुत है।खबर के मुताबिक राजधानी और आसपास के जिलों के लिए सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में ,एक सप्ताह पहले तक प्रदेश के मुखिया रहे शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहनों को,प्रसव के लिए जरूरी सामान और दवाइयां खुद जुटानी पड़ती हैं।यह स्थिति दो चार दिन में नही बनी है। ऐसा तब भी हो रहा था जब "मामा" गद्दी पर थे।मजे की बात यह है कि लाडली और उनके परिजन इस व्यवस्था को समझते हैं,इसलिए उन्होंने कभी कोई आवाज नहीं उठाई।यह काम खुद अस्पताल के महिलाओं से जुड़े विभाग की प्रमुख ने पत्र लिखकर किया है।उन्होंने अस्पताल के अधीक्षक को पत्र लिखकर अपने विभाग की दयनीय स्थिति की ओर ध्यान खींचा है।उन्होंने माना है कि प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं से ही वह सब सामान मंगाया जाता है जो अस्पताल की ओर से उपलब्ध कराया जाता है।उधर डीन भी मानते हैं कि बजट की परेशानी तो है।
इससे अगले पन्ने पर इतनी ही प्रमुखता से एक खबर और छपी है।खबर बताती है कि राजधानी भोपाल में पिछले चौबीस घंटों में पांच नाबालिग लड़कियों के अपहरण के मामले सामने आए।खबर में विस्तार से ब्योरा दिया गया है। अब अखबार तो अखबार है।वह भी सबसे बड़ा अखबार। विज्ञापनों के साथ साथ दुनियां भर की खबरों से भरा अखबार!उसमें तरह तरह की खबरों के बीच बैंक कर्मियों द्वारा किसानों का पैसा हड़पने और रातापानी अभयारण्य में आपसी लड़ाई में एक बाघ की मौत की खबर भी है।बाघों की दुनिया अच्छी है।वहां दांव पेंच और षड्यंत्र नही होते।जो ताकतवर है वह रहता है।जो कमजोर है उसे मरना होता है।गले लगाकर पीठ में छुरा मारना या फिर पेड़ पर चढ़ा कर उसकी जड़ काट देना वहां नही होता है।वहां बैठने के लिए कुर्सी पेश करके अचानक खींच लेने का खेल भी नही होता है।
इन्हीं खबरों के बीच एक छोटी ,सिंगल कालम ,खबर भी दिखी।यह खबर उन्हीं मामा से जुड़ी थी जो कल तक पहले पन्ने पर ही रहते थे।आजकल मामा प्रदेश के अलग अलग इलाकों में जा रहे हैं।अपनी लाडली बहनों से मिल रहे हैं।सीएम की कुर्सी से मामा की बेदखली से लाडली बहनें और भांजे भांजियां बहुत दुखी हैं।वे मामा के सामने पड़ते ही बिलख पड़ती हैं।बहनों का लाड़ देख खुद मामा पाने आंसू रोक नही पाते हैं।चूंकि 18 साल तक बड़ी बड़ी बातें की हैं इसलिए अब भी कर रहे हैं।शनिवार को वे अपने गृह जिले सीहोर के दौरे पर थे।विकसित भारत संकल्प यात्रा का संकल्प लेने गए थे।वहां बहनों ने उन्हें घेर लिया।बहनों ने बिलखते हुए मामा को फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर न बैठाने के फैसले पर दुख जताया।बहनों के आंसू देख उन्होंने ऐलान किया कि वे महिलाओं के लिए एक संगठन बनाएंगे और उसके संरक्षक खुद बनेंगे।साथ ही यह भी कहा कि अब वे लाडली बहना को लखपति बहना बनाने का अभियान चलाएंगे!वे अपनी आंखे पोछते हुए मीडिया से यह कहना भी नही भूले कि पार्टी उन्हें जो काम देगी वह वे करेंगे।अब उनसे यह कौन पूछता कि आजकल जो वे कर रहे हैं वह सब पार्टी ने करने को कहा है ?
लाडली बहनों के जगत भाई और भांजियों के जगत मामा से अब यह कौन पूछे कि अभी तो जुम्मा का जुम्मा आठ दिन भी नही हुए हैं आपको हटे,तब यह हाल है कि राजधानी में लाडलियों के अपहरण हो रहे हैं।आपके भांजे भांजियो को जन्म देने के लिए सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में आपकी लाडली बहनों को घर से पैसा देना पड़ा रहा है।विधवाओं को पेंशन नही मिल रही है।कौन पूछे कि क्या आपने भागती हुई हारी फौज की तरह खुद सारे संसाधन ध्वस्त कर दिए थे?या फिर सत्ता वापसी के लिए लाडली बहनों को हजार रुपए देकर सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध किया था?सवाल यह भी कि अठारह साल के एतिहासिक शासन में आप सिर्फ सत्ता बचाए रखने में ही लगे रहे।व्यवस्था के मूलभूत ढांचे की ओर देखना आप भूल क्यों गए?बहनों ने तो आपकी बातों पर भरोसा करके आपका साथ दिया! पर आपको सत्ता की चाभी सौंपने वालों को आपकी हकीकत मालूम हो गई थी।इसीलिए उन्होंने आपकी लाडली बहनों को आपके भरोसे नही रहने दिया। कौन पूछे ये सवाल ! बताइए कौन पूछेगा!इस जन्नत की हकीकत इन लाडलियों को कौन बताएगा?कौन..मोहन...वे तो खुद मथुरा छोड़ गए थे !
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