चौपाल से मुसद्दी भगवा पर चढ़ता हरा रंग ?
अरुण दीक्षित ,वरिष्ठ पत्रकार
सुबह के काम निपटा ही रहा था कि अचानक धरमधुरी फोन लेकर सामने आ खड़ी हुईं। मैंने जीप के बोनट पर कपड़ा घुमाते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि उन पर डाली!बदले में उन्होंने आंखे तरेरते हुए कहा - जल्दी फोन पकड़ो ! भइया हैं उखरा से!मैंने लपक के फोन उनके हाथ से लिया और पालागन दाग दिया। मुसद्दी भइया ने अपने स्वभाव के विपरीत बड़े जोर से ठहाका लगाया! कुछ देर बाद जब रुके तो लंबी सांस भरते हुए हमेशा की तरह झंडा बुलंद रहने और जूता पुजते रहने का आशीर्वाद दिया!इतनी देर में मेरे मन की सारी आशंकाएं भी एक्जिट पोल की तरह भ्रामक सिद्ध हो चुकी थीं। मैंने तुरंत भइया की कमजोर नस पर प्रहार करते हुए अपनी लाड़दुलारी भौजी का हाल पूछ लिया।साथ ही भतीजे दुखभंजन की खैरियत भी पूछी।आगे खेत खलिहान की बात करने ही जा रहा था कि भइया ने टोंक दिया। वे अपने उखरवी अंदाज में बोले - सब ठीक हैं यहां।भौजी से लेकर गईया तक और भतीजे से लेकर भइया तक!अब तुम मतलब की बात सुनो!अपनी लंतरानी मत फेंको!
जे सुकुल दद्दा कल से कोई ऐतिहासिक बात बताना चाहते हैं तुम्हें।न तुम्हें फोन करने की फुरसत है और न तुम्हारा फोन लग रहा था।अब पहले दद्दा से बात कर लो।फिर खेत खलिहान की बात करना।यह कहते हुए भइया ने दद्दा को फोन पकड़ा दिया। मैंने पूरी शिद्दत से दद्दा को चरण स्पर्श बोला।दद्दा ने हंसते हुए आशीर्वाद दिया - हमेशा नजर उठी रहे और कमर तनी रहे!इसके साथ ही उन्होंने अपना सवाल उछाल दिया! दद्दा बोले - काहे लल्ला तुम्हें ऐसा नहीं लग रहा है कि तुम्हारे इलाके से देश में "मुगल काल" लौट रहा है ?भगवा पर हरा रंग चढ़ रहा है?जो शहंशाह को नापसंद उसका सिर कलम!और पसंद के गधे को भी तख्त ए ताऊस!न किसी की सुनना न किसी से पूछना ! जो शहंशाह के मन में आया वह फरमान जारी हो गया!
मैंने बीच में टोंकते हुए दद्दा से पूछ लिया -दद्दा देश में भगवा छाया हुआ है और आप हरे रंग की बात कर रहे हैं..मैं कुछ समझा नहीं।ऐसा क्या हुआ जो आपको "रामराज" में अक़बर और औरंगजेब नजर आ रहे हैं!लेकिन दद्दा ने लगभग डपटते हुए कहा - जोड़ी तो ठीक से मिलाओ!अकबर के साथ बैरमखान था औरंगजेब नहीं!सिर्फ किस्सागोई के लिए अकबर के साथ बीरबल का नाम लिया जाता है।औरंगजेब अलग था।यह अलग बात है कि आजकल कुछ कुछ उसी के अंदाज में देश चलाया जा रहा है। मैंने फिर बीच में दद्दा की बात पर कैंची चलाने की कोशिश की।क्या सबेरे सबेरे आप मुगलों की दुनियां में घूम रहे हैं।अब तो उखरा अपने मौला का परिवार भी नहीं बचा।अब आप मुगलों को क्यों कर रहे हो दद्दा? इस पर दद्दा बिदक गए!एकदम तल्ख लहजे में बोले - यू जस्ट शट अप एंड लिशन टू मी !(यह तो आपको बता ही चुका हूं कि हमारे सुकुल दद्दा अंग्रेजों के जमाने के मिडिल पास हैं।नब्बे पार कर गए हैं लेकिन आज भी बिना चश्मे के अखबार पढ़ते हैं)! मुझे लगा कि कुछ गडबड है।मैं चुप हो गया।लेकिन अगले ही पल दद्दा का लहजा बदल गया।वे अपने ठेठ गंगापारी अंदाज में बोले - अरे लल्ला जई घासी मिसुर(पंडित घसीराम मिश्र )कल्ल्लि संझा तै भुसुर भुसुर कर रए हैं। इन्ने जब से टीवी पर एमपी के सीएम के चुनाव की खबर देखी है तब से हमरे कान खाए हैं..दद्दा जौ का भओ? ऐसो तौ मुगल लोग करो कत्त हते!
सुलतान की सदारत में फौज नए इलाका जीतत हती। दिल्ली जाय के सुल्तान अपने खास पट्ठा कौ नई जीती जागीर सौंप देत हते। सब पट्ठन में पट्ठा बहे छांटो जात हतो जो नए लुटे इलाका सै ज्यादा सै ज्यादा बसूली करि पावै और दिल्ली कौ ज्यादा सै ज्यादा मालगुजारी पंहुचाबै! वे मुगल सल्तनत और गद्दी के लै बाप कौ जेल मैं डार देत हते और भैय्यन के संग धोखा करि उनको मूड़ कटबाय देत हते!औरंगजेब नै तौ जहे सब करो हतो।खुद गद्दी पै चढ़ो और बाप कौ सालन जेल मैं राखो ! हमारी न मांनौ तौ एमपी को हाल देखि लेऊ।सुलतान नै पहिले मम्मा के पर काटे।कमान अपने हाथ मैं लई।जनता चिल्लात रहि गई।लेकिन सुलतान ने अपनी "करामात" से चौतरफा जंग जीत लई। बड़े बड़े सूरमा उम्मीद से हते। लेकिन सुलतान नै ऐसो दांव चलो कि मम्मा संग सब चित्त हुई गए। उन्नेे ऐसो जागीरदार चुनो जाके नाम पै न झोला बारे बोले न बोरा वाले।सब चारौ खाने चित्त डरे हैं। ऐसो ही एक दिन पहले छत्तीसगढ़ मैं करो और आगे राजस्थान मैं जहे करिहैं! न बुजुर्गन की सुनिहैं न ज्वानन कौ पुछिहैं! हमई तौ लगति है कि भगवा पै हरो रंग ऐसो चढ़ो है कि बाय महसूस तौ बूढ़े और ज्वान सब कर रए।लेकिन बोलि कोई नाय पाय रओ है। यह कहते कहते सुकुल दद्दा ने कुछ क्षण का विराम लिया! फिर गहरी सांस ली और बोले - नाउ यू टेल मी व्हाट डू यू थिंक अबाउट घासीज ओपिनियन? आई थिंक ही इज राइट!
मैं दद्दा के मुंह से घासी मिसुर की बात सुनकर अचकचा गया।यह तो किसी ने सोचा ही नहीं होगा जो उखरा और आसपास के गांवों में सत्यनारायण की कथा वांचने वाले घासी मिसुर सोच रहे हैं।
मैं कुछ बोलता इससे पहले सुकुल दद्दा फिर बोल पड़े!कोई जल्दी नही है। टेक योर टाइम!तुम्हारी समझ में न आए तो अपने ज्ञानी दोस्तों से पूछ लेना!क्या सच में भगवा हरे की तर्ज पर चल पड़ा है।या हरा भगवे पर चढ़ गया है। और हां यह भी बताना कि हमारा यूपी वाला भगवा बचेगा या फिर उस पर भी हरा चढ़ जायेगा,किसी न किसी आड़ में ? यह कह कर दद्दा ने फोन मुसद्दी भइया को पकड़ा दिया।भइया बोले - चलो लल्ला अब तुम थोड़ी देर रंग रंग खेल लो। जवाब मिल जाए तो फोन कर लेना !
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