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दिग्विजय पर भारी पड़े ज्योतिरार्दित्य, नहीं बच पाए गई गढ़


दिनेश निगम ' त्यागी ',वरिष्ठ पत्रकार

- भाई लक्ष्मण को चाचौड़ा में मिली बड़ी शिकस्त
- बेटा जेवी किसी तरह बचा पाया राघौगढ़ किला

विधानसभा के इस चुनाव में भाजपा को बंपर जीत तो मिली ही, वरिष्ठ  नेता दिग्वविजय सिंह को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। वे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तंज कसने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। पर चुनाव में दिग्विजय पर सिंधिया भारी पड़ गए। दिग्विजय के कट्टर समर्थक और सिंधिया के अधिकांश विरोधी चुनाव हारे ही, उनके मजबूत गढ़ तक ढह गए। भाजपा नेतृत्व ने दिग्विजय के गढ़ों को भेदने की जवाबदारी ज्योतिरादित्य को सौंपी थी। उन्होंने संबंधित क्षेत्रों में जाकर जमकर प्रचार किया था। नतीजा, दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा में बुरी तरह हार गए और बेटा जयवर्धन सिंह किसी तरह राघौगढ़ किले को बचा सका।
भाजपा के बागी के बावजूद हार
- चाचौड़ा विधानसभा सीट को दिग्वजय का गढ़ माना जाता है। वे खुद यहां से चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। उनके भाई लक्ष्मण सिंह दूसरी बार यहां से चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा में बड़ी बगावत हुई थी। पार्टी की पूर्व विधायक ममता मीणा आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़  गई थीं। फिर भी भाजपा जीत गई और लक्ष्मण को पराजय का सामना करना पड़ा। दिग्वजय का यह गढ़ ध्वस्त हो गया।
बमुश्किल जीत सका बेटा जयवर्धन
- राघौगढ़ में दिग्विजय सिंह का किला है। वे 1977 से यहां से चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं। उनके बेटे जयवर्धन सिंह पिछली बार यहां से 46 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे लेकिन इस बार उन्हें पसीना आ गया। वे बमुश्किल 45 सौ वोटों के अंतर से चुनाव जीत सके। अर्थात राघौगढ़ में भी उन्हें चुनौती मिलने लगी है। यहां जाकर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा के लिए प्रचार किया था। जयवर्धन अपने पिता के साथ मिलकर पूरा चंबल- ग्वालियर अंचल देख रहे थे।                                                                                                                                                                                            प्रियव्रत सहित  कई दिग्गज हारे
- दिग्विजय के रिश्तेदार प्रियव्रत सिंह इस बार राजगढ़ जिले की खिलचीपुर सीट से चुनाव हार गए। उनके समर्थक डॉ गोविंद सिंह और केपी सिंह अब तक अजेय थे, लेकिन इस बार दोनों को हार का सामना करना पड़ा। डॉ सिंह को लहार में अंबरीश शर्मा ने हरा दिया जबकि केपी सिंह शिवपुरी में जाकर हार गए। दिग्विजय ने ही उन्हें पिछोर से हटाकर शिवपुरी से  टिकट दिलाया था। पिछोर में केपी सिंह के समर्थक अरविंद लोधी भी चुनाव हार गए। गोविंद और केपी सिंह अब तक सिंधिया परिवार के विरोध के बावजूद चुनाव जीतते आ रहे थे लेकिन इस बार सिंधिया ने ही उन्हें हराने में भूमिका निभा दी। सिंधिया ने ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पिछोर को जिला बनाने की घोषणा कराई थी।
दिग्विजय के ये समर्थक भी हार गए चुनाव
ज्योतिरादित्य की सक्रियता के कारण इस बार दिग्विजय सिंह के अन्य कट्टर समर्थक भी बुरी तरह चुनाव हारे। चंदेरी में विधायक गोपाल सिंह चौहान को हार का सामना करना पड़ा। इनके अलावा जीतू पटवारी, कुणाल चौधरी, प्रवीण पाठक और लाखन सिंह चुनाव हार गए। सेवढ़ा में घनश्याम सिंह को हार का सामना करना पड़ा। इनके अलावा सागर की नरयावली में दिग्विजय के कट्टर समर्थक सुरेंद्र चौधरी फिर चुनाव हार गए। इस तरह इस बार पूरे प्रदेश में दिग्विजय समर्थकों को पराजय का सामना करना पड़ा।
राघौगढ़ में ही मिलने लगी ऐसी चुनौती
 राघौगढ़ में दिग्विजय सिंह के बेट को कड़ी टक्कर देने वाले भाजपा प्रत्याशी हरेंद्र सिंह बंटी बना ने दिग्विजय सिंह को जवाब देते हुए चेतावनी भी दी है। एक वायरल वीडियाे में उन्होंने कहा है कि चुनाव के दौरान दिग्विजय ने पूछा था कि यह बंटी बना कौन है? मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि कि ये बंटी बना बही है जिसने चुनाव में आपके पुत्र के पसीने छुड़ा दिए। उन्होंने कहा कि मुझे जानकारी मिली है कि मेरे भाजपा कार्यकर्ताओं को परेशान करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि कांग्रेस की जीत का जुलूस निकाले, ढोल बजाएं लेकिन मेरे कार्यकर्ताओं को परेशान न करें वर्ना नतीजे अच्छे नहीं होंगे। इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाए।
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