मिट्टी बचाने और उपजाऊ बनाने की है जरूरत
डॉ. चन्दर सोनाने
संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन यूएनसीसीडी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2015 से 2019 के दौरान कुल 3.051 करोड़ हेक्टेयर जमीन का क्षरण हो गया। यानी वर्ष 2019 तक हमारे देश का 9.45 प्रतिशत भूभाग का क्षरण हो गया था। वर्ष 2015 में यह क्षरण 4.42 प्रतिशत था।
इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भारत की कुल बंजर भूमि 4.3 करोड़ फुटबॉल मैदानों के आकार जितनी हो गई है। उक्त रिपोर्ट के अनुसार 25.171 करोड़ भारतीय, जो देश की आबादी का 18.39 प्रतिशत है, इसी अवधि में इस जमीन पर खेती-बाड़ी किया करते थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रिपोर्टिंग वर्ष 2015 से 2018 तक देश के 85.44 करोड़ लोग सूखे की चपेट में थे। यह स्थिति भयावह है। दुखद यह भी है कि इस पर केन्द्र सरकार कतई गंभीर नहीं दिखाई दे रही है।
आपको याद होगा कि ईशा फाउन्डेशन के संस्थापक सद्गुरू ने इसका पहले से अनुमान लगा लिया था। और उन्होंने 21 मार्च 2022 को दिल्ली के ईशा योग केन्द्र से अकेले मोटरसाइकिल पर विश्व के 27 देशों की यात्रा पर निकले थे। इन देशों की 100 दिनों की यात्रा के दौरान सद्गुरू ने 30,000 किलोमीटर की यात्रा की थी। अपने भ्रमण के दौरान वे विश्व के नेताओं से मिलकर मिट्टी बचाओ आंदोलन में भागीदारी का अनुरोध भी कर रहे थे।
मिट्टी या मृदा प्रत्येक प्राणी के लिए आवश्यक है। मिट्टी से ही पेड़, पौधे तथा जीव जन्तु पोषित होते हैं। इसके माध्यम से ही हमें लकड़ी, फल, फूल आदि प्राप्त होते हैं। हम जिस मार्ग से भी चलते है, वह मिट्टी के ऊपर ही बना हुआ है। इस प्रकार इस धरती पर रहने वाला हर एक प्राणी मिट्टी के साथ सीधा जुड़ा हुआ है। किन्तु हाल फिलहाल दुखद यह है कि इसी प्राणदायी मिट्टी में प्रदूषण अपनी अधिकतम मात्रा को भी पार कर चुका है।
यह हम सभी जानते है कि कृषि के बिना भोजन प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उसी प्रकार यह भी एक सत्य है कि मिट्टी कि बिना कृषि भी नहीं की जा सकती। अतः मानव सहित जीव जन्तुओं की भूख शांत करने में मिट्टी का अपना महत्वपूर्ण योगदान है। मिट्टी के बिना किसी भी गाँव, शहर, रेगिस्तान आदि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जल और वायु की तरह ही मिट्टी भी मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। सभी वनस्पति, अनाज, पेड़ पौधो की जननी मिट्टी ही है। कीटनाशक दवाओं का अधिकतम प्रयोग, औेद्योगिक कारखानों का अपशिष्ट मिट्टी के अन्दर दबाए जाने और अन्य अनेक कारणों से आज मिटृटी का प्रदूषण अपने उच्च स्तर पर पुहँच चुका है।
हम मिट्टी के दुष्परिणाम को सामान्यतः नहीं जानते हैं। संक्षेप में देखें कि इसके प्रमुख दुष्परिणाम क्या-क्या है ? यूएनसीसीडी ने बताया कि हर सेकंड एक एकड़ मिटट्ी रेत में बदल जाती है। मिट्टी के दुष्परिणाम का एक और उदाहरण यह है कि आज आठ संतरों में उतने पोषक तत्व है, जितने 100 साल पहले केवल एक संतरे में होते थे। मिट्टी के प्रदूषण को रोकने के लिए ओैर उसे जीवंत बनाए रखने के लिए हम सबको केवल यह करना है कि फसलों को पोषण देने के लिए मिट्टी में केवल जैविक पदार्थ ही डालना चाहिए औेर यह जैविक पदार्थ हमें पर्याप्त मात्रा में पौधों ओैर जानवरों से प्राप्त होता है।
प्रेक्टिशनर डेवलेपमेंट ईकोनॉमिस्ट और इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव डॉ. अरूणा शर्मा ने हाल ही में एक चौंकाने वाली जानकारी दी है कि हमारे देश में विश्व में सबसे ज्यादा जमीन हैं, किन्तु फिर भी हमारी उपज कम क्यों है? उन्होंने बताया कि भारत में कृषि भूमि की कमी नहीं है। यूएस जियोग्राफिकल सर्वे द्वारा जारी एक मानचित्र के अनुसार भारत में 179.8 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि है, जो दुनिया में सर्वाधिक है। इसकी तुलना में अमेरिका में 167.8 और चीन के पास 165.2 मिलियन हेक्टेयर ही है। भारत में ऐसे खेतिहर 86 प्रतिशत हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है। उनके पास कुल 47.3 प्रतिशत कृषि भूमि है। 2 से 10 हेक्टेयर जमीन वाले किसान 13.2 प्रतिशत है, जिनके पास 43.6 प्रतिशत कृषि भूमि है। वहीं चीन में भूमि धारकां की जमीन का औसत आकार 0.6 हेक्टेयर ही है।
डॉ. अरूणा शर्मा ने यह भी बताया कि जब हम चीन की तुलना में भारत की उत्पादकता के आँकड़ें देखते हैं तो यह तर्क स्वतः बेअसर हो जाता है कि छोटे आकार के भूमि धारकों के कारण भारत में कृषि को अव्यवहारिक पेशा माना जाता है। भारत की कृषि उपज 407 अरब डालर की है, जबकि चीन की इससे 3 गुना से भी अधिक यानी 1,367 अरब डालर की है। चीन में प्रति हेक्टेयर 5,810 किलो गेहूँ का उत्पादन होता है, जबकि भारत में ये आँकड़ा केवल 3,500 किलो ही है। वे आगे यह भी बताती हैं कि भारत की तरह चीन में भी ग्रामीण खेतिहर आबादी का प्रतिशत अधिक है। लेकिन बेहतर नीतियों के कारण वे हमसे 3 गुना अधिक उपज ले पाते है। दुनिया में सर्वाधिक कृषि भूमि वाला देश होने के बावजूद हम विस्थापन, किसानों की आत्महत्या और गरीबी के कारण कम उत्पादन कर पाते है। और उत्पादन की लागतें भी हमारे यहाँ अधिक हैं। डॉ. अरूणा शर्मा ने इसका उपाय भी बताया है, वह यह कि हमारे देश में हमारा फोकस कॉर्पोरेटाइजेशन की बजाय सहकारिता पर होना चाहिए। भारत में उर्वरकों की खपत चीन से अधिक है। इसलिए पानी और उर्वरकों के न्यूनतम उपयोग से वैज्ञानिक तरीके से खेती करने की आवश्यकता है।
जहाँ देश में बंजर भूमि दिनों-दिन बढ़ रही है, वहीं देश की मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए वैज्ञानिक उपाय अपनाने की आवश्यकता है, तभी देश में उपलब्ध सर्वाधिक भूमि का अधिकतम उपयोग किया जा सकेगा। और सबसे बड़ी बात यह कि इससे किसान सुखी और आत्मनिर्भर हो सकेंगे। केन्द्र सरकार को इस पर गंभीरता से विचार-विमर्श कर ध्यान देने की आवश्यकता है।
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