सिसकता सर्वहारा वर्ग बनाम हैप्पी दिवाली !
निरुक्त भार्गव,वरिष्ठ पत्रकार
इस दीपावली पर सबसे ज्यादा खुश गरीब और ग्रामीण जन हैं! अमृत काल का मज़ा चखते-चखते वो फिर प्रकृति पर या दैवीय शक्तियों पर आसक्त हो चले हैं! लोकतंत्र इंट्रोड्यूस करने के बाद उनकी ज़िंदगी में भोर जरूर हुई, किन्तु सांझ ढलने तक वही पूर्वकालीन अंधियारा उनके लोक में पसर जाता है! कलियुग के विधाता यानी चुने गए जनप्रतिनिधि उनके हितों की बार-बार और निर्बाध गति से उपेक्षा और अवहेलना करते दिखाई देते हैं! बावजूद इसके, नैतिक और शारीरिक रूप से वो ही मतदाता सबल हो चुका है! विष्णु जी को, गणेश जी को, लक्ष्मी जी को और सरस्वती जी के प्रति मन-ही-मन में असंख्य दीप रोशन कर वो त्योहार मनाने में व्यस्त है...!
इन दिनों नारों, वादों, इरादों, वचनों, संकल्पों और प्रतिज्ञाओं के पटाखे खूब फोड़े जा रहे हैं. जो 20 सालों में या उससे पहले के दशकों में नहीं किया, वो अगले पांच वर्षों में करने की कस्में खाई जा रही हैं. ख्वाबों के जादूगर घर-घर, आंगन-आंगन, मेढ़-मेढ़, खेत-खेत, खलियान-खलियान, पंचायत-पंचायत, चौपाल-चौपाल, बस्ती-बस्ती, बाज़ार-बाज़ार, गली-गली और पगडंडी-पगडंडी घूम रहे हैं. उनकी भजन मंडलियां भी बखूबी रास रचा रही हैं. ऐसी आवभगत हो रही है, मनकों की जैसी जी-20 समिट में इन्द्रप्रस्थ में भी नहीं हुई होगी! वोट देने की गुहार के साथ-साथ दिवाली की बधाई के संदेशों से भी मोबाइल के एप भरे पड़े हैं.
कितनों ने धनतेरस की सोना-चांदी काटी? रूप चौदस ने किन-किन का मुखौटा सजाया-संवारा? अमावस की रात कौन-कौन ने कितने-कितने के गहने-कपड़े पहने? कितनी धनराशि आकाश गंगा तक अपनी पहुंच बनाने के लिए बमों को जलाने पर खर्च किए गए? मिठाई बेचने और खरीदने के रिकॉर्ड किस व्यापारी-व्यवसायी के नामे लिखे गए? किसके शो-रूम पर दो पहिया-चार पहिया वाहनों, गूगल टीवी-वाशिंग मशीन-फ्रिज-मोबाइल फोन-लैपटॉप-कंप्यूटर-एयर कंडीशनर जैसे तथाकथित मॉडर्न और अति-आवश्यक साजो-सामान की सर्वाधिक बिक्री हुई?
अब बहुत घुटन होने लगी है, सत्य और सरोकारों की बात करने पर. उठाइगिरे-टाइप के लोग नुक्कड़ों पर बेचे जाने वाले तमगे लेकर अच्छाइयों और सच्चाइयों के पैरोकारों का दमन करने पर उतारू हैं. नैराश्य की कई सारी बाते हैं: स्मार्ट सिटी में गुजर-बसर करने वाले उटोपिया-वासी तस्वीर में न तो खुद एक हसीन रंग भरना चाहते हैं और न बरस-दर-बरस उसी तस्वीर का सही रूप दिखाने वालों को सपोर्ट करने के ही इच्छुक हैं!
बहरहाल, इस राज्य का देहाड़ी मजदूर और सुदूर का मेहनतकश मनुष्य इस बात पर संतोष कर सकता है कि जो राज्य के महाराजा हैं, उनकी इनकम भी लगातार गिर रही है, 2006 से उठाकर और 2023 तक पहुंचकर! इस अनोखी दिवाली का ही ये सेलिब्रेशन है कि जैसे-जैसे मतदान की तारीख़ नजदीक आ रही है, ईडी/सीबीआई/आईटी की रेड राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों और उनके परिजनों या पसंदीदा कारोबारियों पर पड़ रही है!
तथ्य, एक नज़र:
(1) मध्यप्रदेश की एक तिहाई से अधिक आबादी गरीबी के नीचे रहती है.
(2) एमपी भारत का चौथा सबसे गरीब राज्य है बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश के बाद.
(3) इस सूबे में कोई 2.5 करोड़ से अधिक लोग गरीब हैं.
(4) वर्तमान अनुमानित जनसंख्या लगभग 8.77 करोड़ है.
(5) कुल जनसंख्या में से 27.63 फीसदी लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं.
(6) यहां कि जनसंख्या का लगभग 72.37 प्रतिशत भाग गांवों में निवास करता है.