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कब तक शिप्रा मैली होती रहेगी ?


संदीप कुलश्रेष्ठ
               और एक बार फिर शिप्रा मैली हो गई। पतितपावन शिप्रा नदी खुद अपने ऐसे लोगों से जो अपने आप को शिप्रा उद्धारक के रूप में प्रस्तुत करते है उनके द्वारा बनाई गई योजनाओं से पीड़ित है। सालों-साल हो गए। शिप्रा की सुध लेने के नाम पर किसी ने वास्तव में शिप्रा की सुध नहीं ली। आज भी शिप्रा मैली हो रही है। कब शिप्रा का उद्धार होगा ? यह प्रश्न शाश्वत है।
90 करोड़ रूपए की खान डायवर्सन योजना -
                सिंहस्थ 2016 में राज्य सरकार द्वारा श्रद्धालुओं को स्नान के लिए शिप्रा का साफ पानी मिले इसके लिए 90 करोड़ रूपए की लागत से खान डायवर्सन योजना बनाई गई। किन्तु यह पूरी राशि पानी में बह गई है। इसका लाभ न तो शहर को मिला और श्रद्धालुओं को भी पूरी तरह नहीं मिल रहा है और बदस्तूर खान नदी का गंदा, बदबूदार और दूषित पानी लगातार शिप्रा में मिल रहा है। इसे कोई रोक नहीं पा रहा है। 
फिर हुई शिप्रा दूषित -
                खान डायवर्सन योजना में ग्राम राघौ पिपलिया से खान नदी को पाईप लाईन के जरिये कालियादेह महल से वापस शिप्रा नदी में छोड़ा जा रहा है। 19 किलोमीटर लंबे इस पाईप लाईन का दूसरा छोर कालियादेह महल के पास है। इससे अभी वर्तमान में केवल 5 प्रतिशत पानी ही बाहर जा पा रहा है। खान नदी के शत प्रतिशत गंदे पानी को छोड़े जाने वाली यह खान डायवर्सन योजना पूरी तरह से फेल सिद्ध हो चुकी है। अभी राघौ पिपलिया के बेरेज से जहाँ से डायवर्सन की लाईन डाली गई है, गंदा पानी ओवर फ्लो होकर सीधा शिप्रा में मिल रहा है। इसे देखने वाला कोई नहीं है। श्रद्धालु बेबस है। 
दूषित पानी से स्नान को मजबूर श्रद्धालु -
               13 नवंबर को सोमवती अमावस्या का पर्व है। इस दिन हजारों श्रद्धालु त्रिवेणी सहित रामघाट के विभिन्न घाटों पर स्नान के लिए आते है। बाहर से आने वाले श्रद्धालु मैली शिप्रा के प्रति अनजान हैं। वे जब भी आयेंगे और स्नान करेंगे तब उनके दुख की कोई सीमा नहीं रहेगी। वे दूषित और गंदे शिप्रा के जल में स्नान को अभिशप्त रहेंगे। जिला प्रशासन आँखें मूंदे है। त्रिवेणी पर बना मिट्टी का कच्चा बाँध भी खान नदी के दूषित पानी से बह गया है। इसकी बार-बार मरम्मत करना और फिर इसका पानी में बह जाना सुनियोजित ढंग से भ्रष्ट कमाई का जीता जागता उदाहरण है। इसकी मरम्मत या फिर से बनाने पर किसी का ध्यान नहीं है। जिम्मेदार मौन है और श्रद्धालु लाचार। 
शिप्रा के उद्धार के लिए बने ठोस योजना -
               90 करोड़ रूपए में बनी खान डायवर्सन योजना आज पूरी तरह से असफल सिद्ध हो चुकी है। इसी प्रकार 600 करोड़ रूपए की क्लोज डक्ट योजना बनाई गई है, जिसे राज्य सरकार से मंजूरी भी मिल चुकी है, किन्तु यह भी खान डायवर्सन योजना की तरह असफल सिद्ध होगी। शिप्रा के उद्धार के लिए अब ठोस और व्यवहारिक योजना बनाने की सख्त आवश्यकता है। शिप्रा नदी का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश की महू छावनी से लगभग 17 किलोमीटर दूर जानापाव की पहाड़ियों से माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम के उद्गम स्थान के रूप में भी विख्यात है। अपने उद्गम स्थल से यह नदी 4 जिलों से होकर बहती है। जानापाव से यह नदी इंदौर जिला, देवास जिला और उज्जैन जिला होती हुई रतलाम जिले में बहती हुई चंबल नदी में बहती है। कुल 195 किलोमीटर लंबी बहने वाली इस नदी का सर्वाधिक 93 किलोमीटर हिस्सा उज्जैन शहर और जिले में बहता है। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी का काफी पौराणिक महत्व भी है। किन्तु वर्तमान में इसके हाल बदहाल है। 
समर्पित और जल विशेषज्ञ को दी जाए जिम्मेदारी - 
                  शिप्रा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए जो भी योजना बनाई जाए वह किसी शासकीय विभाग को नहीं सौंपते हुए विषय विशेषज्ञ को यह जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। वर्तमान में देश में अनेक विद्वान इस क्षेत्र में अपनी सेवा दे रहे हैं। इनमें प्रमुख है पद्मश्री और पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, जलपुरूष श्री राजेन्द्र सिंह, पद्मश्री श्री महेशचन्द्र शर्मा, जलयोद्धा श्री उमाकांत पांडे आदि। ये ऐसे नाम है, जो इस क्षेत्र में अपने सेवा कार्य के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। उसकी सेवाएं इस कार्य के लिए राज्य शासन द्वारा ली जा सकती है। जब इस क्षेत्र के माहिर सेवाभावी लोग इस कार्य से जुड़ेंगे तो निश्चित रूप से शिप्रा का उद्धार होगा। अन्यथा यदि विभागों को जिम्मेदारी दी गई तो ऐसा ही हाल होगा, जैसा कि खान डायवर्सन योजना का हुआ !
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