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‘बेबस अन्नदाता’


निरुक्त भार्गव,वरिष्ठ पत्रकार

चुनावों की जिस रंगत को शहरी इलाकों और महानगरों में उभारने की कोशिश की जाती हैं, वैसी  छटा ठेठ ग्रामीण अंचलों से गायब रहती है. राजनीतिक दल सत्ता हथियाने के लिए किसानों के नाम पर बहुतेरे हथकंडे आजमाते हैं. असल में खेती-किसानी से जुड़े लोगों तक उन तथाकथित हितैषी योजनाओं का सीधा-सीधा लाभ और प्रभाव दिखाई नहीं देता. स्वतंत्रता काल की अमृत बेला में भी काश्तकार, उनका परिवार और खेतिहर मजदूर ठगे से दिखाई देते हैं.  

 ये एक अकाट्य हकीकत है कि बीते दो दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क बनाने और घर-घर बिजली पहुंचाने के जबरदस्त काम किए गए हैं. छोटे से छोटे किसान के पास आज अपना खुद-का पक्का मकान है. मगर, उससे बात नहीं बनती. भले-ही लोगों की आकांक्षाओं को आकाश तक ले जाए जाने के जुमले खूब  उछाले जाते हों, खेतों पर घनघोर मेहनत करने वाला इंसान आज भी उपेक्षित महसूस करता है. अलसुबह शुरू होने वाली उसकी जद्दोजहद थमने का नाम ही नहीं लेती, दिन-भर, महीने-भर, साल-भर और जिंदगी-भर!  

 मोटे तौर पर एक किसान परिवार साल भर में दो ही फसलें ले पाता है. वो क्या चाहता है: समय पर प्रमाणित बीज मिले और जरूरत के हिसाब से रासायनिक खाद मिले. बारिश का सीजन हो और जब ओला-पाला पड़े तो वो अपने घरों से जल्द से जल्द खेतों तक पहुंच जाए. और जब फसल आ जाए तो वो लागत से ज्यादा मूल्य पर अपना उत्पाद बेच सके. हरेक किसान की उम्मीद होती है कि अगर उसे गेहूं अथवा सोयाबीन या इसी तरह की मुख्य फसल को उगाने में प्रति बीघा यदि दस हजार का खर्चा बैठ रहा है तो वो घाटा न खाए.

 जरा बताइये: खेतों तक सड़क बनाने की बड़ी-बड़ी योजनाएं कहां गुम हो गईं? नदियों, नहरों और तालाबों के जरिये खेतों तक सिंचाई का पानी ले जाने की बातें कहां ओझल हो गईं?  निजी बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को साधारण किसान की जमीन गिरवी रख उनको सीमा से ज्यादा लोन देने का अख्तियार क्यों दिया गया? किसानों की बड़ी आबादी को प्रकृति के भरोसे क्यों छोड़ दिया गया? अन्नदाता को जमींदारों, जागीरदारों और धन्ना सेठों की अधीनता स्वीकारने की तरफ क्यों धकेल दिया गया?    

 राज्य में खेती का सकल फसली क्षेत्रफल 285.61 लाख हेक्टेयर है, जिसमें एकल फसल चक्र का क्षेत्रफल 152.05 लाख हेक्टेयर से अधिक है. राज्य में 98.44 लाख से ज्यादा किसान हैं, लेकिन इनमें से 76 फीसदी से ज्यादा किसान लघु और सीमांत श्रेणी के हैं. यहां कृषि प्रमुख आर्थिक गतिविधि है. राज्य की 70 प्रतिशत आबादी कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगी हुई है. सोयाबीन, चना, उड़द, तुअर, मसूर, अलसी के उत्पादन में यह राज्य देश में पहले स्थान पर है; मक्का, तिल, रामतिल, मूंग के उत्पादन में दूसरे और गेहूं, ज्वार, जौ के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है. पंजाब में प्रति कृषि परिवार औसत मासिक आय सबसे ज्यादा 26,701 रुपए है, राजस्थान में 12,520, सिक्किम में 12,447, तमिलनाडु में 11,924 जबकि मध्य प्रदेश में महज 8,339 रुपए मासिक आय प्रति कृषि परिवार है.

 2001 में कुल कामकाजी आबादी का लगभग 71.48 प्रतिशत (18.4 मिलियन लोग) किसानों और खेत मजदूरों के रूप में कृषि से जुड़े थे या सीधे जुड़े हुए थे। 2011 में यह बढ़कर 82.89 प्रतिशत (22 मिलियन लोग) हो गया है यानी 3.598 मिलियन की वृद्धि 10 वर्ष में हुई.  सबसे बड़े कृषि राज्य  उत्तर प्रदेश में पुरुषों और  महिलाओं की औसत कृषि मजदूरी दर क्रमश: 238 व 223 रुपए प्रतिदिन है. पश्चिम बंगाल में 259 व 236 जबकि अखिल भारतीय औसत 281 व 244 रुपए प्रतिदिन है. मध्य प्रदेश के आंकड़े अनुपलब्ध हैं.

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