नेता फिर इम्तहान देने आ रहे हैं क्या जनता पेपर सेट कर रही है?
ध्रुव शुक्ल,वरिष्ठ पत्रकार
जनता जी, आपको ही हर पांच साल में नेताओं की परीक्षा लेना पड़ती है। आपको याद होगा कि प्रजातंत्र की परीक्षा नियंत्रक आप ही हैं। पिछले कई चुनावों से यही देखने में आ रहा है कि शायद ही कोई नेता मास्टर आफ रिपब्लिक की डिग्री ले पाया हो।
जनता जी, आपको अच्छी तरह मालूम है कि संसदीय क्षेत्रों से लेकर पंचायतों तक बने परीक्षा केन्द्रों में कई अंगूठा छाप नेता परीक्षा में बैठ जाते हैं और जात-पांत के नाम पर फर्जी परीक्षा पास करके संसद और विधान सभाओं में नौकरी पा जाते हैं और आपके पढ़े-लिखे बाल-बच्चों की चिंता करना भूल जाते हैं।
जनता जी, माफ़ करें, आपका परीक्षा नियंत्रण ठीक नहीं हैं। देखने में आता है कि आप अपने पेपर खु़द ही आउट कर देती हैं। परीक्षा में बैठने वालों को यह कैसे पता चल जाता है कि किस परीक्षा केन्द्र में आप किस जात-पांत में कितनी बंटी हुई हैं और आपसे वोट कैसे झटके जा सकते हैं?
जनता जी, अगर आप जात-पांत के आधार पर संसदीय और पंचायती परीक्षा केन्द्रों का अलग-अलग पेपर सेट करने के बजाय पूरे देश के जन-जीवन की एकता को आधार मानकर एक ही पेपर सेट करने लगें तो जात-पांत के पेपर आउट करके सत्ता का गठबंधन करने वाले नकलची नेता लोकतंत्र की कठिन परीक्षा से बाहर हो जायेंगे और वे लोग जन-प्रतिनिधि बनेंगे जो प्रेम और भाइचारे के ताने-बाने से बुनी हुई देश की समृद्धि में भरोसा करते हैं।
जनता जी, आपके परीक्षा नियंत्रण में सबसे बड़ी भूल यह है कि अभी जो लोग चुनाव जीत रहे हैं उनका देश के जीवन दर्शन और इतिहास से लगाव ही नहीं है। उनने तो जाति और संप्रदाय के बाड़ों में उन महापुरुषों को भी क़ैद कर लिया है जो जीवन भर बहुरंगी देश की अखण्डता का सपना साकार करने के लिए मर मिटे। जनता जी, तुम्हारे नेता अब अपने अज्ञान के पाठ्यक्रम बनाकर तुम्हारे बच्चों को अधकचरी समझ से भर रहे हैं।
जनता जी, अभी जो राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय के नाम पर लोकतंत्र चल रहा है, यह परीक्षा माडल तो उन बाहरी लोगों ने बनाया है जो हमारे ही संसाधनों को लूटकर हमें अपनी साहूकारी के जाल में फांसते जा रहे हैं। इस माडल पर अब तक जो पेपर सेट होता आया है उसमें लोकतंत्र की वास्तविक परीक्षा नियंत्रक जनता ही अपने नेताओं की परीक्षा लेने में असहाय है।
जनता जी, आप कैसी परीक्षा नियंत्रक हैं जो खुद एक राजनीतिक वोटर बनकर रह गयी हैं और अभी भी सामाजिक-आर्थिक न्याय को तरस रही हैं। आपको गांधी जी वाली छोटी पंचायतों और नगरी निकायों की याद ही नहीं आती जो आपसी सहयोग और पारंपरिक हुनरमंदगी के बल पर अपनी स्थानीयता में देश के जीवन को आज भी संभाले रख सकती हैं।
जनता जी, अबकी बार ऐसा कठिन पेपर सेट करने की ठान लीजिए कि जात-पांत और संप्रदाय के नाम पर जनमत के लुटेरे परीक्षा में फेल हो जायें। वे गचट्टी साबित हों और वे लोग परीक्षा में उत्तीर्ण हों जिन्हें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के भेद से ऊपर उठकर सबको साथ लिए चलने की गहरी लोकतांत्रिक समझ हो और जिनका मन पूरे देश से मिला हुआ हो।
जनता जी, अभी तो आपको देखकर यही लग रहा है कि नेता ही अपने मन के पेपर सेट कर रहे हैं। मनमाने परीक्षा केन्द्र स्थापित करके परीक्षा देने का नाटक कर रहे हैं। खुद ही कापी जांच रहे हैं और ख़ुद ही रिजल्ट घोषित कर रहे हैं। जनता जी, राजनीति आपके नियंत्रण से बाहर हुई जा रही है।