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स्वर्णमृग का पीछा कर रहे हैं राम ठण्डा पड़ा है चूल्हा सीता की रसोई में


ध्रुव शुक्ल,वरिष्ठ पत्रकार

बेकाम ही राम-राम रटने वाले राजनीतिक वोटधारियों  को पूरी रामायण एक बार फिर पढ़ लेना चाहिए। महाकवि तुलसीदास अपने रामचरित मानस में कहते हैं कि --- मनुष्य सहित जितने भी प्राणी हैं, वे सब सिया-राममय हैं। सीता-राम की प्रीति बड़ी पुरानी है। सीता के बिना राम अधूरे हैं। सीता की धरती में राम चेतन बीज की तरह बोये गये हैं। इस खेती-किसानी से जो आध्यात्मिक फसल आती है उसी से सबका पालन-पोषण होता है। कहावत है कि --- अकेले राम किस काम के। सीता के बिना अकेले राम का राज्य नहीं चल सकता।

राज्य और प्रजा का यह कर्तव्य है कि राम की धरती राम के पास बनी रहे। अगर देश के जन ख़ुद उसकी निंदाई-गुड़ाई और देखरेख नहीं करेंगे तो कोई बाज़ारू राजनीतिक बहुरूपिया उसका हरण कर लेगा। इक्कीसवीं सदी में भारत के लोगों को फिर रामायण पढ़कर सोचना पड़ेगा कि कोई छलवेशधारी बाज़ारू मारीच राम को सीता की धरती से कहीं दूर न ले जाये। रामायण में सीताहरण ऐसे ही तो हुआ था जब अकेले राम सोने के मायावी हिरन का पीछा करते-करते सीतारूपी धरती से बहुत दूर चले गये तो मायावी बहुरूपिया रावण सीता को हर ले गया। 

क्या भारत के सत्ताकांक्षी राजनीतिक दलों को यह नहीं दिख रहा कि सीता की धरती संकट में फंसी हुई है। बाज़ाररूपी मायावी मारीच सोने का हिरन बनकर राज्यसत्ता और भारतीय समाज को अपने पीछे दौड़ा रहा है। घर-घर के राम झोला लेकर लूट के बाज़ार की तरफ़ दौड़े चले जा रहे हैं, थककर घर लौट रहे हैं और सीता की रसोई का स्वाद बिगड़ रहा है। लाखों घर ऐसे हैं जहां सीता की रसोई में चूल्हे ठण्डे पड़े हैं। सीता-राम की मिली-जुली खेती-किसानी और गृहस्थी उजड़ रही है, लुट रही है।

भारत की राजनीतिक सत्ता संभालने वाले राजनीतिक दल ही देश में आयातित बाज़ार यज्ञ के अनुष्ठानों में भागीदार होकर संसाधनों की लूट को खुली छूट दे रहे हैं।क्या वे विश्व व्यापार संगठन के द्वारा निर्धारित यज्ञ-विधि को बदल सकते हैं? अगर यह बदलाव संभव है तभी सियाराम के जाप करने का कोई मतलब होगा अन्यथा सीता की धरती का हरण कैसे रोका जायेगा? सीता की धरती से जुड़े बिना जात-पांत की राजनीति में फंसे जीतनराम किस काम के?

महात्मा गांधी पराधीन देश में राम की तरह अकेले पैदल चलते हुए सीता की धरती को ही तो खोज रहे थे। वे जानते थे कि राम साध्य तो हैं पर सीता साधन हैं। साधनों के बिना साध्य को नहीं पाया जा सकता। इसीलिए महात्मा गांधी यही कहते रहे कि अगर भारत के लोगों को उनसे छीने गये साधन फिर लौटा दिए जायें तो जीवन से विषमता बिदा होने लगेगी और आपसी बैर-भाव नहीं रहेगा। यही तो उस लोकतंत्र का लक्षण है जिसे रामायण रामराज्य कहती है।

महात्मा गांधी का राम किसी अयोध्या नगरी के राजा दशरथ का पुत्र नहीं है। वह राम तो मानव देह और सभी प्राणियों के हृदय में उस सृष्टि चेतना का प्रतिनिधि है जो हिन्दू-मुसलमान-ईसाई और बाकी सबमें बिना किसी भेदभाव के समायी हुई है, जहां प्रकृति सबको आश्रय देने में कोई संकोच नहीं करती। रामायण कहती है कि देह से दूर कोई मंदिर नहीं। देह ही राम का मंदिर है --- दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार, जब जरा गर्दन झुकायी, देख ली।

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