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सिर्फ़ शासक ही कह रहे हैं --- आल इज वेल !


ध्रुव शुक्ल,वरिष्ठ पत्रकार

तेजी से बदलती दुनिया में जुल्म और लूट के नये रिवाजों के बीच करोड़ों लोग बेबस जीवन गुजार रहे हैं। लोग निर्वासित होकर भाग रहे हैं। युद्ध से जान बचाकर भागते लोगों पर बम बरस रहे हैं। उन्हें राहत शिवरों में जगह नहीं मिल रही। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल।

दुनिया में जीवन मज़हबों के रचे पाखण्ड, राजनीतिक जनमत की लूट और लोकतंत्रों की ओट में दबे पांव बढ़ती तानाशाही के क्लेशों में घुट रहा है। जो ताकतवर हैं उन्हें निर्बल जीवन की परवाह नहीं रही। उनकी मनमानी के आगे कोई नियम नहीं रहा। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल

लोगों की आस्था, विश्वासों और हुनर से छल करके उनकी स्वतंत्रता छीनने वाली शक्तियां आतंक, युद्ध और महामारियों की रचना कर रही हैं। जीवन के सत्य को पीछे छोड़कर कृत्रिम और नकली दुनिया बसायी जा रही है। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल।

जीवन में क्रूरता बढ़ रही है। आये दिन लोग प्रेमिका, पड़ोसी और दोस्तों की लाशें बोरों में भरकर फेंक रहे हैं। असहाय बूढ़े, स्त्रियां और बच्चे निर्दयता के आगे बेबस हैं। अदालतों में न्याय स्थगित है। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल।

समवेदना सिकुड़ती जा रही है। राह चलते लोग खुले आम होते अत्याचार का सामना करने से कतरा रहे हैं। वे दूर खड़े होकर अपने मोबाइल पर हत्या की फिल्म बनाते हैं और संवेदनहीन होते जाते मीडिया पर अपनी कायरता का प्रचार कर रहे हैं। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल।

नस्ल और जातियों के पिछड़ेपन में डूबे लोग समाज होने का दंभ पालकर अपना स्वार्थ साधने के लिए बड़ी-बड़ी पंचायतें तो लगाते हैं पर उन्हें पूरी दुनिया नहीं दीख रही। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल।

लोगों को बैर पालने के लिए उकसाया जा रहा है, विषमता मिटाने के लिए नहीं। प्रेम के सेतु ढहाये जा रहे हैं। साथ जीने-मरने के अरमान कम होते जा रहे हैं। लोग अकेले होकर जी नहीं पा रहे। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल।

जीवन की छोटी-छोटी पगडण्डियों के खिलाफ बनी नयी लम्बी सड़कें बीच राह में धंस रही हैं। सूखती जा रही नदियों पर बने पुल टूट रहे हैं। बढ़ते तापमान में बर्फ़ पिघल रही है। समुद्र अपनी मर्यादा तोड़ रहे हैं। पृथ्वी पर युद्ध के मलवे से बने घूरों की ऊंचाई बढ़ रही है। जल, थल,नभ में अशांति बढ़ती जा रही है। शासक कह रहे हैं --- आल इज वेल।

शासक ही शासकों से भयभीत होकर जीवन में डर भर रहे हैं और अपनी-अपनी सेना रचकर जीवन को ही कुचल रहे हैं और शासक ही कह रहे हैं--- आल इज वेल।

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