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मप्र में मुश्किल मोड़ पर चुनाव- मोशा के फेल होते प्रयोग और दिग्विजय- नाथ में दरार...


ना काहू से बैर

राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
                         भोपाल- मध्यप्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होना है। भाजपा - कांग्रेस ने सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। उन्नीसवें दिन मतदान हो जाएगा। ऐसे में चुनाव के लिहाज से यहां अभी कोई सियासी सरगर्मी नजर नहीं आती। न तो भाजपा में स्वस्फूर्त काम करने वाले कार्यकर्ता सक्रिय हुए हैं और न ही कांग्रेस में टिकट पाने वाले अपने फ़ौज फांटे के साथ सड़कों पर दिख रहे हैं। वजह है एमपी को प्रयोगशाला बनाने वाली भाजपा ने ऐन चुनाव 50 की उम्र पार करने वालों की जगह युवाओं को मैदान में लाने वाली नीति पर यू टर्न लेते हुए टिकट ही  नही बांटे। शुरू की तीन सूची तक मोदी- शाह  की धमक और बाद की तीन सूची में एकदम समर्पण सा कर दिया। इसी से गड्डमड्ड हो गया। भरम की स्थिति है। किसी के कुछ समझ में नही आ रहा है। आगे किसकी रणनीति पर कब तक काम किया जाए। पुराना कार्यकर्ता दशहरे के बाद दीवाली के हिसाब से अपने कारोबार में लग गया है। उसे फिर सक्रिय करना मुश्किल लग रहा है। फीडबैक तो यही आ रहा है। पहले कार्यकर्ताओं को मेसेज था ये नई भाजपा है। इसमें 60 से 70 की उम्र वालों को जैसे संगठन से रुखसत किया है वैसे ही उमरदराजों को टिकट भी नही मिलेंगे।  ज्यादातर पचास के पार की उम्र वालों को संगठन से विदा कर दिया।  बाद में अधिसंख्य प्रत्याशी पचास और साठ- सत्तर पार के तय कर दिए। हो गया न सब गुड़गोबर । बेचारे विष्णुदत्त शर्मा सबका विरोध और निंदा रस पीते हुए पूरी भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन करने में जुटे थे लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने चार बार के सीएम शिवराज सिंह चौहान और ठाकरे जी के तराशे हुए नेताओं को हाशिए पर करने का पाठ्यक्रम दिया था उन्ही ने टिकट वितरण में उम्मीदवार दिए गए सिलेबस के बाहर के दे दिए। हालात ऐसे हो गए हैं कि सरकार और संगठन "घर के रहे न घाट के"... रविवार को विदिशा से मुकेश टण्डन और गुना से पन्नालाल शाक्य प्रत्याशी तय हुए हैं। इसमे भी नया कोई नही है। इनका इलाके में कितना समर्थन और विरोध है वह भी सबको पता है। अंत मे भाजपा नेतृत्व ने सीएम शिवराज सिंह और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ पुराने नेताओं की अनदेखी नही कर सका। अट्ठारह बरस जो शिवराज सिंह  प्रदेश लाडली लक्ष्मी बेटियों के मामा और लाडली बहनों के भाई बन दिलों में राज कर रहे थे चुनाव के सब कुछ बदलने की कोशिशों ने नुकसान किया है। विज्ञापन आ रहे हैं " मप्र की महिलाओ के मन मोदी...  " कल तक बहनों और बेटियों के मन मे मामा शिवराज थे। जगह बदलने में वक्त लगेगा और तब तक चुनाव हो गए होंगे। अब चुनाव और उसके बाद जो उठा पटक और धोबी पछाड़ दांव लगाए जाएं अभी तो सब कुछ अधकचरा है और नेता कार्यकर्ता आधे अधूरे मन से काम कर रहे हैं। 

दिल बहलाने के लिए कोई कुछ भी कहें पर हकीकत यह है कि मध्यप्रदेश में सियासी सूनापन पसरा हुआ है। 

कांग्रेस में भी कम बखेड़े नही है...
इधर कांग्रेस में भी काम बखेड़े नहीं है। यहां कांग्रेस के बड़े मियां कमलनाथ और छोटे मियां दिग्विजय सिंह के बीच अनबन की पुख्ता भली ही न हो लेकिन खबरें जरूर आ रही हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि दिग्विजय सिंह ने इस बात का खंडन किया है कि कमलनाथ और उनके बीच कोई दरार है लेकिन सच्चाई है कि धुआं तभी उठ रहा होता है जब कहीं आग लगी हो। अब ऐसे में कोई भी यह  स्वीकार तो नहीं करेगा की कुछ गड़बड़ हो रही है। मगर यह भी सच के बहुत करीब है कि दिग्विजय और कमलनाथ के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा है कारण उनके समर्थक भी हो सकते हैं पिछले दिनों सज्जन सिंह वर्मा  ने दिग्विजय सिंह से मुलाकात भी की थी। इसे भी आग पर पानी डालने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस के हित के लिहाज से जरूरी है की नाथ और दिग्विजय में पहले की तरह  एका हो जाए। दोनों नेताओं के बीच दरार की खबरों को लेकर कांग्रेस आल्हा का मन भी चिंतित है और समझा जाता है कि उसने दोनों नेताओं से इस संबंध में गंभीर मंत्रणा भी की है आने वाले दिनों में दोनों नेताओं की गतिविधियों से यह तय हो जाएगा कि चुनाव और फिर उसके बाद कांग्रेस में इन दोनों दिग्गजों का रास्ता किधर जाने वाला है...

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