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सड़कों पर संग्राम से सामने आ गई सर्वे की सच्चाई


चुनाव चटखारे

कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार

भाजपा की पांचवी लिस्ट और कांग्रेस की दूसरी लिस्ट से लगभग 228 प्रत्याशियों के घोषित नामों से दोनों दलों में जो मारकाट और सड़क पर संग्राम जैसे हालात बने हुए हैं इससे आम कार्यकर्ताओं को भी समझ आ गया है कि टिकट जिन्हें मिला है उनका नाम भले ही सर्वे सूची में नहीं था लेकिन वो किसी ना किसी बड़े नेता के पट्ठे जरूर रहे हैं।असंतोष तो हर चुनाव से पहले नजर आता है लेकिन इस बार वो लावा बन चुका है और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में यह ज्वालामुखी भाजपा के लिए मुसीबत साबित होना है। 

पार्टी कार्यालयों पर तोड़फोड़, पार्टी नेताओं पर टिकट बेचने जैसे आरोप लग रहे हैं उससे आम कार्यकर्ता भी ठगा सा महसूस कर रहा है।जिन दावेदारों के जूते भोपाल-दिल्ली की परिक्रमा करते-करते घिस गए और टिकट नहीं मिलने से होश उड़े हुए हैं उन्हें भी समझ आ गया है कि पार्टी हायकमान का मतलब यह हो गया है कि टिकटों के ढेर को लूटने की जिसमें ताकत थी वो टिकट ले उड़े और सर्वे में जिनके नाम टॉप पर थे वो टापते रह गए।

मोशा जी के बंदे यदि सर्वे को आधार मान कर ही टिकट तय करते तो नरेंद्र सिंह तोमर, कुलस्ते, प्रहलाद पटेल से लेकर कैलाश विजयवर्गीय सहित सांसदों को कार्यकर्ताओं की मनुहार करने गली-गली भटकना नहीं पड़ता।खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी सपने में नहीं सोचा होगा कि कल तक अदब-कायदे के साथ महल की ड्योढी पर कदम रखने वालों के गुस्से के आगे महल की बोलती बंद हो जाएगी।

पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल को अब समझ आ गया होगा कि जिन श्रीमंत के प्रति निष्ठा जाहिर करते हुए उन्होंने कांग्रेस को ठोकर मार दी वही श्रीमंत उनके साथ होते अन्याय के विरोध में मोम के पुतले बन जाएंगे।अपमान से आहत होकर पंजे से पीछा छुड़ाने और कमल को अपना नाथ मानने वाले श्रीमंत को अपने विश्वस्त मुन्नालाल गोयल का दर्द शायद इसलिए भी महसूस नहीं हुआ होगा कि भाजपा नेतृत्व ने मामी (माया सिंह को) टिकट देकर महल का मान तो रख ही लिया।गोयल की दुर्गति से आहत वैश्य समाज तय करेगा कि वह महल के माया मोह से बंधा रहेगा या शशि सिकरवार की जीत का सपना पूरा करेगा।
ग्वालियर चंबल संभाग में धधक रही नाराज भाजपा की इस आग में महाराज भाजपा  का झुलसना तय है, चुनाव प्रबंधन समिति संयोजक तोमर भी मोशाजी को ठीक से जवाब नहीं दे पाएंगे। 

भाजपा ने यदि यहां वैश्य समाज को नाराज किया तो इंदौर में कांग्रेस ने भी यही काम किया, अरविंद बागड़ी को न तीन नंबर के लायक समझा न पांच नंबर के लायक।एक दिन के शहर कांग्रेस अध्यक्ष रहे बागड़ी की पैरवी करने वाले रसूखदारों ने कमलनाथ को तो सेट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन दिग्विजय सिंह ने वैश्य समाज के मंसूबों पर पानी फेर दिया।यही हाल जैन समाज का हुआ है एक नंबर से दावेदारी कर रहे भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हों या वैश्य समाज के प्रतिनिधि-पूर्व विधायक इन्हें पांच साल फिर गुणगान ही करते रहना है।

दोनों पार्टियों में पहले दिन से ही सर्वे की खौफ लहर चल रही थी।एक सर्वे, दो सर्वे, सर्वे पर सर्वे, अन्य राज्यों के विधायक-समयदानियों की रिपोर्ट ऐसे सारे टोने-टोटके पहली सूची जारी होने तक तो असरकारक लग रहे थे लेकिन भाजपा की बाद की सूचियों को देख कर हताश हुए दावेदारों को समझ आ गया कि इतने साल की निष्ठा की अपेक्षा एकआध बार पार्टी बदलकर लौट आते तो सम्मान से टिकट के हकदार हो जाते। 

कांग्रेस की दूसरी सूची जारी होने के साथ ही यह कमलवाणी सच हो गई कि कपड़े फाड़ दीजिये।इन बड़े नेताओं के कुर्ते भले ही नहीं फटे लेकिन सिर फुटौवल से विभिन्न जिलों में जो बागी जन्मे है वो पार्टी की साख पर बट्टा ही लगाएंगे। भाजपा से ज्यादा असंतोष कांग्रेस में नजर आ रहा है तो इसलिए कि तमाम दावेदार मान कर चल रहे हैं कि सरकार तो कांग्रेस की बन रही है लेकिन वे मलाई तो दूर मट्ठा पीने लायक भी नहीं रहेंगे। 

भाजपा में उम्र का बंधन वहीं आड़े आया जहां  टिकट नहीं देना था बाकी तो 80 से 87 साल के दोनों नारायण सिंह कुशवाह से लेकर जयंत मलैया की बल्ले-बल्ले हो गई है उज्जैन दक्षिण से दावेदार-पूर्व मंत्री पारस जैन यदि कालूहेड़ा को टिकट मिलने के बाद तीर्थयात्रा पर निकल जाएं तो गलत क्या है। परिवारवाद को कोसने वाले मोशाजी ने गौरी शंकर बिसेन की बेटी को प्रत्याशी घोषित कर हाथी के दांत का फर्क हाथोंहाथ समझा दिया।

दूर क्यों जाएं इंदौर की ही बात कर लें। दोनों दलों ने जिस तरह क्षेत्र क्रमांक 3, 5 और महू को लेकर माहौल बना रखा था तो लग रहा था बड़ा उलटफेर होने वाला है।कांग्रेस ने तो फिर भी नये चेहरों को टिकट देकर अपने ही सर्वे को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। 

तीन नंबर से पानी वाले बाबा के नाम से पहचान बना चुके पूर्व विधायक अश्विन जोशी के मुगालते खुद दिग्विजय सिंह दूर कर देंगे ये बाबा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। दो बार हार चुके दावेदारों को इस बार कांग्रेस टिकट नहीं देगी, जोरशोर से की गई घोषणा पर सुभाष सोजतिया, नरेंद्र नाहटा  और पांच नंबर से सत्यनारायण पटेल भारी पत्थर साबित हो गए लेकिन सर्वे में आगे चल रहे अश्विन जोशी चपेट में आ गए।अब उनके समर्थक हैरान हैं कि बाबा ने तो कभी कहा ही नहीं कि मैं नहीं लड़ना चाहता, चचेरे भाई पिंटू को टिकट दे दो।फिर इसे कैसे आधार बना दिया-अब अश्विन जोशी को भी समझ आ गया होगा कि महेश जोशी की अंतिम इच्छा का सम्मान करने के लिए दिग्विजय सिंह पिछले दो साल से सार्वजनिक रूप से यह माहौल क्यों बना रहे थे कि अश्विन को टिकट नहीं देंगे, उसकी हवा खराब है।दिग्विजय के भरोसे रहे अश्विन समझ ही नहीं पाए कि सज्जन वर्मा ने पिंटू जोशी के नाम पर क्यों दिग्विजय सिंह का साथ दे कर उन्हें निपटाने में सहयोग कर दिया। 

भाजपा में सर्वे की बात करें तो तीन नंबर से कहीं से कहीं तक गोलू शुक्ला का नाम नहीं था।इस नाम को मंजूरी ने यह भी बता दिया है कि वरिष्ठ नेता के रूप में सुमित्रा महाजन, कृष्ण मुरारी मोघे हों या विक्रम वर्मा अब इन सब के लिए आडवानी-जोशी पेवेलियन में बैठने का इंतजाम कर दिया है।

तीन नंबर से गोलू शुक्ला के नाम को मंजूर कराने का मतलब है कैलाश विजयवर्गीय ने पुत्र आकाश विजयवर्गीय के क्षेत्र को लावारिस नहीं होने दिया है।विजयवर्गीय के कंधे पर कल तक आकाश थे, अब उनके कंधों को बेटे के साथ गोलू को भी तोकना है।एक नंबर और तीन नंबर दोनों जगह शुक्ला परिवार मैदान में है, किसी एक का विधायक बनना भी तय है।

गोलू की जीत को विजयवर्गीय तब बेहतर भुना सकेंगे जब भाजपा की सरकार बनने की स्थिति में विजयवर्गीय को अपने विधायकों का संख्याबल दिखाना होगा।वो किसी कीमत पर नहीं चाहते थे कि उषा ठाकुर को तीन नंबर से टिकट मिले और उनकी प्लानिंग फेल हो, यही वजह रही कि ना चाहते हुए भी उषा ठाकुर को महू से चुनाव लड़ना पड़ेगा।स्थानीय को टिकट की मांग करने वाले महू क्षेत्र के भाजपा नेता यदि उनकी जीत में सहयोगी बनते हैं और भाजपा की सरकार भी बन जाए तो उषा ठाकुर का मंत्री पद भी तय है जो इंदौर से जीतने पर नहीं मिल पाता। यहां रमेश मेंदोला, मालिनी गौड़, महेंद्र हार्डिया जैसे लगातार जीतने वाले विधायक उनकी राह में गति रोधक बन जाते।यह बात अलग है कि चार चार बार जीते इन सब विधायकों पर विजयवर्गीय का आभा मंडल हमेशा से भारी रहा है। 

दोनों दलों में अब जले-भुने दावेदार और उनके समर्थकों को मनाने का दौर चलना ही है। कितने बागी नाम वापस लेंगे? पार्टी द्वारा थोपे गए प्रत्याशी के पक्ष में ईमानदारी से काम करेंगे इस आशय का शपथ पत्र दें या गंगाजल लेकर कसम भी खा लें खुद प्रत्याशी और पार्टी उन पर भरोसा करने की अपेक्षा 3 दिसंबर का इंतजार करेगी।उसके बाद फिर सेबोटेज करने के आरोप वाली मिसाइलें दोनों दलों में चलना ही है।

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