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चुनावी चटखारे, दावेदारी के दो अनूठे रंग


कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार

                      भाजपा में एक तरफ जहां दावेदार भोपाल से दिल्ली एक कर रहे हैं वहीं भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे और सतना से विधायक संजय पाठक ने अपनी दावेदारी का अनूठा तरीका अपनाया है। पहले बात गौरव रणदिवे की। नगर अध्यक्ष रहते कोरोना काल में प्रभावितों की मदद के लिए कार्यालय में कंट्रोल रूम स्थापित कर बिना प्रचार-प्रसार के सभी की मदद करने की पहल से प्रदेश नेतृत्व में अपनी पहचान बनाने के साथ ही प्रदेश भाजपा द्वारा इंदौर नगर को दिए गए 5 करोड़ की सहयोग निधि का निर्देश पूरा कर के राष्ट्रीय नेतृत्व को भी अपनी संगठन क्षमता का परिचय दे चुके रणदिवे अब एफएम के माध्यम से सारे शहर में विधानसभा क्षेत्र क्रमांक पांच से अपनी दावेदारी का संदेश इस विनम्रता से पहुंचा रहे हैं कि संगठन आदेश करेगा तो पीछे नहीं हटूंगा। 
                     पांच नंबर के आम रहवासी भी अब इतने भोले नहीं और भाजपा के कार्यकर्ता भी इतने उनींदे नहीं जो उनके इस संदेश को ना समझ सकें। जब तक भाजपा नेतृत्व से इशारा न हो कोई ऐसे संदेश प्रसारित करने की हिम्मत कर सकता है क्या ? दूसरी सूची में पांच नंबर से उनका नाम घोषित होता है तो माना जाएगा भाजपा ने उन्हें तैयारी का इशारा पहले ही कर दिया था और आखरी सूची तक भी नाम नहीं आया तो कार्यकर्ता मान लेंगे मुख्यमंत्री की घोषणाओं के प्रचार वाले उनके संदेश तो ठीक रहे लेकिन पांच नंबर से दावेदारी की ये अनूठे तरीके वाली हवाबाजी भारी पड़ गई। दावेदारी के उनके इस तरीके से यह तो नजर आ ही रहा है कि भाजपा पांचवी बार महेंद्र हार्डिया को इस क्षेत्र से शायद ही मौका दे। वजह यही कि इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या के साथ हिंदू मतदाताओं की संख्या तो बढ़ती गई लेकिन 2003 से लेकर 2018 तक के चुनाव में यहां भाजपा की लीड घटते रहने का नतीजा नगर निगम चुनाव में भी नजर आया। इस क्षेत्र में कांग्रेस के दावेदारों की बात करें तो तो पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल और शिक्षाविद स्वप्निल कोठारी तो घोषित तौर पर टिकट के लिए लगे हुए हैं। अघोषित दावेदार भी चुप नहीं बैठे हैं।सत्तू पटेल और कोठारी दोनों की राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक पहुंच है।सत्तू को यदि यूपी में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी मिली तो कोठारी अपने रेनेसा कॉलेज में प्रियंका के निर्देश पर रायबरेली के छात्रों को निशुल्क प्रवेश सहित सारी सुविधाएं देते रहे हैं।ये दोनों दावेदार भाजपा के धार्मिक प्रचार वाले रीति रिवाज को भी अपना चुके हैं। यदि इन दोनों में से ही किसी एक को टिकट मिलता है तो जाहिर है दूसरे के समर्थक नाराज होंगे। कांग्रेस का इतिहास गवाह है गंगाजल वाली शपथ दिलाने के बाद भी उसका शत-प्रतिशत पालन नहीं हुआ है। जाहिर है ये हताश-निराश खेमा सौदेबाजी में भाजपा प्रत्याशी को ही पसंद करेगा-रणदिवे के लिए यह प्लस पॉइंट होगा। 
                     अब बात विजयराघवगढ़ के विधायक संजय पाठक की। संजय के पिता सत्येंद्र पाठक भी दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं। संजय पाठक पहले कांग्रेस से ही 2018 में विधायक निर्वाचित हुए थे। प्रदेश के इस सबसे अमीर विधायक को घेरने के लिए जब इन के कारोबार पर सतत छापे लगना शुरु हुए तो पाठक ने भाजपा खेमे में आत्मसमर्पण करना ही ठीक समझा। 2023 के चुनाव में भाजपा इनका टिकट काटने का साहस नहीं दिखाए इससे पहले ही संजय पाठक ने अपने विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की पसंद-नापसंद को लेकर  संजय पाठक ने अपने इस तरह के पहले प्रयोग में घोषणा की थी कि इलाके की 51 फीसदी जनता यदि चाहेगी तो ही वह आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।विजयराघवगढ़ विधानसभा में पिछले तीन दिनों से जारी वोटिंग के परिणाम 25 अगस्त को घोषित हुए हैं। कुल 5 राउंड की मतगणना के बाद संजय पाठक को 1 लाख 3 हज़ार 203 वोट मिले हैं। पाठक को विधानसभा क्षेत्र की करीब 75 प्रतिशत जनता ने जनादेश देते हुए चुनाव लड़ने की मांग की है।
                     कांग्रेस ने उनके इस सर्वे को एक नंबर का फर्जीवाड़ा कहा है, लेकिन संजय पाठक का यह सर्वे अपना टिकट पक्का करने वाली दावेदारी का दूसरा रंग है। अगली सरकार चाहे जिस दल की बने पाठक ने दोनों दलों को संदेश दे दिया है कि उनके अलावा यहां से और कोई नहीं जीत सकता।यही नहीं सरकार जिस भी दल की बने उनकी अगली दावेदारी मंत्री पद के लिए भी तय है।

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