इस निर्णय से उड़ गई महाराज समर्थकों की नींद....
राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’,वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस कहती रह गई कि वह हारी हुई सीटों पर पहले प्रत्याशी घोषित कर देगी, लेकिन बाजी भाजपा ने बाजी मार ली। विधानसभा चुनाव कार्यक्रम जारी होने से तीन माह पहले प्रत्याशियों की घोषणा कर भाजपा ने सभी को चौंका दिया। सूची आने के बाद महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों की नींद भी उड़ गई। एक दिन पहले तक खबर थी कि भाजपा नेतृत्व सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे राज्यों के पार्टी विधायकों को भेज रहा है। प्रत्याशी चयन में उनकी भी भूमिका होगी और अचानक 39 प्रत्याशियों की सूची आ गई। इससे भाजपा नेता भी भौचक्क रह गए। दावेदार इंतजार में थे कि बाहर से आने वाले विधायक 20 अगस्त से सर्वे शुरू करेंगे। पैनल बनेंगे। प्रदेश चुनाव समिति की बैैठक होगी। इसके बाद प्रत्याशी तय होंगे लेकिन इसकी नौबत ही नहीं आई। पहली सूची आने के बाद वे दावेदार बेचैन हैं, जिनका पत्ता कट गया और वे भी जो टिकट के इंतजार में हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए एक पूर्व विधायक का टिकट काट कर भाजपा नेतृत्व ने यह संदेश दे दिया कि भाजपा में किसी का भी टिकट पक्का नहीं है। इससे सिंधिया समर्थकों की नींद उड़ गई है। कई को अपना टिकट खतरे में दिखने लगा है। सर्वे रिपोर्ट के कारण वे पहले से ही खतरे में थे।
सूची में नहीं दिखता किसी क्राइटेरिया का पालन....!
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए जिन 39 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की है, उसे देखने से पता चलता है कि पार्टी प्रत्याशी चयन में किसी क्राइटेरिया का पालन नहीं करेगी। चयन का सिर्फ एक आधार होगा, जीतने की क्षमता। इसीलिए पहली सूची में ही भाजपा ने परिवारवाद के मुद्दे को किनारे रख दिया है। कई प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनके परिजन सांसद, मंत्री और विधायक रहे हैं। भाजपा ने बड़ी तादाद में पिछला चुनाव हारे नेताओं को भी टिकट दे दिया और इस आधार पर कई के टिकट काट भी दिए। स्थानीय को ही टिकट देने के क्राइटेरिया का भी पालन नहीं हुआ। कुछ को क्षेत्र बदलकर टिकट दे दिया गया है। ऐसे नेता भी टिकट पा गए जिनके टिकट पहले आपराधिक आरोपों के चलते काट दिए गए थे। बागी होकर चुनाव लड़े भी टिकट पा गए और हाल में दलबदल कर आए नेता भी। एक ने तो प्रत्याशी घोषित होने के बाद भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। सवाल है तो क्या भाजपा टिकट वितरण में किसी क्राइटेरिया का पालन नहीं करेगी? सर्वे में जो जीतने की क्षमता वाला दिखेगा, वह प्रत्याशी बनेगा। पहली सूची के बाद कुछ जगहों से विरोध की खबरें भी आई हैं। कुछ जगह सड़कों पर उतर कर विरोध हुआ है, लेकिन पार्टी इसकी परवाह नहीं कर रही।
क्या हिंदुत्व पर अपनी छवि बदल रहे दिग्विजय....!
विधानसभा के 2018 में हुए चुनावों से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पैदल नर्मदा परिक्रमा कर अपनी छवि बदलने की जो शुरूआत की थी, वह बदस्तूर जारी दिखती है। चुनाव में नर्मदा परिक्रमा का कांग्रेस को खासा लाभ हुआ था। वह सत्ता की दहलीज तक पहुंच गई थी। 2023 चुनाव से पहले दिग्विजय फिर अपनी धार्मिक छवि को लेकर गंभीर हैं। अब उन्होंने बैरसिया के देव नारायण तीर्थ क्षेत्र की परिक्रमा पैदल नंगे पांव कर डाली। रास्ता सकरा व इतना पथरीला था कि जूते पहने हुए लोगों को भी पत्थर गड़ रहे थे। लोगों ने उन्हें जूते पहनने की सलाह भी दी, लेकिन सनातन धर्म व गुरु परंपरा पर अगाध श्रद्धा ने उनके निश्चय को टस से मस नहीं किया। उन्होंने पूरी 18 किमी की परिक्रमा नंगे पैर ही कर डाली। दूसरा, बजरंग दल पर दिया गया उनका ताजा बयान चौकाने वाला था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सत्ता में आई तो बजरंग दल पर बैन नहीं लगाएगी क्योंकि उसमें कुछ अच्छे लोग भी हैं। कमलनाथ पहले से हिंदुत्व के रास्ते पर हैं और भाजपा को हिंदू-मुस्लिम करने का कोई अवसर नहीं दे रहे हैं। तो क्या दिग्विजय भी हिंदुत्व पर नरम पड़ रहे हैं? और क्या इसकी वजह कमलनाथ हैं? आखिर! भाजपा को कांग्रेस उसी की तर्ज पर जवाब देती दिख रही है।
नाथ की उम्मीद पर खरे उतर पाएंगे सुरजेवाला....!
लीजिए, जो संभावना थी, वह हो गया। कमलनाथ के साथ पटरी न बैठ पाने के कारण कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी फिर बदल दिए गए। पहले दीपक बाबरिया, फिर मुकुल वासनिक और अब जेपी अग्रवाल। सभी कमलनाथ के साथ काम नहीं कर पाए। अब रणदीप सुरजेवाला को दायित्व सौंपा गया है। एक सप्ताह पहले ही उन्हें चुनाव की दृष्टि से मप्र के लिए मुख्य पर्यवेक्षक बनाया गया था। पर्यवेक्षक बनने के बाद वे एक बार भी भोपाल नहीं आए, अब प्रदेश प्रभारी के तौर पर आएंगे। उनकी कमलनाथ के साथ पटरी बैठ पाती है या नहीं, वे उनकी उम्मीद पर खरे उतर पाते हैं या नहीं, यह वक्त बताएगा। हालांकि खबर है कि सुरजेवाला और कमलनाथ के पहले से संबंध अच्छे हैं। ऐन चुनाव के मौके पर उन्हें इसलिए भी लाया गया, क्योंकि कर्नाटक चुनावों में उनकी भूमिका सराही गई थी। कांग्रेस नेतृत्व को उम्मीद है कि सुरजेवाला मप्र में भी कर्नाटक जैसी सफलता पार्टी को दिलाएंगे। हालांकि हाल में दिए गए उनके एक बयान की मप्र में भी जमकर आलोचना हुई है। भाजपा को वोट देने वाले मतदाताओं को उन्होंने राक्षस कह दिया था। वे लंबे समय तक कांग्रेस मीडिया के राष्ट्रीय प्रभारी रहे हैं। मतदाताओं के लिए राक्षस शब्द का प्रयोग उन्होंने कैसे कर दिया, यह समझ में नहीं आया।
संकट हरती है गोपाल की ये ‘संकट मोचन डायरी’....
प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव अलग अंदाज में काम के लिए जाने जाते हैं। उनके द्वारा निकाली जाने वाली ‘संकट मोचन डायरी’ इसका उदाहरण है। इसकी शुरूआत उन्होंने 2003 में मंत्री बनने के बाद की थी। इसमें भार्गव के साथ उनके पूरे स्टाफ के टेलीफोन और मोबाइल नंबर रहते हैं। यह विधानसभा क्षेत्र में घर- घर पहुंचाई जाती है। इसकी उपयोगिता बढ़ी तो दूसरा, तीसरा और अब चौथा संस्करण छपवा कर बंटवाया जा रहा है। हाल में नरसिंहपुर में एक एक्सीडेंट हुआ तो उसकी जेब से यह डायरी मिली। तत्काल भार्गव के स्टाफ से संपर्क हुआ और घायल की मदद की सारी व्यवस्थाएं की गईं। क्षेत्र में लोग नारा लगाते हैं, ‘जिसका कोई न पूछे हाल-उसका साथी है गोपाल’। कई बार लोग उनकी भलमंसाहत का नाजायज लाभ भी उठा लेते हैं। हाल में एक व्यक्ति ने फोन किया कि उसकी पत्नी का अंतिम संस्कार होना है, पैसे नहीं है। स्टाफ ने बैंक डिटेल लेकर दो बार में 10 हजार रुपए जमा कर दिए। सूचना भार्गव के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर डली, तो भार्गव टौल होने लगे, क्योंकि उस नाम का व्यक्ति उस गांव में था ही नहीं। मामला पुलिस में गया। पुलिस ने क्षेत्र के ही जूना गांव के वीर सिंह को पकड़ लिया। उसने कबूल कर लिया कि मुझे पैसे की जरूरत थी, इसलिए मैंने झूठी कहानी बता कर पैसे ले लिए।
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