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*पेंशनरों से संबंधित धारा 49 : इसमें आपसी सहमति का उल्लेख ही नहीं!*


 डॉ. चन्दर सोनाने

                   राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 के अन्तर्गत पहली बार छत्तीसगढ़ सरकार के वित्त विभाग ने मध्यप्रदेश सरकार के वित्त विभाग से छत्तीसगढ़ राज्य के पेंशनरों/परिवार पेंशनरों की मँहगाई राहत में 4 प्रतिशत की वृद्धि कर 42 प्रतिशत की दर से 1 जुलाई 2023 से दिए जाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार से सहमति मांगी है। इसके पूर्व सन् 2000 से हमेशा मध्यप्रदेश सरकार ही छत्तीसगढ़ सरकार से पेंशनरों की मँहगाई राहत में वृद्धि करने के संबंध में सहमति माँगती आई है। 
आइए, अब हम यह जानते हैं कि मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 है क्या ? वह है यह -
छठी अनुसूची
( धारा 49 देखिए )
पेंशनों की बाबत दायित्व का प्रभाजन
1. पैरा 3 में वर्णित समायोजनों के अधीन रहते हुए विद्यमान मध्य प्रदेश राज्य द्वारा नियत दिन के पहले अनुदत्त पेंशनों की बावत प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्य अपने-अपने खजानों में से पेंशनें देगा ।
2. उक्त समायोजनों के अधीन रहते हुए विद्यमान मध्य प्रदेश राज्य के कार्यकलापों के संबंध में सेवा करने वाले उन अधिकारियों की पेंशनों के वारे में दायित्व, जो नियत दिन के पहले सेवानिवृत्त होते हैं या सेवानिवृत्ति पूर्व छुट्टी पर चले जाते हैं किन्तु पेंशनों के लिए जिनके दावे उस दिन के ठीक पहले वकाया हैं, मध्य प्रदेश राज्य का दायित्व होगा ।
3. नियत दिन से आंरभ होने वाली और उस वित्तीय वर्ष के 31 मार्च को समाप्त होने वाली कालावधि की वावत तथा प्रत्येक पश्चात्वर्ती वित्तीय वर्ष की वावत पैरा 1 और 2 में निर्दिष्ट पेंशनों के वारे में सभी उत्तरवर्ती राज्यों को किए गए कुल संदायों को संगणना में लिया जाएगा। पेंशनों की वावत विद्यमान मध्य प्रदेश राज्य में के कुल दायित्व का उत्तरवर्ती राज्यों के बीच प्रभाजन जनसंख्या के अनुपात में किया जाएगा और अपने द्वारा देय अंश से अधिक का संदाय करने वाले किसी उत्तरवर्ती राज्य को आधिक्य की रकम की प्रतिपूर्ति कम संदाय करने वाले उत्तरवर्ती राज्य द्वारा की जाएगी।
4. नियत दिन के पहले अनुदत्त की गई और विद्यमान राज्य के राज्य क्षेत्र से बाहर किसी भी क्षेत्र में दी जाने वाली पेंशनों के बारे में विद्यमान मध्य प्रदेश राज्य का दायित्व, पैरा 3 के अनुसार किए जाने वाले समायोजनों के अधीन रहते हुए मध्य प्रदेश राज्य का दायित्व होगा, मानो ऐसी पेंशन पैरा 1 के अधीन मध्य प्रदेश राज्य के किसी खजाने से ली गई हो। 
5. (1) विद्यमान मध्य प्रदेश राज्य के कार्यकलाप के संबंध में नियत दिन के ठीक पहले पश्चात सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी की पेंशन के बारे में दायित्व, उसे पेंशन अनुदत्त करने वाले उत्तरवर्ती राज्य का दायित्व होगा, किंतु किसी ऐसे अधिकारी को विद्यमान मध्य प्रदेश राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा के कारण मिलने वाली पेंशन का प्रभाग उत्तरवर्ती राज्यों में जनसंख्या के अनुपात में आंवटित किया जाएगा और पेंशन अनुदत्त करने वाली सरकार उत्तरवर्ती राज्यों में से प्रत्येक राज्य से इस दायित्व का उसका अंश प्राप्त करने की हकदार होगी ।
(2) यदि ऐसा कोई अधिकारी नियत दिन के पश्चात पेंशन अनुदत्त करने वाले राज्य से भिन्न एक से अधिक उत्तरवर्ती राज्यों के कार्यकलापों के संबंध में सेवा करता रहा हो, तो पेंशन अनुद्त करने वाले राज्य को वह राज्य सरकार ऐसी रकम की प्रतिपूर्ति करेगी ? जिसका नियत दिन के पश्चात की उसकी सेवा के कारण मिलने वाली पेंशन, के भाग का वहीं अनुपात हो, जो प्रतिपूर्ति करने वाले राज्य के अधीन नियत दिन के पश्चात की उसकी अर्हक सेवा का उस अधिकारी को उसकी पेंशन के प्रयोजनार्थ परिकलित नियत दिन के पश्चात की कुल सेवा का है।
6. इस अनुसूची में पेंशन के प्रति निर्देश का अर्थ यह लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत पेंशन मूल्य के प्रति निर्देश भी है ।

                तो यह है बहुचर्चित धारा 49 की छठी अनुसूची। इसमें कहीं भी एक राज्य दूसरे राज्य से पेंशनरां की पेंशन बढ़ाने के संबंध में लिखित में सहमति माँगे, इसका कहीं उल्लेख ही नहीं है। इसके बावजूद सन् 2000 से सहमति माँगने का बहाना कर पेंशनरों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। 
               उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार के गृह विभाग ने 13 नवम्बर 2017 को जहाँ पेंशनर्स एसोसिएशन मध्यप्रदेश भोपाल को चिट्ठी लिखकर धारा 49 के उन्मूलन की जानकारी दे दी थी। इस पत्र की प्रतिलिपि उन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को भी दी थी। इसके बावजूद दोनों राज्य इस अति महत्वपूर्ण पत्र को दबाकर बैठ गए हैं। मध्यप्रदेश पेंशनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष श्री गणेशदत्त जोशी ने अनेक बार राज्य सरकार को इस पत्र का हवाला देते हुए धारा 49 के उन्मूलन की चर्चा करते हुए छत्तीसगढ़ से सहमति नहीं माँगने का अनुरोध किया था, किन्तु राज्य सरकार के कानों पर जूं नहीं रैंगी ! इसके साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि धारा 49 यदि लागू भी होती है तो वह सन् 2000 के पहले सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों पर लागू होगी! इसके बाद सेवानिवृत्त होने वाले किसी भी कर्मचारी पर यह लागू नहीं होगी। इस महत्वपूर्ण बिन्दू को ही राज्य सरकार के अधिकारी घोलकर पी गए हैं। 
                दो अगस्त को छत्तीसगढ़ सरकार ने सांतवें वेतनमान के कर्मचारियों को 1 जुलाई 2023 से मूल पेंशन का 5 प्रतिशत बढ़ाकर 38 प्रतिशत करने की सहमति दी है । इसी प्रकार छठवें वेतनमान के कर्मचारियों के लिए भी 1 जुलाई 2023 से परिवार पेंशन का 11 प्रतिशत बढ़ाकर 212 प्रतिशत करने की सहमति दे दी है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने 2 अगस्त को ही सातवें वेतनमान में 38 प्रतिशत से वृद्धि कर 42 प्रतिशत करने और छठवें वेतनमान में 212 प्रतिशत से वृद्धि कर 221 प्रतिशत की दर से 1 जुलाई 2023 से दिए जाने की सहमति मध्यप्रदेश सरकार से मांगी है। 2 सप्ताह से अधिक अवधि बीत जाने के बावजूद मध्यप्रदेश सरकार से अभी तक इस दिशा में कोई निर्णय नहीं लेकर पेंशनरों को अधर में अटका रखा है। मध्यप्रदेश सरकार ने 7 अगस्त को सातवें और छठवें वेतनमान के कर्मचारियों को 1 जुलाई 2023 से 5 प्रतिशत की वृद्धि का आदेश जारी कर दिया है। किन्तु इसके बावजूद अभी तक पेंशनरों को इसका लाभ मिलने की प्रतीक्षा है। 
                 अब सवाल यहाँ यह उठता है कि मध्यप्रदेश सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 को केन्द्र सरकार के निर्देश के बावजूद उसके उन्मूलन की बात को स्वीकार नहीं कर रही है तो इन दोनों राज्यों ने धारा 49 को हटाने के लिए अभी तक क्या किया है ? और यदि अभी तक कुछ नहीं किया है तो अब कब करेंगे ??? यदि उक्त दोनों राज्य सरकारें सही मायने में पेंशनरों की हितेषी है तो इन्हें संयुक्त रूप से कार्रवाई कर केन्द्र सरकार से धारा 49 के स्थायी उन्मूलन की दिशा में ठोस पहल शीघ्र अतिशीघ्र करनी चाहिए। इसका पेंशनरों को इंतजार रहेगा। इसके अलावा वे बेचारे कर भी क्या सकते हैं !
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