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मप्र चुनाव: रेवड़ी कल्चर और भ्रष्टाचार के आरोपों का महामुकाबला


अजय बोकिल ,वरिष्ठ पत्रकार
सार
भाजपा का कहना है कि प्रियंका गांधी ने जिस कथित ठेकेदार की चिट्ठी के आधार पर राज्य में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है, वह फर्जी है। लिहाजा प्रियंका और कांग्रेस शिवराज सरकार पर झूठा आरोप लगा रहे हैं। इधर, जिस चिट्ठी के आधार पर प्रियंका ने ट्वीट किया वो पहली नजर में संदिग्ध लगती है, क्योंकि जिस लघु एवं मध्यम संविदाकार संघ के किसी ज्ञानेन्द्र अवस्थी द्वारा यह चिट्ठी लिखी गई है, उसका कोई पंजीयन नहीं है।

विस्तार
विधानसभा चुनाव से चार माह पहले मध्य प्रदेश की राजनीति दिलचस्प दौर में है। दिलचस्प इसलिए क्योंकि सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां रणनीतिक रूप से हाॅकी की तरह पोजीशन बदलकर खेलने की कोशिश में हैं और इसी आधार पर चुनावी मैच जीतने की सौ फीसद उम्मीद पाले हुए हैं। मसलन एक तरफ जहां अमूमन धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाली मध्यमार्गी कांग्रेस आजकल हिंदुत्व की रामनामी माला जप रही है और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शिवराज सरकार को घेर रही है तो दूसरी तरफ तो मुफ्तखोरी के लिए आम आदमी पार्टी को कोसने वाली भाजपा खुद दोनो हाथों से रेवडि़यां बांटने में लगी है। उधर पहली बार बड़े पैमाने पर चुनाव मैदान में उतरने का दावा करने वाली आप असमंजस में है कि वो कौन सी राह पकड़े।
कांग्रेस को लेकर आखिर क्या सोच रहे हैं कमलनाथ ? 
कांग्रेस नेता कमलनाथ को भरोसा है कि हिंदुओं का भरोसा कायम रहा और मतदाता हर हाल में बदलाव पर आमादा हुआ तो वो दोबारा सीएम बन सकते हैं। जबकि शिवराज मान रहे हैं कि बतौर सीएम उनकी यह अंतिम पारी है या नहीं यह उनकी अगुवाई में भाजपा को पांचवी बार सत्ता में लौटाने से तय होगा। इसके लिए शिवराज कोई घर खाली नहीं छो़ड रहे। सबके दाता राम की तर्ज पर समाज का हर वो कोना तलाशा जा रहा है, जो किसी भी तरह की रेवड़ी से वंचित तो नहीं रह गया है। गोया प्रदेश में रेवडि़यों की बाढ़ सी आ गई है। देनदार के आगे झोलियां कम पड़ गई हैं।
 
शिवराज का मानना है कि ‘बूंद_बूंद से घट भरे’ की रणनीति से 2018 के विस चुनाव में रही रणनीतिक कमियों को इस चुनाव के आते तक पूरा कर लिया जाएगा। शायद इसी कड़ी में पार्टी में पिछले चुनाव में हारी हुई 39 सीटों पर चार महीने पहले ही प्रत्याशियों के नाम घोषित कर मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली है। हालांकि हारे हुओं पर फिर दांव खेलना घाटे का सौदा भी साबित हो सकता है। लेकिन भाजपा बेफिकर है। 

इसी बीच कांग्रेस ने शिवराज सरकार को भ्रष्ट और जनता को ठगने वाली सरकार बताते  हुए 50 प्रतिशत कमीशनबाजी का कर्नाटकी दांव चला है, जिसको लेकर भाजपा भड़की हुई है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने हाल में एक चिट्ठी ट्वीट कर आरोप लगाया कि शिवराज सरकार में मंत्री अफसर 50 परसेंट कमीशन खा रहे हैं। इतना पैसा दिए बगैर ठेकेदारों को काम का भुगतान नहीं हो रहा है। राज्य में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है। इससे बौखलाए भाजपाइयों ने प्रियंका  और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के खिलाफ 41 जिलों में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी।
  किस एंगल पर टिकी है भाजपा की सियासत?
भाजपा का कहना है कि प्रियंका गांधी ने जिस कथित ठेकेदार की चिट्ठी के आधार पर राज्य में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है, वह फर्जी है। लिहाजा प्रियंका और कांग्रेस शिवराज सरकार पर झूठा आरोप लगा रहे हैं। इधर, जिस चिट्ठी के आधार पर प्रियंका ने ट्वीट किया वो पहली नजर में संदिग्ध लगती है, क्योंकि जिस लघु एवं मध्यम संविदाकार संघ के किसी ज्ञानेन्द्र अवस्थी द्वारा यह चिट्ठी लिखी गई है, उसका कोई पंजीयन नहीं है।

दूसरे, चिट्ठी मप्र हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित करके लिखी गई है। जबकि मुख्य न्यायाधीश जबलपुर हाईकोर्ट में बैठते हैं। ज्ञानेन्द्र अवस्थी संगठन के कोई पदाधिकारी भी नहीं है और चिट्ठी की भाषा भी राजनीतिक ज्यादा है, बजाए ठेकेदारों की पीड़ा के। लेकिन मानों इतना ही काफी नहीं था। भ्रष्टाचार को लेकर दूसरा वीडियो बम धमाका गुरुवार को हुआ। इसमे रीवा के एक सिविल इंजीनियर और पेटी कांट्रेक्टर पीयूष पांडे ने जबलपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से शिकायत की है कि उसे गौशाला निर्माण का 38 लाख रु. का भुगतान पाने के लिए साढ़े 14 लाख रू. कमीशन देना पड़ा है।

इस वीडियो के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरूण यादव ने कहा कि राज्य में शिवराज सरकार के पाप का घड़ा फूट चुका है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि अच्छा है शिवराज सरकार भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने के खिलाफ हम पर एफआईआर करे। इससे जनता तक करप्शन का मुद्दा तो पहुंचेगा। कांग्रेस ने राज्य में भ्रष्टाचार की अर्थी भी निकाली। इसी बीच अब तक खामोश रही बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रश्न किया कि मप्र में कमीशनखोरी की आड़ में जनता के असली मुद्दों को दरकिनार करना कहां  तक उचित है?
दरअसल, शिवराज सरकार पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इस हमले का मकसद यह बताना है कि कांग्रेस ने मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राज्य में भाजपा की तत्कालीन बोम्मई सरकार पर 40 परसेंट की सरकार होने का आरोप लगाया था, जो काम कर गया था। नतीजा रहा कि राज्य में फिर से सरकार का दावा करने वाली  भाजपा मात्र 65 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस को उम्मीद है कि मप्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर 50 परसेंट कमीशन खाने तथा उसके भ्रष्टाचारी होने का दावं जनता में अलग परसेप्शन बनाएगा और कांग्रेस की जीत का मार्ग प्रशस्त होगा।
यह तर्क भी है कि कर्नाटक की भाजपा सरकार तो 40 परसेंट कमीशन ही खा रही थी, शिवराज सरकार में बकौल कांग्रेस यह रेट 50 परसेंट है। यानी 10 फीसदी और ज्यादा। लेकिन मजे की बात यह है कि दुनिया भर में भ्रष्टाचार का तुलनात्मक अध्ययन करने वाली संस्था ट्रांसपेरेंट इंटरनेशनल ने भारत के संदर्भ में वर्ष 2023 की अपनी रिपोर्ट में देश में सर्वाधिक  भ्रष्ट राज्य कांग्रेस शासित राजस्थान को बताया है।
 राजस्थान में क्या है कांग्रेस का हाल?  
राजस्थान में कमीशन का ताजा रेट क्या है, यह साफ नहीं है, वहां लेकिन विपक्ष में बैठी भाजपा इसे कोर मुद्दा नहीं बना पा रही है। और तो और भ्रष्ट राज्यों  की सूची में दूसरे नंबर पर नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार शासित बिहार और तीसरे नंबर  पर भाजपा शासित उत्तर प्रदेश है। इस सूची में  मध्य प्रदेश का क्रमांक 10 वां है। भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ 9 वें यानी मप्र से एक नंबर ऊपर ही है। बावजूद इसके वहां भूपेश बघेल सरकार की सत्ता में वापसी की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि राज्य में भाजपा के पास कई ठोस रणनीति ही नहीं है और न ही कोई दमदार नेता है।
जाहिर है इससे लगता है कि चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा अकेले खतरनाक पिच के बजाए तगड़ी बल्कि ग्राउंड फील्डिंग की तरह काम करता है, जबकि कांग्रेस मप्र में इसे कोर मुद्दा बनाने की कोशिश में है। कितना कामयाब होगा, यह चुनाव नतीजे ही बताएंगे।
भारतीय चुनाव पैटर्न में यह देखने में आया है कि किसी सरकार के अच्छे या बुरे होने का परसेप्शन ही उसे सत्ता में लाता या फिर बेदखल करता है। बाकी मुद्दे केवल उत्प्रेरक की तरह काम करते हैं। कई बार नहीं भी करते है या फिर बाज दफा उल्टे भी पड़ जाते हैं। ऐसा ही रिस्की मुद्दा कांग्रेस के भगवाकरण का और शिवराज सरकार द्वारा अंधाधुंध रेवड़ी बांटने का है।

भाजपा को उम्मीद है कि मतदाताओं को सीधे पैसा देकर खुश करना सरकार की तमाम नाकामियों और नाराजियों को सत्ता के कालीन के नीचे सरका देगा। नकदी लाभ भ्रष्टाचार के आरोपों की नसबंदी कर देगा। वैसे भी सत्ता पर काबिज रहना ही राजनीति का परम साध्य है।

दूसरी तरफ कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि भाजपा चाहे जो कर ले, इस बार मतदाता परिवर्तन का मूड बनाए बैठा है। वह रेवड़ी भी जेबों में भर लेगा मगर  सत्ता का परचम कांग्रेस के हाथ में थमाएगा। वैसे यह कांग्रेस का अति आशावाद भी हो सकता है। क्योंकि इतनी शिद्दत से रेवड़ी, रामनाम और भ्रष्टाचार को केन्द्र में रखकर लड़ा जाने वाला यह शायद पहला विधानसभा चुनाव है।

वरना अभी तक चुनाव विकास, महंगाई, बेरोजगारी और थोड़े बहुत भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर ज्यादा लड़े जाते रहे हैं। लिहाजा मप्र का यह विस चुनाव राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी गौर से देखा और विश्लेषित किया जाएगा।  अब देखना यह है कि भारतीय लोकतंत्र  मतदाता के जमीर के हिसाब  से आगे बढ़ता है या फिर रेवडि़यों के भरोसे। अगर चुनाव रेवडि़यों के भरोसे से ही जीते जाने लगें तो तय मानिए कि भारत की अर्थव्यवस्था कहां से कहां पहुंचेगी और इसका भुक्तभोगी भी वही मतदाता होगा, जिसके गले से सिर्फ आह निकलेगी।

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