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कमलनाथ: हिंदुत्व के पिच पर भाजपा को बोल्ड करने का साहसिक प्रयोग..!


 अजय बोकिल,वरिष्ठ पत्रकार

सार
सत्ता के खेल में जीत ही नैतिकता के मानदंडों को तय करती है। लिहाजा हाल में कमलनाथ ने कहा कि जिस देश की 82 फीसदी जनता हिंदू है, वह स्वमेव हिंदू राष्ट्र तो है ही।
विस्तार
मध्यप्रदेश में फिर सत्ता में आने की आस में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी के सीएम पद के दावेदार कमलनाथ एक अनोखा प्रयोग कर रहे हैं। यह प्रयोग हिंदुत्व के पिच पर ही भाजपा को बोल्ड करने का है। हालांकि, राजनीतिक जोखिम से भरे इस कदम का कांग्रेस में ही विरोध हो रहा है।

इसके पीछे सोच यह है कि यह दुस्साहसिक दांव उलटा भी पड़ सकता है, क्योंकि यह कांग्रेस के मूल चरित्र से मेल नहीं खाता। लेकिन कमलनाथ अपनी बात पर कायम हैं, क्योंकि सत्ता के खेल में जीत ही नैतिकता के मानदंडों को तय करती है। लिहाजा हाल में कमलनाथ ने कहा कि जिस देश की 82 फीसदी जनता हिंदू है, वह स्वमेव हिंदू राष्ट्र तो है ही।
यही नहीं उन्होंने भाजपा के अघोषित प्रचारक समझे जाने वाले स्टार बाबा धीरेन्द्र शास्त्री की कथा का भव्य आयोजन करवाया तथा अब एक और सेलिब्रिटी कथा वाचक कुबेरेश्वर धाम के पं. प्रदीप मिश्रा की कथा भी छिंदवाड़ा में होने जा रही है। यानी कांग्रेस की विचारधारा सनातनी रस में सराबोर होने वाली है। वैसे भी कमलनाथ हनुमान भक्त तो हैं ही। उन्होंने छिंदवाड़ा में राम भक्त हनुमान की विशाल प्रतिमा स्थापित करवाई है। वो साबित यह करना चाह रहे हैं कि हिंदू धर्म में उनकी आस्था भाजपाइयों की तुलना में रत्ती भर भी कम नहीं है, बल्कि दो-चार माशा ज्यादा ही होगी।
 
कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्षता और सर्व धर्म समभाव की मोटे तौर पर मध्यमार्गी विचारधारा पर चलने वाली पार्टी के लिए मप्र जैसे अपेक्षाकृत धार्मिक रूप से कम ध्रुवीकृत राज्य में कमलनाथ द्वारा हिंदुत्व की स्पष्ट लाइन लिया जाना राजनीतिक हलकों में नया कौतूहल पैदा कर रहा है, इसलिए क्योंकि अगर यह लाइन कांग्रेस को सत्ता में लौटाने और खुद कमलनाथ को दोबारा सीएम बनवाने का कारण बनती है तो हो सकता है कि कल को पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर इसी लाइन को खाद पानी दे।

दरअसल, देश में भाजपा के जबरदस्त उभार तथा धर्म और राजनीति के घालमेल के बाद कांग्रेस अब बीती सदी के सत्तर-अस्सी के दशक में अपने वामपंथी झुकाव से नरम राष्ट्रवादी चरित्र की ओर करवट लेने की कोशिश कर रही है। इसका पहला सफल प्रयोग पिछले दिनों कर्नाटक विधानसभा चुनाव में देखने को मिला, जहां पार्टी ने बजरंगबली को भाजपा के रामसेतु से अपने पाले में खींचा और चुनावी जीत की संजीवनी बूटी पाई।

दूसरी तरफ आत्मरक्षा में भाजपा ने जय बजरंगबली घोष के साथ कई अभिमंत्रित शिलाएं चुनावी महासागर में ठेलीं, मगर उनमें से ज्यादातर तैर नहीं सकीं। लगता है कमलनाथ ने अब उन्हीं तैरती रामशिलाओं को नर्मदा में प्रवाहित करने का संकल्प लिया है। वैसे भी कांग्रेस को यह महसूस हो रहा है कि जब तक बहुसंख्यक हिंदू वोट उसकी तरफ नहीं लौटेगा, तब तक कांग्रेस के लिए दिल्ली का दरवाजा उसके लिए नहीं खुलेगा।

यही कारण है कि हाल में किसी पत्रकार ने जब कमलनाथ से छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम के स्टार बाबा पं. धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा अपने प्रवचनों में की जाने वाली हिंदू राष्ट्र की पैरवी के बारे में पूछा तो कमलनाथ की प्रतिक्रिया थी कि देश की 82 फ़ीसदी जनता हिंदू है तो ये कोई कहने कि बात नहीं है, ये हिंदू राष्ट्र तो है ही। धीरेन्द्र शास्त्री के बयान की व्याख्या करते हुए कमलनाथ ने कहा कि बाबा ने हिंदू राष्ट्र की बात नहीं की, उन्होंने तो पूरे देश की बात की।

कमलनाथ की राजनीतिक दिशा किस ओर है? 
कहा कि ये देश सभी धर्मों का है। हिंदू राष्ट्र बनाने की क्या बात है, 82 फीसदी लोग तो हिंदू हैं। कमलनाथ की इस व्याख्या से कांग्रेस में ही बहुत से लोग सहमत नहीं हैं। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने तो छिंदवाड़ा में पं. धीरेन्द्र शास्त्री की कथा कराने पर ही सवाल खड़े कर दिए। उनका कहना था कि धीरेन्द्र शास्त्री राजनीतिक पार्टी  का वरदहस्त  है, सबको पता है।

दूसरे, कमलनाथ की यह लाइन पार्टी के एक और दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह की विचारधारा से मेल नहीं खाती। निजी तौर पर खांटी हिंदू होने के बाद भी राजनीतिक स्तर पर दिग्विजय धर्मनिरपेक्षता के अडिग समर्थक रहे हैं। कमलनाथ की इस लाइन पर कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेताओं में भी शंका है और एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने तो इसकी खुलकर आलोचना की। उन्होंने कहा कि कमलनाथ जिस लाइन पर चल रहे हैं, वो तो आरएसएस की है। भाजपा तो हिंदू धर्म की बात करने वाले कांग्रेसियों को ‘इच्छाधारी हिंदू’ पहले ही घोषित कर चुकी है।
  
बहरहाल, कमलनाथ ने जो कहा वो तथ्यात्मक रूप से सही है, क्योंकि इस देश की 82 फीसदी आबादी हिंदू है। इस अर्थ में यह बहुसंख्यक हिंदुओं का देश ही है। लेकिन वह ‘हिंदू राष्ट्र’ भी है या नहीं, इस पर मतभेद है और खुद को हिंदुओं का खैरख्वाह मानने वाली भाजपा ने भी आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा कभी नहीं की।

कई लोगों का मानना है कि ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ एक राजनीतिक अवधारणा है, जो बहुसंख्यकवाद पर आधारित है। अर्थात देश उसी दिशा और सोच से चलेगा, जैसा बहुसंख्यक समाज का भी बहुसंख्यक तबका चाहता है, जिसे ठीक समझता है। बाकी धर्मों के लोगों की राय और आकांक्षाएं गौण होंगी। हालांकि, हमारा संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। वह धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म समभाव की ही बात करता है। 

लेकिन चुनावी चौसर पर निर्णायक पांसे फेंकते समय कई बार संविधान और उसके मूल्य भी दांव पर रख दिए जाते हैं। कमलनाथ शायद यह मानते हैं कि भाजपा को मात देनी है तो उसे उसी के पिच पर बोल्ड करना होगा। इस मायने में कमलनाथ का हिंदुत्व दांव भाजपा को परेशान करने वाला है, क्योंकि ‘हिंदुत्व’ पर भाजपा अपना पेटेंट मानती है, उसे दूसरा कोई कैसे छीन सकता है। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या वोटर सचमुच कमलनाथ और कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा बड़ा और प्रामाणिक हिंदू मान लेगा?

अगर मान लिया तो भाजपा और कांग्रेस में फर्क ही क्या रहेगा? नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने और मोहब्बत के बाजार में नफरत की पबजी खेलने में कुछ तो अंतर रहेगा ही।
भाजपा के लिए चुनौती ना बन जाएं कमलनाथ?कमलनाथ का प्रयोग यदि सफल रहा तो भाजपा और आरएसएस को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा अन्यथा विधानसभा चुनाव में खुद कमलनाथ और उनकी पार्टी कांग्रेस के हिट विकेट होने का खतरा ज्यादा है। डर यह भी है कि खुद को बेहतर हिंदू साबित करने के चक्कर में कांग्रेस अल्पसंख्यक वोट और हिंदुओं के पारंपरिक वोट से भी हाथ बैठे।

यह भी संभव है कि जो वोटर कांग्रेस को भाजपा के विकल्प के रूप में स्वीकार करने को मानसिक रूप से तैयार हैं, वह दूसरे विकल्पों जैसे कि आम आदमी पार्टी की तरफ झुके। इससे चुनाव नतीजों का समीकरण गड़बड़ा सकता है। कम से कम कांग्रेस के पक्ष में तो नहीं ही होगा।
 
अब सवाल यह कि कमलनाथ आखिर इतना रिस्की दांव क्यों चल रहे हैं? क्या उनका मकसद कांग्रेस को निर्णायक रूप से सत्ता पर काबिज कराना है या फिर छिंदवाड़ा में विधायक के रूप में अपनी और सांसद के रूप में अपने पुत्र नकुल नाथ की सीट सुरक्षित करना है? क्या वो मानते हैं कि छिंदवाड़ा में कथा प्रवचन का राजनीतिक महापुण्य कांग्रेस को पूरे प्रदेश में मिलेगा और कांग्रेस पर लगा ‘अहिंदू’ होने का चोला खुद ब खुद तार तार हो जाएगा?

जहां तक छिंदवाड़ा की बात है तो चुनाव में इसी जिले के स्थानीय मतदाता ही इन दोनो सीटों पर वोट करेंगे। सनातन धर्म की रक्षा और हिंदू राष्ट्र के जयघोष के प्रवचन भी उन्हीं लोगों के बीच हो रहे हैं। कमलनाथ ने सीएम रहते हुए पहली बार विधायक का चुनाव 25 हजार तथा उनके पुत्र नकुल नाथ ने लोकसभा का चुनाव 37 हजार से अधिक वोटों से जीता था। बाबाओं के कथा प्रवचन जीत के अंतर को इस बार बढ़ा सकते हैं।  

लेकिन पूरे प्रदेश और देश में इसका क्या असर होगा, यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे। अगर कमलनाथ अपने रामनामी प्रयोगों से मप्र में पुन: सत्ता हासिल कर सके तो लोकसभा में भाजपा को अपनी रणनीति नए सिरे से तय करनी होगी। बहुत से कांग्रेसियों का मानना है कि कांग्रेस को सत्ता शिवराज सरकार के प्रति नाराजगी को वोटों में भुनाने से और आम आदमी की समस्याओं को उठाने से ही मिल सकती है, कथा प्रवचन-श्रवण से नहीं।

कमलनाथ का यह प्रयोग राजनीतिक रूप से सफल रहा तो तय मानिए कि आने वाले सभी चुनावों में अधिकांश पार्टियों में बाबाओं और कथा वाचकों का बोलबाला होगा। सभी नेता उनका चरणोदक प्राशन करते नजर आएंगे। धर्म और अध्यात्म को सिरे से खारिज करने वाली वामपंथी पार्टियों और ज्यादा हाशिए पर चली जाएंगी और देश की राजनीति साधु संतों की भागीदारी से भी एक कदम और आगे बाबावाद और कथावाचकों के नए दौर में प्रवेश कर जाएगी।

कल को कोई कथा वाचक ही प्रधानमंत्री पद की रुद्राक्ष माला गले में डाले मिले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि चुनाव के ‘दिव्य दरबार’ में जो राजनीतिक अर्जी कमलनाथ ने लगाई है, उसका संभावित उत्तर यही है।

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