मप्र भाजपा- जिसने दर्द दिया वही दवा दे रहे हैं...
ना काहू से बैर
राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल- मध्य प्रदेश भाजपा इन दिनों बेहद अजीबोगरीब दौर से गुजर रही है इसके अंदरूनी और बाहरी हालात समझने के लिए मशहूर फिल्म छूमंतर का एक गाना बहुत याद आ रहा है। गरीब जान के तुम हमको न मिटा देना, तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम ही दवा देना...हास्य कलाकार जॉनी वॉकर पर फिल्माए गए इस को निर्देशित किया है एम सादिक ने, संगीतबद्ध किया है ओपी नय्यर ने। इसके मौसिकार है जां निसार अख्तर। स्वर दिया है मखमली आवाज के लीजेंड गायक मो रफी और गीतादत्त ने। सुपर हिट इस गीत के माफिक कभी मप्र जैसे सूबे में भाजपा भी सुपर डुपर हिट रही है। मगर पिछले आठ दस सालों में इसकी जो दुर्गति की वह किसी से न तो छिपी है और न छिपाई जा सकने की हालत में बची है।
इसीलिए छूमंतर का गाना थोड़ा पार्टी की दशा के मुताबिक थोड़ा सुधारते हुए लिख सकते हैं कि " जिसने दर्द दिया है वही दवा दे रहे हैं..."मसलन भाजपा को मजबूत बनाने वाले संघ परिवार के साथ केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश भाजपा को धीरे धीरे इस तरह कमजोर किया कि मरीज और मर्ज दोनो काबू के बाहर हो गए। अभी भी ऑपरेशन टेबल पर मजाकिया अंदाज में प्रयोग करने की रणनीति बनती और बिगड़ती दिख रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की प्रदेश भाजपा को लेकर यात्राओं और भोपाल दिल्ली की बे नतीजा सी हो रही बैठकों ने आशा कम निराशा भरने का काम ज्यादा किया है। क्योंकि अमित शाह के बाद तो फिर पीएम नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत ही बचते हैं मैदान में आने के लिए। लगता है सूबे के हालत इस कदर बिगडेंगे इसका अनुमान बिगाड़ने वालों को भी न रहा होगा। अब हालात कुछ ऐसे हो रहे हैं कि ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बिगड़ता ही चला गया। सिंधिया समर्थक मंत्री और कार्यकर्ताओं के समूह हरिद्वार से लेकर प्रयागराज के संगम तक गंगा यमुना के हरी- नीली जलधारा की तरह अलग ही चमकते दिख रहे हैं। इन सबको एकाकार करने वाले भाजपा के वरिष्ठ और कनिष्ठ नेताओं के संघ परिवार से भाजपा में भेजे गए प्रचारकगण समरस करने के बजाए उसमे अपना अपना रंग डाल हर छोटे बड़े नेता और कार्यकर्ताओं को अपने पठ्ठे बनाने में लग गए इस सबके बीच पार्टी गुमने लगी। इसलिए कांग्रेस नेता दिग्विजयसिंह मजे लेते हुए कहते हैं भाजपा है कहां..? मप्र में महाराज भाजपा, शिवराज भाजपा, और नाराज भाजपा का बोलबाला है। इसे हराना हर किसी के लिए आसान होगा। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं भाजपा को भाजपा के अलावा कोई नहीं आ सकता। इस बात में बहुत दम है।बल्कि एक वाक्य में पूरी भाजपा की हालत को बयां करने के लिए पर्याप्त है।
अब समझना होगा भाजपा को 2013 के बाद से बर्बाद करने का काम दिल्ली के कमजोर नेताओं और संघ परिवार से आए स्तरहीन प्रचारकों ने किया। इसके नतीजे 2018 में आ गए।नेतृत्व और संघ परिवार आंखें मूंदे अपने लंगड़े लूले फैसले और अपाहिज से नेताओं की सदा से गलत निर्णयों को नही बदलने की जिद ने रसातल में पार्टी को पहुंचा दिया। पहले एकाद गलत निर्णय को नहीं बदलने की जीत होती थी अब अयोग्य अपरिपक्व नेताओं की लंबी कतार है और उससे मिलना ही बदलने वाले संघ नेतृत्व में भी दो गुटों में बैठे अहंकारी लोगों की भीड़ है। इससे नेताओं की जीत हो रही है लेकिन संघ का संगठन और भाजपा का अपना का आर्डर मंडल स्तर तक हार रहा है। यही वजह है कि गृहमंत्री शाह अब बार-बार भोपाल आने के बजाय मध्य प्रदेश के नेताओं की दिल्ली में बैठक कर ने समझाने का हड़काने और चेताने में लगे है। कभी समर्पित कार्यकर्ताओं से समृद्ध रही भाजपा अब इस मायने में गरीब गुरबों की पार्टी हो गई है। निष्ठावान, मेहनती और ईमानदार कार्यकर्ताओं के समूह के समूह इस पार्टी के खाते से गधे के सिर से सींग की तरह छूमंतर हो गए हैं। केस बिगड़ गया है। दर्द देने वालों की दवाओं का ज्यादा असर नजर नहीं आ रहा है। पूरा मामला लाडली बहनों लाडली लक्ष्मी के वोटों पर टिका हुआ है।
बॉक्स
कांग्रेस में जाएंगे भाजपाई...
भाजपा में दुखी और असंतुष्ट नेता कार्यकर्ताओं की लंबी फेहरिस्त है। बुंदेलखंड से लेकर महाकौशल और मालवा तक में नाराज भाजपाई बगावत के मूड में है टिकट काटे गए अथवा दावेदारों को तवज्जो नहीं मिली तो बड़े-बड़े नेताओं के पुत्र कांग्रेस और आम आदमी पाले में चले जाएं तो हैरत नहीं होगी। भाजपा का सारा प्रबंधन अभी तक तो बहुत कमजोर हो रहा है। पार्टी और संघ के नेता अभी भी भोजन बैठक और विश्राम के मोड से बाहर नहीं आए हैं। लग्जरी गाड़ियों और ऐसी चैंबरों का मोह छोड़कर गली-गली और गांव का धूल फांके व पसीना बहाए बगैर ना तो कार्यकर्ताओं से संपर्क और संवाद हो पाएगा और ना बागियों को समझने समझाने का मिशन पूरा होगा। भ्रष्टाचार और पक्षपात के मुद्दे पर चुनाव जिताने वाले खाटी भाजपाइयों की जली कटी सुने बगैर पार्टी को जीत के रास्ते पर आना कठिन दिखाई पड़ रहा है। कह सकते हैं कि बहुत कठिन डगर पनघट की। जैसे जैस चुनाव का समय नजदीक आ रहा है टीम अमित शाह को मध्य प्रदेश कठिन से कठिन तम होता दिख रहा होगा। क्योंकि शाह के अध्यक्ष जी कार्यकाल से लेकर गृहमंत्री के दौर तक जो ऊंच-नीच प्रदेश संगठन के साथ हुई है उसके लिए शाह भी जिम्मेदारी से बचने नही सकते। सबको लगता होगा मप्र भाजपा के कार्यकर्ता गुलाब जामुन की तरह नरम और मीठे हैं जब जरूरत पड़ेगी गप्प कर जाएंगे। मगर सीधे दिखने वाले अपने साथ हर बार ऐसा नही देते। अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है। हालात "आग दरिया है और डूब कर जाने" से बने हुए हैं।
...000...