कौन थे भारत के पहले वित्त मंत्री ……??
लाजपत आहूजा, वरिष्ठ पत्रकार
गांधी जी ने बनवाया, फिर अनशन भी किया
भारत के पहले वित्त मंत्री कौन थे ? यह प्रश्न पूछा जाए तो अधिकांश लोगों को गूगल बाबा की शरण लेनी पड़ेगी . देश के प्रथम वित्त मंत्री की नियुक्ति की कथा बड़ी रोचक है . पं. नेहरू ,जान मथाई को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे पर गांधी जी ने जिनकी अनुशंसा की ,वे थे - आर . के .षणमुखम चेटटी . वे एक वर्ष इस पद पर रहे लेकिन यह समय बड़ा घटनाप्रधान रहा .वे सुयोग्य वित्त मंत्री साबित हुए . स्वाधीन भारत के कई अर्थ मानक उन्होंने स्थापित किये . वे इस पर ज़्यादा समय नहीं रह सके .एक प्रक्रियात्मक मामले को लेकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया . नेहरू जी ने उसे स्वीकार कर लिया . इससे पहले पाकिस्तान को दी जाने वाली बड़ी रक़म को उन्होंने सरदार पटेल के परामर्श पर रोक लिया . इस निर्णय को लेकर गांधी जी अनशन पर बैठ गए . सरकार को यह राशि देनी पड़ी. यह उनकी हत्या से १२ दिन पहले की बात है.
षणमुखम जी की पूरी कहानी भी दिलचस्प है .
वित्त मंत्री का कार्य केवल सालाना आय -व्यय का लेखा जोखा भर प्रस्तुत कर देना नहीं है . वह , सरकार की सारी नीतियों , जिसमें आर्थिक नीतियों की दशा देखकर दिशा देने का काम भी करता है . इन हालातों में आर .के . षणमुखम के पहले बजट का काम अत्यधिक महत्व का था . पं. नेहरू १७ वर्ष देश के प्रधानमंत्री रहे . उनके मातहत वित मंत्रियों का कार्यकाल छोटा रहा . एक समय तो उन्होंने खुद वित्त मंत्री का कार्य भी सँभाला .
पहले वित्त मंत्री के रूप में आर.के षणमुखम चेटटी का चयन कइयों को चौंकाने वाला था . वे कांग्रेस के नेता नहीं थे . कोयमटुम्बर में जन्में चेटटी ने मद्रास से अर्थशास्त्र और क़ानून की पढ़ाई की . राजनीति में वह स्वराज पार्टी और जस्टिस पार्टी के सदस्य रहे . कोयम्बटूर नगर पालिका के उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने कई सुधार किये . चेटटी मद्रास प्रेसीडेंसी विधानसभा के भी सदस्य रहे थे . वे इसके सभापति भी बने . अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया . बाद में वे कोचीन राज्य के दीवान बने . कोचीन का कार्यकाल , प्रशासन के पुनर्गठन के लिये और कई सुधारों के लिये जाना जाता है . दीवान यानी एक प्रकार से मुख्यमंत्री . इसके साथ ही उन्होंने दिृतीय विश्व युध्द के बाद जेनेवा और अमेरिका में विमर्श में भाग लिया जिसके फल स्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई एम एफ ) जैसी संस्थाएँ बाद में बनी . उनके इस व्यक्तित्व को लेकर मद्रास कूरियर ,जो मद्रास प्रेसीडेंसी का पहला अख़बार था , ने चेटटी के बारे में एक टिप्पणी छापी कि वे काबिल अर्थ शास्त्री हैं . जैसे पहले कहा गया है कि पं. नेहरू जान मथाई को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे . गांधी जी षणमुखम चेटटी की इन योग्यताओं के कारण उनके पक्ष मे हो गए . सरदार पटेल भी मथाई को नहीं चाहते थे . इसका कारण स्वाधीनता से पूर्व अन्तरिम सरकार में सदस्य वित्त थे और उन्होंने लियाक़त अली खान (बाद के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री) के बजट प्रस्तावों का समर्थन किया था . आखिर में नेहरू जी सहमत हो गए और आर के षणमुखम चेटटी भारत के पहले वित मंत्री बन गए .
वित्त मंत्री चेटटी ने अपना पहला बजट २६ नवम्बर १९४७ को प्रस्तुत किया . हालाँकि वित्त वर्ष के हिसाब से यह केवल चार महीने के लिये था . तकनीकी रूप से इसकी ज़रूरत नहीं थी पर स्वाधीन भारत में अपना बजट हो तो इसे प्रस्तुत किया गया . इसमें कोई नया कर नहीं लगाया गया था . बजट भाषण प्रमुख रूप से भारत पाक विभाजन और उसकी समस्याओं पर केन्द्रित था . समय , धैर्य,आपसी सौहार्द और समझ से समस्याएँ हल करने का आव्हान वित्त मंत्री ने किया . टैक्स बँटवारे की बात बजट में की गई . विभाजन से पहले सशस्त्र सेना कुल ४,१०,००० थी .इनमें भारत को २,६०,००० यानी ६३ प्रतिशत फ़ौज मिली और पाकिस्तान को १,५०,००० . नोट करने वाली बात यह है कि इसका क्रियान्वयन सबसे तेज़ी से हुआ . बँटवारे के खर्च के लिये बजट में २२ करोड़ रखे गए . पहला बजट २५ करोड़ घाटे का बजट था .
गांधी जी का अनशन
पहले वित्त मंत्री ने पाकिस्तान दृारा समझौते की शर्तें पूरी न करने पर उनको दी जाने वाली राशि रोक ली थी . सरदार पटेल का इस कदम को समर्थन था . इसके ख़िलाफ़ गांधी जी ने १३ जनवरी १९४८ को अनशन प्रारंभ कर दिया .इससे षणमुखम चेटटी और पटेल दबाव में आ गए . राशि रिलीज़ कर दी गई . इसके बाद ही गांधी जी ने अपना अनशन समाप्त किया .
प्रथम वित्त मंत्री ने पहली बार विदेशी कंपनियों पर कारपोरेट टैक्स की दर बजट में बढ़ा दी .
आयकर की स्कूटनी बनी इस्तीफ़े का कारण
षणमुखम चेटटी का एक वर्ष में इस्तीफ़े का कारण क्या बना .इस पर ओ मथाई ने कुछ ओर लिखा है पर नेहरू जी द्वारा उनके त्यागपत्र को स्वीकार करते हुये उनकी सेवाओं की जो प्रशंसा की गई , वो पूरी कहानी कहती है . सरकार दृारा उधोगपतियों के आयकर प्रकरणों की जाँच के लिये एक आयोग बनाया गया था . आयोग के न्यायमूर्ति अध्यक्ष ने इसी शर्त पर दायित्व सँभाला था कि सरकार उनके कामकाज में दखल नहीं देगी . अब नेहरू जी ने सरदार पटेल को आयोग को अतिरिक्त शक्तियाँ देने के लिये एक पत्र लिखा . इस पर पटेल का मत था कि जिस तरीक़े से यह किया जा रहा है उससे उधोगपति खुश नहीं होंगे . इसके बाद सरदार पटेल ने वित्त मंत्री को एक पत्र लिखकर कहा कि पूरी प्रक्रिया बहुत सावधानी से की जानी चाहिये ताकि कोई निर्दोष प्रताड़ित न हो . प्रथम दृष्टया कर चोरी का मामला सिध्द प्रतीत होने पर ही केस आयोग को भेजे जाएं . इसके बाद एक प्रक्रियात्मक चूक वित्त मंत्री के त्यागपत्र का कारण बनी . वित्त मंत्री ने संशोधन की घोषणा से पूर्व वाले कुछ नामों को सूची से हटा दिया . इसको नेहरू जी ने मुद्दा मानकर अप्रसन्नता ज़ाहिर की तो वित्त मंत्री ने इस्तीफ़े की पेशकश कर दी . नेहरू जी ने उनके कार्य को सराहते हुये उनके इस्तीफ़े को स्वीकार कर लिया. इस प्रकार देश के प्रथम वित्त मंत्री प्रक्रियात्मक चूक को लेकर त्यागपत्र देकर चले गए . जाने से पूर्व उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू को यह ज़रूर कहा कि सारी प्रक्रिया आपकी सहमति से हुई थी . इसके बाद भी यह बात उठ रही है ,अत: यह त्यागपत्र. दूसरे वित्त मंत्री बने जान मथाई , जिन्हें नेहरू जी देश का प्रथम वित्त मंत्री बनाना चाहते थे .
आर.के षणमुखम चेटटी इसके बाद मद्रास लौट गए . १९५२ में उन्होंने मद्रास राज्य विधानसभा का चुनाव निर्दलीय लड़ा और जीता . प्रथम वित मंत्री के मिले घाव ने उन्हें ज़्यादा दिन जीवित न रहने दिया . ३ मई १९५३ को उनका निधन हो गया .
अंत में षणमुखम चेटटी से संबंधित एक ख़ास बात . वे नवाब,भोपाल के संवैधानिक सलाहकार भी रहे थे . भगवान जाने ,कौनसे गुर से नवाब ने भारत संघ राज्य में विलय इतने दिन टालने में कामयाब रहे .