अपना एमपी गज्जब है..96 फिलहाल एमपी "केंद्र शासित" राज्य है...
अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
हेड लाइन पढ़ कर आप चौंकिए मत!न मैं नशे में हूं और न ही मजाक कर रहा हूं!नशा करना मेरी आदत में नही है।क्योंकि दो रोटी का नशा सब नशों पर भारी रहता है। हां कभी कभी मौका देख कर मजाक जरूर कर लेता हूं!लेकिन आज वह मौका भी नही है। दरअसल मैंने जो लिखा है वह मेरे शब्द नहीं हैं। न ही किसी "धाम" की कृपा से मुझे यह इलहाम हुआ है।यह जानकारी मुझे एमपी के एक सीनियर बीजेपी नेता से मिली है। आज सुबह सुबह उनका फोन आया। दुआ सलाम के बाद उन्होंने कहा - पंडित जी अभी तक तो आप लिखते थे कि अपना एमपी गज्जब है।लेकिन हम मानते नही थे।क्योंकि आप हमारी पार्टी के विरोधी हो। लेकिन दो चार दिन से हमें भी लगने लगा है कि सच में अपना एमपी गज्जब है ! या कहें कि गज्ज़ब से भी ऊपर है।
मैंने बिना किसी "मूल्य" के मिल रहे "समर्थन" पर तत्काल उन्हें धन्यवाद दिया।साथ ही पूछ लिया कि अचानक आपको ऐसा क्या अनुभव हुआ जो आप हमसे सहमत हो गए ? इस पर वे जोर से हंसे!फिर लंबी सांस लेकर बोले -आपको पता है कि एमपी में "केंद्रीय शासन" लागू हो गया है।अब मेरे चौंकने की बारी थी। मैंने कहा - अरे केंद्रीय शासन की मांग तो मणिपुर के लिए हो रही है।अचानक एमपी बीच में कैसे आ गया।यहां तो हरियाणा की तरह सरकार ने अभी कोई धूम धड़ाका भी नही कराया है।फिर अचानक क्या हुआ?क्या कश्मीर की तरह एमपी का भी एक और विभाजन होगा! नेता जी फिर हंसे.. रुके..फिर बोले - अरे मैं राष्ट्रपति शासन की बात नही कर रहा हूं।और न ही केंद्र शासित राज्य की बात कर रहा हूं। मैं बीजेपी के भीतर के "राष्ट्रीय शासन" या "केंद्रीय शासन" की बात कर रहा हूं! आपको पता है कि अपना एमपी बीजेपी का सबसे प्रिय प्रदेश रहा है।इसे संघ और बीजेपी की नर्सरी भी कहा जाता रहा है।अटल बिहारी बाजपेई,कुशाभाऊ ठाकरे,राजमाता विजयराजे सिंधिया,प्यारे लाल खंडेलवाल जैसे दिग्गज नेता इसी राज्य से निकले थे।लालकृष्ण आडवाणी को भी इसी राज्य ने पाला पोसा है।अभी कईयों को पाल रहा है!
बाद की पीढ़ी में भी एक से एक नेता हुए हैं।हमेशा एमपी देश के अन्य राज्यों की मदद करता रहा है।लेकिन लग रहा है कि अब सब कुछ बदल गया है।पिछले दिनों "दिल्ली" ने बिना ऐलान के राज्य की कमान अपने नियंत्रण में ले ली ।गृहमंत्री को जागीरदार बनाया गया है।उनकी मदद के लिए चार केंद्रीय मंत्रियों को भी लगाया गया है।धर्मेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव तो उनके खास हैं ही।नरेंद्र तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी मोर्चे पर भेजा गया है। संगठन के आधा दर्जन पदाधिकारी तो पहले से ही यहां अपनी "मुरली" बजा रहे थे।लेकिन अब केंद्रीय संगठन और केंद्र सरकार दोनों ने मिलकर नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है।हालांकि बेचारे जगत प्रकाश नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन उनका रमतुल्ला उनसे छीन लिया गया है।इतना भी ख्याल नही किया गया है कि वे अपने एमपी के दामाद हैं।दामाद की कुछ तो इज्जत रहनी चहिए। आपने देखा होगा..गृहमंत्री साहब दौड़ दौड़ कर भोपाल आते हैं।रात रात भर बैठकें करते हैं।चारो केंद्रीय मंत्री उनकी सेवा में रहते हैं!और प्रदेश की सरकार व संगठन अपने कान उनकी आवाज पर और आंख उनके चरणों पर रखकर एक पांव खड़े रहते हैं।
अभी दो दिन पहले वे साहब अपने इंदौर आए थे।बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करने।उससे पहले 27 जून को बड़े साहब भी भोपाल में यही काम करने आए थे।तब उन्होंने हजारों बूथ विस्तारकों की आंखों के सामने हमारे सीएम और अध्यक्ष का जो सम्मान किया था उसे गोदी वालों के कैमरों ने पूरे देश को दिखा दिया था।अब बड़े साहब तो बड़े साहब ही हैं।वे तो कुछ भी कर सकते हैं।बिना बोले वे जो करते हैं उसे सब तत्काल जान लेते हैं।लोगों पर नजर रखने का उन्हें पुराना अनुभव है। लेकिन छोटे साहब ने तो राजा से ज्यादा मंत्री भारी वाली कहावत ही चरितार्थ कर दी।उन्होंने इंदौर में पूरी ताकत से कांग्रेस को कोसा लेकिन इस कोसने में हमारे शिवराज भइया का नाम ही डिलीट कर गए!उन्होंने प्रदेश के लोगों से अपील की कि एमपी में भारतीय जनता पार्टी की सरकार और दिल्ली में मोदी जी की सरकार बनानी है।अखबारों के विज्ञापनों में तस्वीर छोटी कराई थी।कोई बात नहीं।एक बार बिना साहब की तस्वीर के छपे विज्ञापन को फिर छपवाया था वह भी हमने देखा था।लेकिन ये बात तो बहुत कर्री है।
अब ऐसा तो है नही कि टेनी मिश्रा जैसे लोगों की मदद से देश का "गृह मंत्रालय" चला रहे साहब जी देश के किसी भी राज्य में बीजेपी के सबसे लंबे समय के मुख्यमंत्री का नाम ही भूल जाएं?मध्यप्रदेश मणिपुर भी नही है जिसे भूलने का एजेंडा चलाया जा रहा है !
बेचारे मुख्यमंत्री प्रदेश में घूम घूम कर स्टेज शो कर रहे हैं!कर्ज लेकर खैरात बांट रहे हैं!बहनों के खाते में पैसा डाल रहे हैं!और तो और मुंह पर मुतवा कर आए आदिवासी के चरण पखार रहे हैं।सुदामा बन रहे हैं। और साहब जी उनका नाम तक नहीं ले रहे हैं।सच में उन्हें सुदामा ही बनाना चाहते हैं क्या! मैं चुपचाप उनकी बात सुन रहा था।मैं कुछ पूछता उससे पहले वे फिर शुरू हो गए।बोले - अब आप ही सोचो जब मुख्यमंत्री का नाम लेने में परहेज किया जा रहा है तो फिर प्रदेश अध्यक्ष की क्या हैसियत!उन्हें कौन पूछेगा। चुनाव अभियान समिति नरेंद्र तोमर की।घोषणा पत्र समिति जयंत मलैया की। अन्य समितियों में भी अध्यक्ष की भूमिका सिर्फ बंदोवस्त करने की। बीजेपी दफ्तर हो या सरकार सब "दिल्ली" के अधीन!बिना दिल्ली की अनुमति के एमपी में पत्ता नही हिल सकता। सरकारी काम दिल्ली के इशारे पर ही हों ,इसकी व्यवस्था बड़े बाबू को एक्सटेंशन देकर पहले ही कर ली गई थी।
तो अब आप ही बताइए कि इसके बाद बचा क्या !मदारी और बंदर का खेल होगा।नाचेंगे बंदर और झोला भरेगा मदारी का।जब अभी से नाम लेने में ही परहेज किया जा रहा है तो दिसंबर में क्या होगा ? जरा सोचिए तो! वैसे भी कहा यह जाता है कि बीजेपी के नेता और मंत्री कितनी वायु ग्रहण करते हैं और कितनी निकालते इस तक की जानकारी "दिल्ली" रखती है।
तो फिर आप ही बताओ कि अपना एमपी "केंद्रीय शासित" हुआ कि नहीं।सामने कुछ दिख रहा है।असलियत में कुछ और है।आप यह भी कह सकते हैं कि कठपुतलियां नाच रही हैं।आपको नाच दिख रहा है पर वे उंगलियां नही जो उन्हें नचा रही हैं। फिर इसे आप क्या कहोगे?जो भी हो अब मैं भी मानता हूं कि अपना एमपी गज्जब है।
वे रुके तो मैंने बात का सूत्र पकड़ लिया ! मैंने कहा आपकी बात तो सही है।ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। हां कांग्रेस जरूर इसी तरह के काम कभी कभी करती थी ! इस पर नेताजी ने मेरी बात काट दी! वे बोले अब कांग्रेस क्या हमसे अलग है ? बस आप तो लिखते रहो कि अपना एमपी गज्जब है।यहां सीएम को कुर्सी पर रह कर भी "मान" नही मिलता है !
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