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अपना एमपी गज्जब है..95 वे विधवाओं को पूछ रहे हैं ये तो सुहागिनों को विधवा बना रहे हैं...


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                        चुनाव के समय बीजेपी में चल रही रूठों को मनाने की मुहिम पर आज कांग्रेस के एक बड़े नेता ने बहुत ही जोरदार टिप्पणी की!उन्होंने सबेरे सबेरे फोन किया।रामजुहार की।फिर अचानक सवालिया भाव से बोले - आपको तो पता ही है कि बीजेपी चुनाव जीतने के लिए सबको इकट्ठा कर रही है।घर की बूढ़ी विधवा बुआओं और चाचियों को पांव छूकर काम पर लगा रही है!उन्हें "सम्मान" दे रही है!बाकियों को भी घेर रही है!लेकिन हमारे यहां..हमारे यहां तो उल्टा ही हो रहा है। बूढ़ी बुआओं को तो छोड़िए..पांव में घुंघरू बांध कर नाचने को तैयार बैठी जवान बुआओं और चाचियों को भी चुन चुन कर विधवा बनाने का प्रयास किया जा रहा है।उन्हें कोने में फेंका जा रहा है !
                   मैं उनसे कुछ पूछ पाता उससे पहले ही वे आगे बोलने लगे!मैंने आपका लिखा पढ़ा।पढ़ कर लगा कि आपको इस घर का भी हाल बता दूं।यह बात कोई और नहीं बताएगा!क्योंकि सब मुगालते में हैं!
 सब जानते हैं कि बीजेपी की हालत खराब है।मामा के चेहरे से प्रदेश की जनता को ही नही उनके दिल्ली में बैठे नेताओं को भी एलर्जी हो गई है।दिल्ली यह जानती है।इसीलिए उसने अमित शाह को प्रदेश की कमान सौंप दी है।अब वे जो कर रहे हैं वह सब देख रहे हैं।बंद कमरे में लोगों को धमका रहे हैं लेकिन बाहर लोगों को खोज खोज कर ,उन्हें मना कर काम पर लगा रहे हैं!
 और हमारे यहां ? पता है आपको हमारे यहां क्या हो रहा है!हमारे यहां तो हमारे नेता पोरस के हाथी बने जा रहे हैं।अपनों को ही रौंद रहे हैं!
सिर्फ 15 महीने में कुर्सी गंवाने वाले हमारे अध्यक्ष जी अभी भी अपने आसपास का माहौल समझ ही नही पा रहे हैं।उनके रथ के घोड़े अलग अलग दिशाओं में दौड़ रहे हैं.. और सारथी...वे उनकी कैबिनेट के सदस्यों के नाम तय रहे हैं!लेकिन घोड़ों के आगे का बड़ा गड्ढा वे नही देख रहे हैं।प्रदेश में कांग्रेस की हालत क्या है और मुकाबले में खड़ी बीजेपी कितने जतन कर रही है,इस बारे में कोई बात नही होती है। बस भरी दोपहरी में खुली आंखों से ख्वाब देखे जा रहे हैं !
                    मैंने उन्हें टोका और रोकना चाहा..लेकिन वे रुके नहीं..शायद आज वे युवराज सिंह की तरह हर बाल पर छक्का मारने का मन बनाए हुए थे!बोले चारो ओर घमासान चल रही है।दिल्ली तो पहले से ही आंखों पर पट्टी बांध कर न्याय की देवी के माफिक व्यवहार कर रही थी।अब पट्टी खोलकर भी वह सच देखने को तैयार नहीं है। जो घोड़े की तरह दौड़ सकते हैं उन्हें "बोरा दौड़" में उतारा गया है।और जो ठीक से चल नही सकते उनके नाम मैराथन दौड़ की सूची में हैं ! जिसका चेहरा और कपड़े चमकदार वह सबसे आगे। जो मेहनत के पसीने से भीगा है उसमें उन्हें बदबू आती है!गणेश परिक्रमा वाले भीतर और कार्तिकेय बेचारे धरती का चक्कर काट रहे हैं ! प्रदेश कार्यालय हो या बंगले का कार्यालय ..गणेशों की भरमार है!साहब कुछ लोगों से मिल लेते हैं तो अपनी यह उपलब्धि मीडिया को बताते हैं!और जिन्हें अपना आंख कान बनाया है वे अपनी ओर से कोई पहल करना तो दूर भक्त मंडली द्वारा साहब पर किए जा रहे हमलों का जवाब भी नही दे पाते हैं। घर में कलह  चल रही है!उसके किस्से अलग हैं।बाल सखा दूर खड़े हाथ सेंक रहे हैं साथ ही अलाव तक घी की आपूर्ति भी सुनिश्चित कर रहे हैं ! मैंने एक बार फिर उन्हें रोका और कहा  - अरे भइया सांस तो लेलो।बोले ही जा रहे हो ! बोले ही जा रहे हो!आपकी बैटरी तो खत्म होने का नाम ही नही ले रही ! इस पर वे नाखुश हो गए!कुछ सेकेंड रुके फिर बोले - आप क्या सिर्फ बीजेपी के ही किस्से लिखोगे?कांग्रेस की ओर कलम नही घुमाओगे ? मैंने कहा ऐसा नहीं है!अपन तो सब पर लिखते हैं! तो वे बोले..तो फिर हमारी बात सुनो...लिखना या मत लिखना...पर सुन तो लो !
                   मैंने उनका रौद्र रूप देख सरेंडर करना ही उचित समझा और कहा  - कहिए जो आपको कहना है।इस पर वे जोर से हंसे!बोले अरे महाराज हमें क्या कहना है। हम तो आपको बता रहे हैं!हमारे यहां कार्यकर्ता से ज्यादा नौकरों और किराए के लोगों पर भरोसा किया जाता है।न मानो तो कभी पीसीसी आकर देख लो!काम करने वाले कोनों में पड़े हैं और माल खाने वाले सबसे आगे अड़े हैं!हम सब फेंसिंग पर पड़े हैं ! इस पर मैंने फिर टोका..कहा कि आप तो शायराना अंदाज में बातें कर रहे हैं! वे बोले अब कम से कम आपसे तो बात कर ही सकते हैं।अंदाज कोई भी हो!बात तो बात है! मन की बात सब जगह तो कर नही सकते!उधर साहब को हमारी बात सुनने की फुर्सत नहीं।दिल्ली को किसी की सुनने की फुर्सत नहीं।किसका नाम लूं और किसका किस्सा सुनाऊं! सब अपने अपने में मस्त हैं !
 आपने बीजेपी की बूढ़ी और विधवा बुआओं को मनाए जाने की बात की तो सोचा कि आपको बता दूं कि वे तो खोज कर काम पर लगा रहे हैं।लेकिन हमारे यहां तो जवान बुआओं को चुन चुन कर, विधवा बना कर कोनों में फेंका जा रहा है!जबरन घर बैठाया जा रहा है ! हर स्तर पर यही हाल है!हमारी बात पर यकीन न हो तो किसी और कांग्रेसी से पूछ लो!बुआओं और चाचियों और ताइयों की भरमार है!
आपको याद है 1993 की ? उनके इस सवाल पर मैंने कहा - नही भाई मुझे याद नहीं है।मैं तो तब दिल्ली में था। वे बोले  - अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद पटवा जी की सरकार भी गिरा दी गई थी।उसके बाद जब चुनाव हुए तो पटवा जी ही नही तब के सभी नेताओं को इस बात का पूरा भरोसा था कि सरकार तो उन्हीं की बनेगी।उन्होंने तो चुनाव के नतीजे आने से पहले अपनी कैबिनेट भी बना ली थी। लेकिन नतीजे आए तो कांग्रेस सत्ता में थी।पटवा जी अपनी कैबिनेट की सूची बनाते रह गए और कैबिनेट बनाई दिग्विजय सिंह ने ! अब भी वैसे ही हालात हैं।
 मैंने एक बार फिर उन्हें टोका..कहा ..भइया इसमें मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं! वे फिर हंसे..बोले..अच्छा पंडित जी अब एक शेर सुन लो!बाकी बात खत्म !
खुदा तो फिर भी मुसलमान था उससे क्या शिकवा..मेरे लिए तो मेरे भगवान ने कुछ न किया...
 पंडित जी आप क्या मेरी मदद करोगे ! आप तो बस यही लिखो कि अपना एमपी गज्जब है ! बताओ है कि नहीं!अच्छा जी राम राम!आगे की बात फिर कभी !

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