top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << गोपाल के अभिषेक को करना होगा लंबा इंतजार....!

गोपाल के अभिषेक को करना होगा लंबा इंतजार....!


राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’,वरिष्ठ पत्रकार
                   प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव की क्षेत्र में पकड़ ऐसी है कि जब चाहें अपने बेटे अभिषेक को विधानसभा पहुंचा सकते हैं लेकिन बेटे की किश्मत में अभी लंबा इंतजार लिखा है। अभिषेक रहली के साथ पूरे सागर जिले में खासे सक्रिय हैं। चुनाव में अपने पिता के प्रचार अभियान की कमान वे ही संभालते हैं। पिता गोपाल भार्गव भी चाहते हैं कि बेटा राजनीति की मुख्य धारा में आए लेकिन दो कारणों से उन्हें इंतजार ही करना होगा। पहला कारण तो यही कि भाजपा में एक ही परिवार के दो लोगों को टिकट नहीं मिल सकता। भाजपा परिवारवाद को लेकर अन्य दलों पर हमलावर रहती है, इसलिए भी यह संभव नहीं। गोपाल पार्टी के प्रतिबद्ध रहने वाले नेता हैं, इसलिए वे पार्टी लाइन से बाहर नहीं जा सकते। दूसरा, गोपाल भार्गव ने खुद कह दिया है कि गुरू की आज्ञा है कि मैं अभी तीन चुनाव और लड़ूं, इसलिए गुरू की आज्ञा का पालन करना और कराना है। गुरू की आज्ञा के कारण भार्गव बेटे के लिए सीट छोड़ने का निर्णय भी नहीं ले सकते। साफ है कि अभिषेक भले लगभग डेढ़ दशक से लगातार सक्रिय हैं, लेकिन हालात ऐसे निर्मित हो गए हैं कि उन्हें बिना चुनाव लड़े ही जनता की सेवा में लगे रहना होगा और अपने पिता की मदद करते रहना होगी। 
चुरहट में आप बिगाड़ेगी दिग्गजों के समीकरण....!
                  विंध्य अंचल की चर्चित चुरहट विधानसभा सीट में दूसरी बार मुकाबला रोचक होगा। पिछला मुकाबला इसलिए चर्चित था क्योंकि नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को यहां पहली बार पराजय का सामना करना पड़ा था। भाजपा के शरदेंदु तिवारी ने उन्हें लगभग साढ़े 6 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया था। इस बार भी दोनों आमने-सामने होंगे, इसकी वजह से सभी की नजरें इस सीट पर पहले से थीं, लेकिन आम आदमी पार्टी से गोविंद मिश्रा के बेटे अनेंद्र मिश्रा उर्फ राजन के चुनाव लड़ने की तैयारी से चुनाव और रोचक हो गया है। गोविंद मिश्रा सीधी से दो बार सांसद रहे हैं और 1993 में वे चुरहट से विधायक भी चुने गए थे। तब अजय सिंह भोजपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा से मुकाबला करने चुरहट छोड़ आए थे। इस नाते गोविंद मिश्रा एवं उनके परिवार के भी चुरहट क्षेत्र में अच्छे संपर्क हैं। गोविंद के बेटे अनेंद्र काफी समय से लोगों से संपर्क कर चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि अनेंद्र के मैदान में होने से शरदेंदु और अजय दोनों के समीकरण गड़बड़ हो सकते हैं। अनेंद्र भाजपा के शरदेंदु को 80 फीसदी नुकसान पहुंचाएंगे तो अजय सिंह को भी 20 फीसदी नुकसान होगा, क्योंकि अजय को मिलने वाला शरदेंदु से नाराज वोट अनेंद्र के पास भी जा सकता है।
भाजपा से चुनाव लड़ने को तैयार ये आईएफएस....!
                    आला अफसरों की राजनीति में रुचि नई नहीं है। भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के दो अफसर भी रिटायरमेंट के बाद भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। एक की मंशा लोकसभा और दूसरे की विधानसभा चुनाव लड़ने की है। ये अफसर हैं सीएस निनामा और डीएस डोडवे। निनामा अगस्त 2022 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं जबकि डोडवे 31 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं। निनामा पहले से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से  जुड़े रहे हैं। वे झाबुआ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। खबर है कि भाजपा से उन्हें तैयारी करने के संकेत भी मिल चुके हैं। झाबुआ से सांसद जीएस डामोर ईएनसी रहे हैं लेकिन उन पर कई आरोप हैं। भाजपा उनके स्थान पर निनामा पर दांव लगा सकती है। दूसरे अफसर डोडवे रतलाम के ग्रामीण इलाके के रहने वाले हैं। वे भाजपा के टिकट पर सैलाना से चुनाव लड़ने की इच्छुक हैं। सैलाना में कांग्रेस का कब्जा है। इसलिए उन्हें टिकट मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं आएगी। अफसरों के राजनीति में आने का यह नया मामला नहीं है। इससे पहले डॉ भागीरथ प्रसाद, रुस्तम सिंह सहित कई आला अफसर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। सेवानिवृत्त आईएएस डीएस राय भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे हैं।   
चार बिंदुओं पर फोकस कर रहे अमित शाह....
                    विधानसभा चुनाव से पहले पूरी कमान अपने हाथ में लेने का फैसला भाजपा नेतृत्व ने अचानक नहीं लिया। इसकी वजह प्रदेश से मिल रही कुछ रिपोर्ट हैं। इनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के परिश्रम के बावजूद पार्टी की हालत कमजोर बताई जा रही थी। कमियों को दूर करने के उद्देश्य से तीन केंद्रीय मंत्रियों को जवाबदारी सौंपने के बावजूद पार्टी के चाणक्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुद मोर्चा संभाला। व्यवस्थित चुनाव अभियान पर तो फोकस है ही, शाह ने चार बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है। पहली खबर थी की प्रदेश भाजपा के अंदर वरिष्ठों एवं कनिष्ठों के बीच खाई पैदा हो गई है। इसे पाट कर सभी को संतुष्ट करना। दूसरा, ‘अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग’ अलाप रहे नेताओं को एकजुट करना। तीसरा, प्रत्याशी चयन में भाई भतीजावाद पर विराम लगाकर जीतने की क्षमता वालों को टिकट देना। चौथा बार-बार दौरे कर पार्टी कार्यकर्ताओं को मना कर उनमें जोश भरना। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि यदि इन क्षेत्रों में काम हो गया तो फिर भाजपा को सत्ता तक पहुंचाया जा सकता है। केंद्र की सक्रियता का असर पार्टी में दिखाई भी देने लगा है। पार्टी नेता मैदान में सक्रिय हो गए हैं। शाह के दौरे के दौरान भी वे भोपाल का रुख नहीं कर रहे हैं। 
भाजपा की तर्ज पर रणनीति बना रही कांग्रेस....!
                      विधानसभा चुनाव में जब बमुश्किल चार माह का समय बचा है तब भाजपा और कांग्रेस के बीच शह-मात का खेल जारी है। जनता के बीच ओपिनियन में कुछ आगे चल रही कांग्रेस को भाजपा ने झटका दिया है। भाजपा के केद्रीय नेतृत्व ने जब से प्रदेश में ध्यान केंद्रित किया, तीन केंद्रीय मंत्रियों भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव और नरेंद्र सिंह तोमर को जवाबदारी सौंपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दौरे तेज किए तो कांग्रेस पिछड़ती दिखने लगी। भाजपा के पक्ष में फिर वातावरण बनने लगा। लिहाजा, कांग्रेस में भी चुनाव को लेकर भाजपा की तर्ज पर रणनीति बनाई जाने लगी है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल को बदलने की चर्चा चल पड़ी है। कहा जा रहा है कि रणदीप सुरजेवाला को चुनाव के लिहाज से प्रमुख दायित्व सौंपा जा सकता है। कर्नाटक में वे अपना कमाल दिखा चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग का काम देखने भी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मप्र में डेरा डालने वाले हैं। मोदी-शाह की तरह मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के दौरे शुरू होने वाले हैं। कर्नाटक में आजमाए अन्य राष्ट्रीय चेहरों को भी चुनाव के लिए तैनात किया जाने वाला है। अर्थात कांग्रेस में भी केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में पूरा मैनेजमेंट होगा।
                                                    ---------------

Leave a reply