अमेरिका के आमिश समुदाय के लोग आज भी है आधुनिकता से अछूते
रविवारीय गपशप लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं,और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा के फ़ेज़ फ़ोर के प्रशिक्षण के अंतिम हिस्से में हमें अमेरिका जाने का अवसर मिला था , जहाँ सिराक्यूस और न्यूयार्क में प्रशिक्षण सत्र पूरा हुआ । प्रशिक्षण की समाप्ति के बाद हमने कुछ दिन की छुट्टी ले ली थी । छुट्टियों में मैंने और मेरे मित्र रजनीश श्रीवास्तव ने निश्चय किया कि न्यूयार्क तो देख लिया , अब अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी.सी. का भी भ्रमण किया जाये और व्हाइट हाउस भी देखा जाये । हम दोनों मित्र सुबह सपरिवार बस से न्यूयार्क से वाशिंगटन रवाना हुए । रास्ते में दोपहर के वक्त जब हम लैंकेस्टर पेनिनसिल्वेनया में रुके तो हमें आमिश समुदाय के लोगो के बारे में जान कर आश्चर्य हुआ कि अमेरिका जो आधुनिकता में दुनिया का सिरमौर कहा जाता है , वहाँ ऐसा भी समुदाय निवास करता है , जो बिना आधुनिक सुविधाओं के पुरानी परंपराओं में ही जीता है । आमिश ग्राम में इस समुदाय के लोग आज भी बिजली के कनेक्शन के बग़ैर रहते हैं , आने जाने के लिए कार नहीं बल्कि घोडागाड़ी का उपयोग करते हैं । घरों में खाने पीने से लेकर पहनने ओढ़ने तक की इनकी आदतें ऐसी हैं ये जैसे ये दो सौ साल पहले थीं । हमें हमारे गाइड ने बताया कि 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में ये " डच जर्मन" जाती के लोग ( " आमिश चर्च" समुदाय के ) यूरोप से आकर अमेरिका और कनाडा के अनेक हिस्सों में बस गए थे । चर्च परंपरा की रूढ़िवादी समुदाय के ये लोग पूरी दुनिया में तेजी से ख़त्म हो रहे थे , पर अमेरिका में इनके संवर्धन का पूरा ध्यान रखा गया और इनकी इस मान्यता की इज्जत की गयी कि वे अपने तौर तरीक़ों से बिना आधुनिकता का लबादा ओढ़े रह सकें । हमें हमारे गाइड ने आगे कहा कि अमरीका में हम हर एक के विश्वास और धारणा की इज्जत करते हैं , नतीजतन अब पूरी दुनिया में अमिश समुदाय ढाई लाख से ज्यादा आबादी का हो गया है । आमिश समुदाय के लोग इसाई धर्म के कट्टर समर्थक हैं , और मूलतः कृषि कार्य करते हैं , घोड़े गाड़ी से चलते हैं , खेती में भी परंपरागत साधन अपनाते हैं और आधुनिक युग की किन्ही भी वस्तुओं का वे उपयोग नहीं करते यहाँ तक कि मशीनों से सिले कपड़े भी नहीं पहनते । इनके वस्त्र सुइयों से टंके होते हैं और हाँ आमिश पुरुष शेव भी नहीं करते हैं । हमने इस समुदाय के जनजीवन को जाना और इनके रेस्तरां में खाना भी खाया और अगले पड़ाव अर्लिंगटन की ओर चल दिये जो अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डी.सी. से लगा हुआ शहर था । शहर में हमारे होटल के समीप हमें उतार कर बस को ड्राइवर कहीं और ले गया । हम अपने अपने कमरों में सामान रख कर व्यवस्थित हो ही रहे थे कि अचानक रजनीश मेरे कमरे में आए और कहने लगे “ मेरा मोबाइल चार्जर मिल नहीं रहा , लगता है बस में चार्ज करने लगाया था , और वहीं छूट गया है” । हम दोनों मिल कर अपनी बस के मैनेजर-कम-गाइड को ढूँढने नीचे होटल की लॉबी में आए तो वो रिसेप्शन पर ही मिल गए । रजनीश ने उससे अपनी समस्या बतायी और पूछा कि क्या कोई उपाय है , बस से चार्जर लाया जा सके ? गाइड ने कहा कि ड्राइवर तो बस खड़ी कर चला गया है और अब तो वह सुबह ही मिलेगा । रजनीश चिंतित होते हुए बोले “ ये तो बड़ी दिक़्क़त हो गई , मोबाइल में बैटरी तो समाप्त है , अब क्या करें ?” गाइड मुस्कुरा के बोला , आज के दिन इस मामले में आप अपने आप को आमिश समझो ।