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बायजा बाई सिंधिया 1857 की क्रांति के सबसे पहले बीज बोने वाली थी


लाजपत आहूजा, वरिष्ठ पत्रकार                   

                  बायजाबाई सिंधिया के बारे में तात्या टोपे के सीधे वंशज ,पराग टोपे  ने अपनी पुस्तक आपरेशन रेड लोटस में बहुत विस्तार से लिखा है । ग्वालियर की इस राजमहिषि के बारे में उन्होंने लिखा कि वे नानाजी पेशवा और तात्या टोपे की प्रेरणा स्त्रोत थी । १८५७ की क्रांति के लिये प्रारंभिक धन भी उन्होंने उपलब्ध कराया । उन्होंने यह कार्य मथुरा और आगरा में रहकर किया । मथुरा में सर्वतोमुखी यज्ञ करवाना इसकी एक कड़ी थी ।  यज्ञ -पूजा संदेह से बचने के लिये उपाय थे । १८५७ के एकमात्र भारतीय विवरण देनी वाली पुस्तक “माझा प्रवास “ के लेखक विष्णु भट्ट ने इसकी पुष्टि की है । वास्तव में उनका इस क्षेत्र में प्रवास ही बायजाबाई सिंधिया के यज्ञ के कारण हुआ था । बायजा बाई सिंधिया के १८३८ में बाजीराव दिृतीय को अंग्रेजों के विरूद्ध दिये गए प्रस्ताव  का उत्तर उन्हें बाजीराव  दिृतीय की मृत्यु के बाद ,नाना जी से मिला ।  नाना जी पेशवा ने अंग्रेजों के विरूद्ध अपनी योजना का खुलासा अपने उज्जैन के एक विश्वसनीय व्यक्ति के साथ भेजकर किया । नानाजी ने अन्य  महत्वपूर्ण नेताओं के साथ भी यह साझा किया । सबसे पहला अर्थ समर्थन भी बायजा बाई सिंधिया के निजी ख़ज़ांची, मथुरा के लक्ष्मी चंद के माध्यम से नाना जी को मिला ।
                  एक रहस्य यह है कि अंग्रेज इतिहासकारों ने बायजा बाई सिंधिया की भूमिका का उल्लेख क्यों नहीं किया . उसका एक कारण उनके द्वारा क्रांति के दौरान अंग्रेज़ महिलाओं और बच्चों की रक्षा करना और कूटनीति हो सकता है .इस दौरान बायजा बाई सिंधिया पहले ग्वालियर और फिर नरवर में मौजूद थी । कम उम्र के जयाजी राव सिंधिया और ग्वालियर की क़रीब पौने दो लाख की जनता को अंग्रेजों के रक्तपात से बचाना उनका मुख्य उद्देश्य था और इसमें काफ़ी हद तक सफल हुईं ।

१८५७ और जयाजी राव सिंधिया 
                     तात्या टोपे के वंशज पराग टोपे और अन्यों ने अपने शोध में पाया है कि बायजा बाई सिंधिया और जया जी राव  अंदर से उनके साथ थे ।  उन्होंने अंग्रेजों का साथ देने का दिखावा भर किया । यह नहीं होता तो अजेय समझे जाने वाले ग्वालियर क़िले को एक सप्ताह में दो दो बार नाम मात्र की लड़ाई से कैसे जीता जा सकता था ? १९ लाख का कोष भी सिंधिया के इशारे से मिला । इस राशि में से ९ लाख रू तो सिंधिया की सेना को तीन माह की तनख़्वाह के रूप में बाँट दिया गया । विष्णु भट्ट ने लिखा है कि तात्या टोपे की मुलाक़ात बायजा बाई और जयाजी राव सिंधिया के साथ ग्वालियर में हुई थी । हम अपने देसी लेखन को महत्व नहीं देते हैं   इतिहास लेखन भी अंग्रेजों की कूटनीति का एजेंडा नही हो सकता ? 
               ग्वालियर के पत्रकार राकेश अचल ने अपनी वाल पर वहाँ के इतिहास के अध्यापक  डा.अजय अग्निहोत्री की पुस्तक बायजा बाई शिंदे की चर्चा की थी । मैंने डा.अग्निहोत्री की किताब श्रीमंत बायजाबाई शिंदे बुलाई । इससे कई कड़ियाँ जुड़ी । उनकी किताब में दोनों बातें हैं .एक और वे मानते हैं कि बायजाबाई सिंधिया और जयाजी राव सिंधिया ने अंग्रेजों का साथ दिया , दूसरी ओर शंका के कई सवाल भी खड़ा करते हैं ।  इधर तात्या टोपे का परिवार मानता है कि क्रांति के बीज बायजा बाई सिंधिया ने बोये ।  कम आयु के जयाजी राव सिंधिया ने केवल दिखाने को अंग्रेजों के साथ थे और अंदर खाने उन्होंने क्रांति की पूरी मदद की । 
              अब रहीं राजनैतिक दलों की बात उन्हें तथ्यों से क्या लेना देना है । “महाराज “ कांग्रेस में थे तो १८५७ कोई मुद्दा नहीं था . हाँ भाजपा के कुछ नेताओं के लिये यह  मुद्दा था और गाहे -बगाहे यह उठता ही रहता था । अब “ महाराज “ भाजपा में हैं तो कांग्रेस और उनका ईको सिस्टम कोई मौक़ा नहीं चूकता । 
             इस सबके बीच ग्वालियर की राजमहिषि बायजा बाई सिंधिया को तो जैसे भुला दिया गया है। उस महिला को जिसने अपने ग्वालियर से निर्वासन का पूरा समय क्रांति के बीज बोने का अथक प्रयास किये .कोई माने न माने,तात्या टोपे के वंशज तो यह मानते हैं ।

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