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चुनावी चटखारे,मतलब साफ है प्रदेश के नेताओं में कोई चेहरा चुनाव जिताऊ नहीं


कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो पीएम मोदी के चेहरे पर भाजपा विधानसभा चुनाव लड़ेगी ही मप्र में भी मोदी का ही चेहरा रहेगा-शिवराज, सिंधिया सहित अन्य सभी चेहरे भाजपा का रथ यदि  विजय स्तंभ तक पहुंचा देते हैं तो उसके बाद श्रेष्ठतम का चयन होगा। मप्र में तोड़फोड़ के बाद चौथी बार शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा की मजबूरी थी, किसी और को या सिंधिया को ही तब मुख्यमंत्री बना देते तो शिवराज समर्थक मंत्री-विधायक रायता फैला सकते थे। मप्र में चौथी बार बनी भाजपा की सरकार को वैसे भी भाजपा का बड़ा तबका दिल से आज तक नहीं स्वीकार पाया है, जब जब कांग्रेस इसे नोटों से बनी सरकार कह कर बदनाम करती है इन  पार्टीनिष्ठ कार्यकर्ताओं के दिलों पर बर्छी सी चलती रहती है।

गृहमंत्री अमित शाह ने पांचवी बार मप्र में भाजपा की सरकार का सपना पूरा करने के लिए  यहां भी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की बात कही है तो उसका कारण भी यही है कि शिवराज का चेहरा, इवेंट में तब्दील होते हर कार्यक्रम, भाषण वाले लटके-झटके अब पहले की तरह सम्मोहित करने से ज्यादा कार्यकर्ताओं की खीज बढ़ाने वाले होते जा रहे हैं।जहां तक सिंधिया की श्रीवृद्धि की बात है तो सिर्फ उन्हें आगे बढ़ा कर भी मोशाजी प्रदेश की मूल भाजपा वाले कार्यकर्ताओं के बदले की आग को भड़काना नहीं चाहते।रही नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय पर बड़े नेताओं के भरोसे की बात तो पिछले डेढ़ दो साल में खबरों के सिंहासन पर तो बार बार इन नेताओं की ताजपोशी होती रही लेकिन मन की मुराद इन कहां पूरी हुई।नरोत्तम मिश्रा गृह मंत्री की निजी पसंद भले ही बने हुए हैं किंतु अपने विभाग के वो  बस नाम के मंत्री हैं। यह दर्द उन्हें सालता तो रहता है किंतु इसकी लाईलाज दवा आज तक केंद्रीय गृहमंत्री शाह भी नहीं दे सके हैं।प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा तो अध्यक्ष के रूप में ही अपना रिपोर्ट कार्ड बेहतर बना नहीं पाए तो वे जिताऊ चेहरा वाली लिस्ट में भी नहीं है।हां उनकी ताजपोशी के बाद से अध्यक्ष पद की कमजोरियां सुनियोजित तरीके से इतनी अधिक प्रतारित की गई हैं कि जब जब दिल्ली ने शिवराज सिंह के विकल्प पर विचार करना चाहा ऐसी सारी सोच को वीडी भाईसाब की तरफ मोड़ दिए जाने से उनका संकट टलता रहा।केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल को मप्र में भेजने की चर्चा भी खूब चली, नर्मदा भक्त इस नेता कानाम फायनल हो उससे पहले राजनीतिक विवाद-मतभेद आड़े आ गए, उमा भारती से उनकी नजदीकी भी एक कारण रही है-दूसरी तरफ ऐसे सारे कारण शिवराज  के लिए राह आसान करते रहे।

मध्य प्रदेश के इन नेताओं में पार्टी से बढ़ कर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और लाभ-शुभ के गणित का कच्चा चिट्ठा भी दिल्ली के नेताओं के पास पहुंचता रहता है।ऐसे ही कारण है कि इन तमाम नेताओं को विधानसभा चुनाव की विभिन्न समितियों में ही अध्यक्ष पद सौंपा जाएगा। विजय स्तंभ तक रथ खींचने वाले अश्व रास्ते में बेलगाम नहीं हो जाएं इसलिए इनकी लगाम मप्र के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और सह प्रभारी केंद्रीय मंत्रीअश्विनी वैष्णव के हाथों में सौंपी गई है। 

मप्र में अपनाई गई इस रणनीति का असर राजस्थान, छत्तीसगढ़ चुनाव में भी दिखेगा।राजस्थान में वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करना  जितना आसान नहीं तो सिर्फ उन्हें चेहरा बनाने पर जीतना भी संभव नहीं।अब जब कि जादूगर गहलोत के मोहपाश में सचिन पायलट भी समर्पण कर चुके हैं तब राजस्थान में भाजपा के लिए जीत आसान भी नहीं है।मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए गए पूर्व सैनिक कल्याण राज्यमंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा अकेले इतने भी प्रभावी नहीं है कि भाजपा उन्हें कंधे पर बिठाकर जीत की हांडी फोड़ ही ले।इसी तरह छत्तीसगढ़ में अब अकेले पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का प्रभाव भी इतना नहीं है कि भाजपा सरकार बना सके।भूपेंद्र बघेल द्वारा गौसंरक्षण के साथ राम वनगमन मार्ग के सौंदर्यीकरण आदि की जिन योजनाओं पर काम किया जा रहा है उन योजनाओं का आक्रामक तरीके से विरोध करना भाजपा के लिए भी संभव नहीं है। 

’बुढ़ऊ’ को देखने का नजरिया 
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को विजनरी नेता मानने वाले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल को दिग्विजय सिंह अब फुर्तीले जवान नजर आ सकते हैं।इन दोनों को दिग्विजय सिंह थके और अधिक उम्र के कारण बुढ़ऊ नजर आते थे लेकिन उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ नेता गडकरी महाराष्ट्र के एक कार्यक्रम में दिग्वजय सिंह के साथ मंच साझा कर रहे थे। अपने भाषण में उन्होंने दिग्वजय सिंह की पैदल नर्मदा यात्रा को लेकर उनकी फिटनेस की खूब तारीफ की, यहां तक कहा इतना पैदल चलना मेरे बस की बात नहीं।इस तारीफ के बहाने गडकरी ने प्रादेशिक और राष्ट्रीय नजरिये का फर्क भी स्पष्ट कर दिया है। 

 एक भूले नहीं दूसरा पिटाई कांड हो गया
क्षेत्र क्रमांक चार से चुनाव लड़ने की जमावट में जुटे एकलव्य गौड़ का नाम अब दूसरे पिटाई कांड में उछल गया है।पहले भाजयुमो अध्यक्ष सौगात मिश्रा मामले में उन्हें भाजपा नगर अध्यक्ष को सफाई देनी पड़ी थी। दूसरा कांड जुड़ा है नितेश जैन से।पिटाई का शिकार हुए जैन महापौर भार्गव के खास हैं। विधायक मालिनी गौड़ समर्थकों द्वारा की गई पिटाई में एकलव्य गौड़ का नाम भी लिया जा रहा है। इस क्षेत्र से गौड़ परिवार, महापौर भार्गव और सांसद लालवानी ये तीनों विधानसभा टिकट के स्वयंभू-घोषित दावेदार हैं, अन्य कितने हैं यह वक्त आने पर पता चलेगा।इन तीन दावेदारों में से दो के बीच दौड़ बिल्ली चूहा आया जैसी स्पर्धा चल रही है। तीसरे दावेदार लालवानी को अपने समाज पर जितना भरोसा है उतना समाज का उन पर नहीं।

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