चुनावी चटखारे,सरकार के आश्वासन को आईना दिखाते करणी सेना के काले झंडे
कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार
बीते वर्षों में सरकार ने वादे तो खूब किए लेकिन उनमें से ज्यादातर पर अमल नहीं होने का ही नतीजा है कि अब मुख्यमंत्री जहां भी जाते हैं , वादा पूरा नहीं किए जाने से नाराज लोग प्रदर्शन और काले झंडे दिखाने की कोशिश करते हैं।सरकार की इस भूलने की आदत का ही परिणाम है कि चुनावी रणनीति बनाने वाले अब मंत्रियों की एक समिति बना रहे हैं जो रूठे हुए समाजों के प्रमुखों को मनाने का काम करेगी।इस समिति में जिन दो मंत्रियों को लेने की चर्चा है उनकी ढिलाई का ही नतीजा है कि करणी सेना फिर उग्र आंदोलन को मजबूर है।
पिछली बार जब भाजपा सरकार थी तब राजपूत समाज को नाराज कर दिया था-इन माई के लालों ने ऐसी अभूतपूर्व ताकत दिखाई थी कि अच्छे अच्छे भूतपूर्व हो गए थे।
करणी सेना ने इस साल की शुरुआत में ही फिर मैदान पकड़ लिया था।भोपाल में सैकड़ों वाहनों और हजारों सदस्यों के साथ अपनी 21 सूत्री मांगों की मंजूरी के लिए साढ़े छह माह पहले 8 जनवरी को भोपाल के जंबूरी मैदान पर जंगी प्रदर्शन किया था।
करणी सेना की मांगों को लेकर मुख्यमंत्री चौहान ने साथी मंत्री अरविंद भदोरिया को चर्चा के लिए भेजा और बाद में भदौरिया और नरोत्तम मिश्रा की कमेटी भी चर्चा के लिए बना दी थी। करणी सेना पदाधिकारियों को आश्वस्त किया था कि एक माह में मांगों को पूरा कर देंगे।6 महीने से ज्यादा समय बीत गया है, अब तक मांगें पूरी नहीं हो सकी इसलिए करणी सेना के सदस्यों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।मुख्यमंत्री की इन दिनों नागदा, सीहोर सहित जहां जहां सभा हो रही है, करणी सेना सदस्य काले झंडे दिखाने पहुंच रहे हैं, सफलता नहीं भी मिले किंतु लोगों तक सरकार की कथनी करनी का अंतर तो समझ आ ही जाता है। करणी सेना के इस आंदोलन से सवर्ण समाज के बाकी वर्ग भी खुश हैं तो इसलिए कि इन मांगों की मंजूरी पर सिर्फ राजपूतों का ही नहीं बाकी समाजों का भी भला होगा।इसीलिए इन समाजों का भी आंदोलन को पहले दिन से ही समर्थन मिल रहा है।
इन मांगों की मंजूरी के लिए चल रहा है आंदोलन
ये मांगे हैं करणी सेना की जिन्हें अन्य समाजों और शासकीय कर्मचारियों का भी समर्थन मिल रहा है: आरक्षण का आधार आर्थिक किया जाए, ताकि समाज के हर वर्ग के गरीबों को आरक्षण का लाभ मिल सके। एक बार आरक्षण मिलने पर दोबारा आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए।+एससी, एसटी एक्ट में बिना जांच के गिरफ्तारी पर रोक लगे।+एससी, एसटी एक्ट की तर्ज पर सामान्य पिछड़ा एक्ट बने जो सामान्य पिछड़ा वर्ग के हितों की रक्षा करे व कानूनी सहायता प्रदान करे।+ ईडब्ल्यूएस आरक्षण में भूमि व मकान की बाध्यता समाप्त कर 8 लाख की वार्षिक आय को ही आधार मानकर आरक्षण का लाभ दिया जाए।+ ईडब्ल्यूएस आरक्षण में सभी भर्तियों में उम्र सीमा व अंकों में छूट दी जाए व 2018 की शिक्षक पात्रता परीक्षा की नियुक्तियों में इसे लागू किया जाए व म.प्र. में रिक्त पड़े शिक्षकों के पदों को तुरन्त भरा जाए।+ ईडब्ल्यूएस के रिक्त पदों को इसी वर्ग से भरा जाए।+ केन्द्र और राज्य की आने वाले सभी भर्तियों में सभी वर्गों को 2 वर्ष की अतिरिक्त छूट दे कर कोरोना काल की भरपाई की जाए।+ सवर्ण आयोग की कार्यप्रणाली में सुधारकर उसे क्रियाशील बनाया जाए।+ राज्य कर्मचारी आयोग की सिफारिश जिसमें कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु 65 वर्ष करने को कहा गया है, किसी भी परिस्थिति में अब कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु नहीं बढ़ाई जाए।+ क्षत्रिय महापुरुषों के इतिहास में छेड़छाड़ को तुरन्त रोका जाए, इतिहास संरक्षण समिति बने ताकि समाज में आपसी तालमेल बना रहे।+ गौमाता को राष्ट्र माता का दर्जा दिया जाए व सरकार गौशालाओं के स्तर में सुधार करें, गोबर व गौमूत्र को सरकारी स्तर पर खरीदने की व्यवस्था करें ताकि गौ-पालन से रोजगार के अवसर भी बढ़े।+ पद्मावत फिल्म के विरोध में दर्ज प्रकरण वापस लिए जाए।+ कर्मचारियों की पेंशन पुनः चालू की जाए।+ मप्र. की भर्तियों में यहां के युवाओं को प्राथमिकता दी जाए, अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों का कोटा सीमित हो।+ कर्मचारियों को दी जा रही पदोन्नति के साथ उन्हें उसके साथ अधिकार व सुविधा भी दी जाए।+ सरकार प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को रोजगार प्रदान करे रोजगार की व्यवस्था नहीं होने तक बेरोजगार भत्ता प्रदान करे।+ रोजड़ा (नीलगाय) से प्रदेश के कई क्षेत्रों के किसान परेशान है इसमें निजात दिलाने के लिए उचित कार्य योजना बनाई जाए।+ किसानों के हित में स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों का लागू किया जाए ताकि किसानों को उपज का सही मूल्य मिल सके व रासायनिक खादों की बढ़ती कीमत पर अंकुश लगाया जाए।+ खाद्यान्न (रोजमर्रा की चीजें ) को जीएसटी से मुक्त किया जाए तथा बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाई जाए।+ अतिथि शिक्षकों, रोजगार सहायकों व कोरोना काल में सेवा देने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को नियमित नियुक्ति प्रदान की जाए।+ सरकारी स्कूलों की कार्यप्रणाली में सुधार कर शिक्षा का स्तर प्राइवेट स्कूलों की भाँति किया जाए ताकि छात्र प्राइवेट स्कूलों की तरफ ना भागे व प्राइवेट स्कूलों की फीस पर नियंत्रण रखने हेतु एक कमेटी बनाई जाए।
राजनीति का मौसम और कथाकार
इस बार के चुनाव में राजनीति पर धर्म हावी होने का ही नतीजा है कि इंदौर, भोपाल सहित अन्य शहरों में ज्यादातर विधायकों के लिए कथा कराना, हर दिन भंडारे में हजारं श्रद्धालुओं को भोजन कराना अनिवार्यता हो गई है।इस बार सावन और अधिकमास एक साथ होने से उमड़ रही आस्था का जब विधायक और दावेदार लाभ लेने से नहीं चूकना चाहते तो भला कथाकार भाव बढ़ाने में क्यों पीछे रहे।सात से दस लाख तो न्यूनतम रेट है कथाकारों का बाकी फिर जैसा जजमान वैसी डिमांड।कथाकारोंमें सर्वाधिक डिमांड वाले क्रम में पं प्रदीप मिश्रा, बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री और जया किशोरी जी टॉप पर हैं।चर्चित कथाकार खुल कर तीन और सात दिवसीय कथा के मेहनताने के संबंध में कुछ बोलने की अपेक्षा यजमान से ही पूछ लेते हैं कि आप का बजट क्या है।जया किशोरी जी जरूर सार्वजनिक रूप से स्वीकारती हैं कि हमारी कथा यदि लाखों की रहती है तो गलत क्या है।हमारे साथ कथा वाली मंडली, संगीत कलाकारों और इनके परिवार की व्यवस्था भी तो जुड़ी रहती है।
महाकाल मंदिर में प्रसाद के भी दो भाव
महाकाल लोक में भ्रष्टाचार और महाकाल मंदिर में सुविधापूर्ण दर्शन न हो पाने जैसी शिकायतों के बीच मंदिर में सशुल्क मिलने वाले प्रसाद के डबल भाव भी चुनावी मुद्दा बन जाए तो बड़ी बात नहीं।बेसन-ड्रायफ्रूट मिक्स लड्डू सावन शुरु होने से पहले तक 360 रु किलो थे, जिसमें 40 रु की वृद्धि करने से 400 रु किलो कर दिए हैं। लेकिन यदि श्रद्धालु की शक्ति पचास या सौ ग्राम लेने की है तो उसे 500 रु किलो के हिसाब से मिलेंगे।आम श्रद्धालुओं से जुड़े इस मुद्दे पर शहर के जनप्रतिनिधि से लेकर भोपाल-दिल्ली से आने वाले वीवीआयपी इसलिए भी ध्यान नहीं देते कि उन्हें आराम से सपरिवार दर्शन हो जाते हैं और मंदिर समिति सम्मान में प्रसाद आदि भी भेंट कर देती है।
चौकाने वाली रही नकुलनाथ की एंट्री
ग्वालियर में प्रियंका गांधी की सभा में कमलनाथ का भाषण तो समझ आता है लेकिन उनके सांसद पुत्र नकुलनाथ की मंच पर मौजूदगी के साथ भाषण देना कांग्रेस के कई नेताओं के गले नहीं उतर रहा है।एक कारण तो यह है ही कि वे मप्र से कांग्रेस के एक मात्र सांसद हैं। बाकी कारणों में यह भी कि दिग्विजय सिंह की तर्ज पर वो भी नकुल को प्रदेश की राजनीति में अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।बहुत संभव है कि कमल-दिग्विजय की तरह नकुल-जयवर्द्धन की जोड़ी नजर आने लगे।
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