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दूसरी तक के छात्रों को होमवर्क से मिली छूट


संदीप कुलश्रेष्ठ
           मध्यप्रदेश के राज्य शिक्षा केन्द्र ने हाल ही में निर्देश जारी किए हैं, जिसके अनुसार अब प्रदेश के सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों को किसी भी तरह का होमवर्क नहीं दिया जायेगा। राज्य शासन की यह पहल अत्यन्त सराहनीय है। 
तीसरी से पाँचवीं तक के छात्रों को होमवर्क -
            राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा जारी निर्देश के अनुसार अब तीसरी से पाँचवीं तक के छात्र-छात्राओं को हर सप्ताह केवल 2 घंटे का ही होमवर्क दिया जायेगा। इस नियम का सख्ती से पालन करने के निर्देश भी दिए गए हैं। 
बच्चों का बचपना बना रहेगा -
             राज्य शिक्षा केन्द्र के उक्त निर्देश का दूरगामी परिणाम होगा। कक्षा पहली और दूसरी में छात्रों को अब कोई होमवर्क नहीं दिए जाने से बच्चों से उनका बचपन नहीं छीना जा सकेगा। बच्चे अब बिना किसी होमवर्क के तनाव के स्कूल आ जा सकेंगे। होमवर्क के दबाव के कारण कई बच्चें स्कूल जाना छोड़ देते हैं। यह अब नहीं हो सकेगा।
पाँचवी और आठवीं की बोर्ड परीक्षा -
              केन्द्र सरकार ने 6 से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए 10 जनवरी 2010 को एक अधिनियम पारित किया। यह अधिनियम 1 अप्रैल 2010 से मध्यप्रदेश में भी लागू हो गया था। इसमें अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए थे। इनमें से एक यह भी था कि कक्षा 1 से आठवीं तक के बच्चों को निर्बाध पास होने दिया जाए। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मध्यप्रदेश सहित देश के सभी स्कूलों में स्कूल और शिक्षा की गुणवत्ता में अत्यन्त गिरावट आ गई। हालत यहाँ तक पहुँच गई थी कि 5वीं कक्षा के बच्चों को पढ़ना लिखना भी नहीं आ रहा था। 8वीं की कक्षा के विद्यार्थी को सामान्य गणित के प्रश्नों को हल करना भी नहीं आता था। यह स्थिति मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि देशभर में देखी गई। इस दुष्परिणाम को देखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार जबसे पाँचवी और आठवीं की बोर्ड परीक्षाएँ शुरू हुई है, तब से शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर में निश्चित रूप से सुधार हुआ है। 
मूलभूत सुविधाओं में हो वृद्धि -
                प्रदेश के सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों की स्थिति इतनी अच्छी नहीं है, जितनी कि होना चाहिए। अनेक प्राथमिक विद्यालय तो ऐसे हैं, जिसमें कक्षा पहली से पाँचवी तक केवल एक मात्र शिक्षक है। वहाँ एक शिक्षक पाँचों कक्षाओं के सभी विषयों का अध्यापन कार्य करता है। निश्चित रूप से इससे शिक्षा की गुणवत्ता की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसलिए प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक अनिवार्य रूप से पदस्थ किया जाना चाहिए। वर्ष 2016-2017 के मिले बाचें अभियान में यह जानकारी सामने आई थी कि मध्यप्रदेश में 4,472 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। इतना ही नहीं 17,649 प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं, जिसमें एक मात्र शिक्षक है। यह आंकड़ें हांलाकि पुराने हैं किन्तु इसमें कुछ ही वृद्धि मानी जा सकती है। यह स्थिति दयनीय है।
              इसी प्रकार आठवीं तक के स्कूलों की हालत भी ठीक नहीं कही जा सकती है। अनेक माध्यमिक विद्यालय ऐसे है जो केवल 2 से 3 शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। इससे भी यह अपेक्षा नहीं कि जा सकती कि बच्चों के शैक्षणिक स्तर में सुधार हो सकेगा। इसलिए प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय में कम से कम 5 शिक्षक होना अनिवार्य किया जाना चाहिए। इससे ही शिक्षा में गुणवत्ता आ सकेगी। 
              इसके साथ ही अनेक सरकारी स्कूलों की हालत भी जीर्णशीर्ण है। स्कूलों में छत टपकती है। इसलिए प्राथमिक विद्यालय हो या माध्यमिक, पढ़ाने के लिए पर्याप्त कक्ष होना आवश्यक है। इसके साथ ही आज भी अनेक प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जहाँ पर दरी पर बैठकर छात्र-छात्राएँ अध्ययन कार्य करती है। कम्प्यूटर तो दूर की बात है। इसलिए मूलभूत सुविधाएँ होना हर एक स्कूल के लिए जरूरी है। मूलभूत सुविधा देने के बाद ही एक अध्यापक से अपेक्षा की जा सकती है कि वे अपने बच्चों को अच्छी तरह से शिक्षा दे पायेंगे और बच्चें भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। 
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